दूर करती बहुत दूर अपरिमित पीर, उम्मीदों की पिटारी है मेरे बाबू की तस्वीर…!
सुधांशु पांडे ‘निराला’ (कवि)
(प्रयागराज, उत्तरप्रदेश)
बाबू की तस्वीर
प्यारी है
न्यारी है
खुशियों की
उम्मीदों की
पिटारी है
मेरे बाबू की तस्वीर।
मकान की आधार शिला
बचपन का खिलौना;
खटोले पर बाबू की
तहमत का बिछौना!
दुलार से
आलिंगन से
कसी हुई शरीर,
उम्मीदों की
पिटारी है
मेरे बाबू की तस्वीर।
उनकी उंगलियों का
पुष्ट सहारा;
बहती हुई कश्ती का
एक मात्र किनारा!
वो ही दूध
वो ही भात
वे ही पूरी वो ही खीर,
उम्मीदों की
पिटारी है
मेरे बाबू की तस्वीर।
प्यार से पुचकारना
और दुलारना;
उनकी बाहों का
मुलायम पालना!
दूर करती
बहुत दूर
अपरिमित पीर,
उम्मीदों की
पिटारी है
मेरे बाबू की तस्वीर।
किसी का प्यार प्रत्यक्ष
किसी का परोक्ष;
माँ जन्म देती है
पिता देता मोक्ष;
मेरे खातिर
वही रईस
और वही फकीर,
उम्मीदों की
पिटारी है
मेरे बाबू की तस्वीर।