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हाइकु कविता ने किया भारत और जापान को जोड़ने का काम

आगरा में हुआ भारत का दूसरा राष्ट्रीय हिंदी हाइकु सम्मेलन, यूथ हॉस्टल में देश भर से सौ साहित्यकारों ने की सहभागिता।

आठ साहित्यिक कृतियों के लोकार्पण संग देशभर के 35 रचनाकारों को दिया गया साहित्य श्री सम्मान।

भारत की प्राचीन विधा हाइकु का किया जाए भारतीय नामकरण- डॉ. विकास दवे

ब्रज पत्रिका, आगरा। हिंदी हाइकु परिषद एवं साहित्य साधिका समिति के संयुक्त तत्वावधान में गंगा एवं गायत्री जयंती पर बृहस्पतिवार को यूथ हॉस्टल में भारत का दूसरा राष्ट्रीय हिंदी हाइकु सम्मेलन आयोजित किया गया। सम्मेलन में देश के विभिन्न शहरों से जाने-माने सौ कवि-साहित्यकारों ने सहभागिता की।

आठ कृतियाँ हुईं लोकार्पित

हिंदी हाइकु परिषद की संस्थापक-अध्यक्ष एवं देश की वरिष्ठ और सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. मिथिलेश दीक्षित की हीरक जयंती के उपलक्ष्य में कानपुर से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका प्रस्ताव, लखनऊ से प्रकाशित परिकल्पना समय और विश्व विधायक के विशेषांक, छत्तीसगढ़ से प्रकाशित हाइकु मंजूषा के प्रथम-द्वितीय अंक, बदायूं से प्रकाशित नए क्षितिज के नवीन अंक के साथ-साथ डॉ. रवींद्र प्रभात (लखनऊ) द्वारा संपादित पुस्तक डॉ. मिथिलेश दीक्षित का साहित्य: सृजन एवं प्रदेय, डॉ. लवलेश दत्त (बरेली) की पुस्तक डॉ. मिथिलेश दीक्षित के साहित्य में मूल्य चेतना और डॉ. शोभा जैन (इंदौर) और प्रो. हरीतिमा दीक्षित की पुस्तक डॉ. मिथिलेश दीक्षित के मूल्य परक वैचारिक निबंध सहित कुल आठ साहित्यिक कृतियों का सम्मेलन में लोकार्पण किया गया।

उत्कृष्ट काव्यशैली है हाइकु

जाने-माने ब्लॉगर एवं कथाकार डॉ. रवींद्र प्रभात (लखनऊ) ने सम्मेलन की अध्यक्षता की। साहित्य अकादमी, भोपाल के निदेशक डॉ. विकास दवे मुख्य अतिथि रहे। उन्होंने कहा कि,

“हाइकु भारत की प्राचीन विधा है। अब वक्त आ गया है कि इसका भारतीय नामकरण भी किया जाए।”

विचार प्रवाह संस्था के संस्थापक मुकेश तिवारी (इंदौर), डॉ. शशि गोयल और वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. निहाल चंद शिवहरे (झांसी) विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।

हाइकु विमर्श का सार यह था कि सृजन, समीक्षा, शोध, संपादन, पत्रकारिता तथा सोशल मीडिया सहित हर क्षेत्र में अब यह कविता सर्वाधिक चर्चित है। भाव, भाषा और स्तरीयता पर ध्यान दिया जाए तो निश्चित ही यह साहित्य की एक उत्कृष्ट काव्य शैली है।

डॉ. मिथिलेश दीक्षित ने कहा कि,

“जापानी हाइकु में आध्यात्मिक-दार्शनिक संस्पर्श भारतीय देन है। साहित्यिक विनिमय की दृष्टि से हाइकु कविता ने दोनों देशों को जोड़ने का काम किया है।”

शख्शियतों को दिया साहित्य श्री सम्मान

हिंदी साहित्य-संस्कृति के उन्नयन एवं पर्यावरण चेतना के प्रचार-प्रसार हेतु देश के चुनिंदा 35 रचनाकारों को साहित्य श्री सम्मान से नवाजा गया। साथ ही सम्मेलन में उपस्थित देशभर के 100 रचनाकारों को आकर्षक सहभागिता प्रमाण पत्र भी प्रदान किया गया। अशोक रावत, डॉ. राजेंद्र मिलन, अशोक अश्रु, सुशील सरित, डॉ. शेषपाल सिंह, माला गुप्ता, डॉ. अनिल उपाध्याय, सुनीता चौहान, आभा चतुर्वेदी, नूतन अग्रवाल, भरतदीप माथुर, आगरा आकाशवाणी केंद्र के निदेशक नीरज जैन, ज्योतिषाचार्य पूनम वार्ष्णेय, निवेदिता दिनकर, विनय बंसल, वरिष्ठ पत्रकार आदर्श नंदन गुप्त भी सम्मानित शख्शियतों में शामिल रहे।

बही हाइकु की रसधार

सम्मेलन में दो दर्जन से अधिक रचनाकारों ने स्वरचित हाइकु सुनाकर रसधार बहाई। साहित्य साधिका समिति की संस्थापक व वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुषमा सिंह के बोल थे- ” सृजन बीज/ विकसित हो जाते/ अँधेरे में भी।” साहित्य साधिका समिति की संस्थापक और वरिष्ठ साहित्यकार रमा वर्मा ‘श्याम’ की पंक्तियां थीं- “जीवन के रंग/ सुख-दुख के संग/ बाँटते चलो।” डॉ. सुरंगमा यादव (लखनऊ), डॉ. सुभाषिनी शर्मा (गाजियाबाद), डॉ. गीता यादवेंदु (शिकोहाबाद), अंजू निगम (दिल्ली), सविता मिश्रा, साधना वैद, रेखा शर्मा ‘दिव्या’, डॉ. शैलबाला अग्रवाल की रचनाएँ भी सराही गईं। समारोह का संचालन वर्षा अग्रवाल (अलीगढ़) ने किया। कवि कुमार ललित मीडिया समन्वयक रहे।

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