आवाज़-ओ-अदाकारी के उम्दा फ़नकार विनोद शर्मा का रंगमंच, रेडियो, टीवी, सिनेमा में चौतरफ़ा जलवा
ब्रज पत्रिका, आगरा। आकाशवाणी जिसको ऑल इंडिया रेडियो के नाम से भी जाना जाता है। आम जनमानस में रेडियो का मतलब आकाशवाणी ही रहा है। पीढ़ियों के बदलाव के बीच हालांकि आज एफएम रेडियो युवाओं के बीच भले ही गहरी पैठ बना चुका है मगर आकाशवाणी का नशा जन सामान्य के सिर से उतरा नहीं है। यूँ तो श्रोताओं को लंबे समय से अपना दीवाना बनाये हुए है।

कुलजमा बात ये है कि इसकी कामयाबी के पीछे हाथ है उदघोषकों का, कार्यक्रम अधिशासी अधिकारियों का, कलाकारों का, संगीत संयोजकों का और इनके अलावा प्रसारण सहज सुलभ बनाने वाले अभियंताओं सहित अन्य प्रसारण तकनीक के विशेषज्ञ स्टाफ का। मगर श्रोताओं के सीधे संपर्क में आते हैं उदघोषक। जो श्रोताओं के बीच अपनी खास पहचान बना लेते हैं।

इन्हीं उदघोषकों की जमात की नुमाइन्दगी करने के साथ -साथ अभिनय की दुनिया में भी एक पहचान पाने में सफल रहे हैं आकाशवाणी के अवकाश प्राप्त उदघोषक विनोद शर्मा। रंगमंच के प्रभावशाली अभिनेता और निर्देशक के तौर पर स्थापित विनोद शर्मा ने कई फिल्मों सहित तमाम टीवी सीरिअल्स में भी अभिनय किया है।

खुद को रेडियो के उम्दा उदघोषकों में शुमार कराने के अलावा विनोद शर्मा ने अपने वक़्त को रंगमंच की दुनिया में लगाया जहाँ वे एक अच्छे अदाकार के तौर पर निखरते चले गए, इसके बाद जब टीवी और फिल्मों की तरफ रुख किया तो ये हुनर काम आया और कामयाबी दिलाता गया। प्रोडक्शन के काम में भी हाथ बँटाया। बेशक़ आज विनोद शर्मा अपनी करियर यात्रा गुमान कर सकते हैं।

अपने इस अभिनय की दुनिया के सफर के बावत विनोद शर्मा ने ब्रज पत्रिका को बताया,
“मैंने इप्टा के साथ जुड़कर मंचीय नाटकों में मुख्य भूमिकाएं निभा कर दर्शकों का प्रेम प्राप्त किया फिर रेडियो और दूरदर्शन के कार्यक्रमों व नाटकों में भाग लेकर अपना सफ़र शुरू किया।”
मायानगरी के रूप में मशहूर मुम्बई का रुख किया आपने कैसा अनुभव रहा फ़िल्मनगरी का?
“मुंबई जाकर सबसे पहले फीचर फ़िल्म्स में डबिंग आर्टिस्ट के तौर पर काम किया। इसके बाद फिल्मों की चरित्र अभिनेत्री आशा शर्मा ने उस समय के मशहूर निर्देशक ओ.पी. रल्हन और उनके सहायक कमल चंढोक के यहाँ बातकर मुझे उनका सहायक निर्देशक (क्लेप बॉय) बनवा दिया। जहाँ एक ही प्रोडक्शन में काम करते करते मैं खुद की मेहनत से मुख्य सहायक निर्देशक भी बन गया। मैं अपनी फिल्मों में तो काम करता ही था, लेकिन बाहर से अभिनय का जब भी प्रस्ताव मिलता, तो स्वीकार कर लेता था। तब से अब तक कई फिल्मों और टीवी चैनल के धारावाहिकों में काम कर सका हूँ। अभिनय का ये सिलसिला बदस्तूर आज भी जारी है।”
अभिनय के इस सफर में आपके ताज़ा प्रोजेक्ट्स कौन कौन से रहे हैं?
“दिसम्बर वर्ष 2018 में धप्पा फ़िल्म आयी थी, जिसको सिद्धार्थ नगर ने निर्देशित किया था। इसके बाद अक्टूबर 2019 तक सोबो फिल्म्स के धारावाहिक “राजा बेटा “और ज़ी टीवी के इनहाउस प्रोडक्शन ‘मैं भी अर्धांगनी’ में अभिनय किया। वेब सीरीज़ फॉलन में भी अभिनय किया है।इनके अलावा एक और फ़िल्म में बतौर अभिनेता चयन हुआ है, लेकिन करोना संक्रमण के कारण यह प्रोजेक्ट रुक गया है। टीवी सीरियल भी बहुत किए हैं मसलन सावधान इण्डिया में सरपंच का मुख्य चरित्र निभाया, निर्देशक थे महेन्द्र देवलकर।”
आपने किन-किन निर्देशकों के साथ काम किया है?
“मैंने जिन निर्देशकों के साथ काम किया है उनमें जो नाम प्रमुख हैं वो हैं ओ.पी. रल्हन, कमल चंढोक, शाम रल्हन, रवि टंडन, यशपाल त्रिखा, तरुण घोष (इन सभी के साथ मुख्य सहायक निर्देशक और एक्टर के रूप में काम किया है मैंने), वर्तमान में सिद्धार्थ नागर, मोना सरीन, संदीपन नागर, महेन्द्र देवलकर ,अनिमेष, कुल्ला कंजन और मितेश चितालिया (इन सभी के साथ एक्टर के रूप में काम किया, इनकी फीचर फिल्म और धारावाहिकों में) सभी के साथ एक दम स्वाभाविक माहौल में काम करने का आनन्द आया, सभी ने मुझे खुल कर काम करने का मौक़ा दिया कोई बन्धन में नहीं बाँधा। थिएटर करने के बाद मैंने फीचर फ़िल्मों में बतौर सहायक निर्देशक काम किया है। मैं कैमरे की भाषा और अपने एंगल्स का ख़ुद ध्यान रखता था, तो मेरे निर्देशकों को मेरे साथ काम करने में ख़ुशी होती थी और वो मेरे चरित्र के लिए वर्क आउट करने का पूरा मौक़ा देते थे। सभी के साथ काम करके विशिष्ट अनुभूति हुयी।”
नाटकों का आपके जीवन पर किस तरह असर पड़ा और क्या बदलाव खुद में महसूस किए आपने?
“नाटक मेरे व्यक्तित्व और सांस्कृतिक विकास की आरंभिक पाठशाला है। नाटकों में विभिन्न चरित्र जीने के बाद समाज के हर पहलु का अनुभव मिला। आत्मविश्वास जागा और प्रबल रूप से अपनी बात कहने का नज़रिया मिला। इसीलिए चाहे मंच रहा हो, चाहे आकाशवाणी या फिर फिल्में सब जगह मुझे श्रोताओं/दर्शकों का प्यार मिला, और आज भी उनके संदेश और कॉल्स मेरे पास आते हैं।”


“मैंने इप्टा के साथ जुड़कर मंचीय नाटकों में मुख्य भूमिकाएं निभा कर दर्शकों का प्रेम प्राप्त किया फिर रेडियो और दूरदर्शन के कार्यक्रमों व नाटकों में भाग लेकर अपना सफ़र शुरू किया।”
“मुंबई जाकर सबसे पहले फीचर फ़िल्म्स में डबिंग आर्टिस्ट के तौर पर काम किया। इसके बाद फिल्मों की चरित्र अभिनेत्री आशा शर्मा ने उस समय के मशहूर निर्देशक ओ.पी. रल्हन और उनके सहायक कमल चंढोक के यहाँ बातकर मुझे उनका सहायक निर्देशक (क्लेप बॉय) बनवा दिया। जहाँ एक ही प्रोडक्शन में काम करते करते मैं खुद की मेहनत से मुख्य सहायक निर्देशक भी बन गया। मैं अपनी फिल्मों में तो काम करता ही था, लेकिन बाहर से अभिनय का जब भी प्रस्ताव मिलता, तो स्वीकार कर लेता था। तब से अब तक कई फिल्मों और टीवी चैनल के धारावाहिकों में काम कर सका हूँ। अभिनय का ये सिलसिला बदस्तूर आज भी जारी है।”
“दिसम्बर वर्ष 2018 में धप्पा फ़िल्म आयी थी, जिसको सिद्धार्थ नगर ने निर्देशित किया था। इसके बाद अक्टूबर 2019 तक सोबो फिल्म्स के धारावाहिक “राजा बेटा “और ज़ी टीवी के इनहाउस प्रोडक्शन ‘मैं भी अर्धांगनी’ में अभिनय किया। वेब सीरीज़ फॉलन में भी अभिनय किया है।इनके अलावा एक और फ़िल्म में बतौर अभिनेता चयन हुआ है, लेकिन करोना संक्रमण के कारण यह प्रोजेक्ट रुक गया है। टीवी सीरियल भी बहुत किए हैं मसलन सावधान इण्डिया में सरपंच का मुख्य चरित्र निभाया, निर्देशक थे महेन्द्र देवलकर।”
“मैंने जिन निर्देशकों के साथ काम किया है उनमें जो नाम प्रमुख हैं वो हैं ओ.पी. रल्हन, कमल चंढोक, शाम रल्हन, रवि टंडन, यशपाल त्रिखा, तरुण घोष (इन सभी के साथ मुख्य सहायक निर्देशक और एक्टर के रूप में काम किया है मैंने), वर्तमान में सिद्धार्थ नागर, मोना सरीन, संदीपन नागर, महेन्द्र देवलकर ,अनिमेष, कुल्ला कंजन और मितेश चितालिया (इन सभी के साथ एक्टर के रूप में काम किया, इनकी फीचर फिल्म और धारावाहिकों में) सभी के साथ एक दम स्वाभाविक माहौल में काम करने का आनन्द आया, सभी ने मुझे खुल कर काम करने का मौक़ा दिया कोई बन्धन में नहीं बाँधा। थिएटर करने के बाद मैंने फीचर फ़िल्मों में बतौर सहायक निर्देशक काम किया है। मैं कैमरे की भाषा और अपने एंगल्स का ख़ुद ध्यान रखता था, तो मेरे निर्देशकों को मेरे साथ काम करने में ख़ुशी होती थी और वो मेरे चरित्र के लिए वर्क आउट करने का पूरा मौक़ा देते थे। सभी के साथ काम करके विशिष्ट अनुभूति हुयी।”
“नाटक मेरे व्यक्तित्व और सांस्कृतिक विकास की आरंभिक पाठशाला है। नाटकों में विभिन्न चरित्र जीने के बाद समाज के हर पहलु का अनुभव मिला। आत्मविश्वास जागा और प्रबल रूप से अपनी बात कहने का नज़रिया मिला। इसीलिए चाहे मंच रहा हो, चाहे आकाशवाणी या फिर फिल्में सब जगह मुझे श्रोताओं/दर्शकों का प्यार मिला, और आज भी उनके संदेश और कॉल्स मेरे पास आते हैं।”