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भारत में खेती और उससे जुड़ी चीजों के साथ नए आयाम जुड़ रहे हैं, बीते दिनों हुए कृषि सुधारों ने किसानों के लिए नई संभावनाओं के द्वार भी खोले हैं-प्रधानमंत्री

हर भारतीय को यह जानकर गर्व होगा, कि, देवी अन्नपूर्णा की एक बहुत पुरानी प्रतिमा, कनाडा से वापस भारत आ रही है-मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, भारत की संस्कृति और शास्त्र, हमेशा से ही पूरी दुनिया के लिए आकर्षण के केंद्र रहे हैं। कई लोग तो, इनकी खोज में भारत आए, और, हमेशा के लिए यहीं के होकर रह गए, तो, कई लोग, वापस अपने देश जाकर, इस संस्कृति के संवाहक बन गए।

न्यूजीलैंड में वहाँ के नवनिर्वाचित एम.पी. डॉ. गौरव शर्मा ने विश्व की प्राचीन भाषाओं में से एक संस्कृत भाषा में शपथ ली है-नरेंद्र मोदी

ब्रज पत्रिका। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 29 नवंबर को आकाशवाणी के जरिये मन की बात 2.0’ की 18वीं कड़ी में देशवासियों को संबोधित करते हुए विविध विषयों पर चर्चा की, उनके सम्बोधन का इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म के जरिये सीधा प्रसारण भी किया गया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों से अपने मन की बात साझा करते हुए कहा,

“मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार।
‘मन की बात’ की शुरुआत में, आज, मैं, आप सबके साथ एक खुशखबरी साझा करना चाहता हूँ।हर भारतीय को यह जानकर गर्व होगा, कि, देवी अन्नपूर्णा की एक बहुत पुरानी प्रतिमा, कनाडा से वापस भारत आ रही है। यह प्रतिमा, लगभग, 100 साल पहले, 1913 के करीब, वाराणसी के एक मंदिर से चुराकर, देश से बाहर भेज दी गयी थी।
मैं, कनाडा की सरकार और इस पुण्य कार्य को सम्भव बनाने वाले सभी लोगों का इस सहृदयता के लिये आभार प्रकट करता हूँ। माता अन्नपूर्णा का, काशी से, बहुत ही विशेष संबंध है।अब, उनकी प्रतिमा का, वापस आना, हम सभी के लिए सुखद है।माता अन्नपूर्णा की प्रतिमा की तरह ही, हमारी विरासत की अनेक अनमोल धरोहरें, अंतर्राष्ट्रीय गिरोंहों का शिकार होती रही हैं। ये गिरोह, अंतर्राष्ट्रीय बाजार में, इन्हें, बहुत ऊँची कीमत पर बेचते हैं। अब, इन पर, सख्ती तो लगायी ही जा रही है, इनकी वापसी के लिए, भारत ने अपने प्रयास भी बढ़ायें हैं। ऐसी कोशिशों की वजह से बीते कुछ वर्षों में, भारत, कई प्रतिमाओं, और, कलाकृतियों को वापस लाने में सफल रहा है। माता अन्नपूर्णा की प्रतिमा की वापसी के साथ, एक संयोग ये भी जुड़ा है, कि, कुछ दिन पूर्व ही वर्ल्ड हेरिटेज वीक मनाया गया है। वर्ल्ड हेरिटेज वीक, संस्कृति प्रेमियों के लिये, पुराने समय में वापस जाने, उनके इतिहास के अहम् पड़ावों को पता लगाने का एक शानदार अवसर प्रदान करता है। कोरोना कालखंड के बावजूद भी, इस बार हमने, इन्नोवेटिव तरीके से लोगों को ये वर्ल्ड हेरिटेज वीक मनाते देखा।क्राइसिस में कल्चर बड़े काम आता है, इससे निपटने में अहम् भूमिका निभाता है। टेक्नोलॉजी के माध्यम से भी कल्चर, एक, इमोशनल रिचार्ज की तरह काम करता है। आज देश में कई म्यूजियम्स और लाइब्रेरीज अपने कलेक्शन को पूरी तरह से डिजिटल बनाने पर काम कर रहे हैं । दिल्ली में, हमारे राष्ट्रीय संग्रहालय ने इस सम्बन्ध में कुछ सराहनीय प्रयास किये हैं। राष्ट्रीय संग्राहलय द्वारा करीब दस वर्चुअल गैलरीज़, इंट्रोड्यूस करने की दिशा में काम चल रहा है – है ना मज़ेदार! अब, आप, घर बैठे दिल्ली के नेशनल म्यूजियम गैलरीज़ का टूर कर पायेंगे।जहां एक ओर सांस्कृतिक धरोहरों को टेक्नोलॉजी के माध्यम से अधिक-से-अधिक लोगों तक पहुंचाना अहम् है, वहीं, इन धरोहरों के संरक्षण के लिए टेक्नोलॉजी का उपयोग भी महत्वपूर्ण है। हाल ही में, एक इंट्रेस्टिंग प्रोजेक्ट के बारे में पढ़ रहा था। नॉर्वे के उत्तर में स्वालवर्ड नाम का एक द्वीप है। इस द्वीप में एक प्रोजेक्ट, आर्कटिक वर्ल्ड आर्काइव बनाया गया है। इस आर्काइव में बहुमूल्य हेरिटेज डाटा को इस प्रकार से रखा गया है कि किसी भी प्रकार के प्राकृतिक या मानव निर्मित आपदाओं से प्रभावित ना हो सकें। अभी हाल ही में, यह भी जानकारी आयी है, कि, अजन्ता गुफाओं की धरोहर को भी डिजिटलाइज़ करके इस प्रोजेक्ट में संजोया जा रहा है। इसमें, अजन्ता गुफाओं की पूरी झलक देखने को मिलेगी। इसमें, डिजिटलाइज्ड और रिस्टोरर्ड पेंटिंग के साथ-साथ इससे सम्बंधित दस्तावेज़ और क्योट्स भी शामिल होंगे। साथियो, महामारी ने एक ओर जहाँ, हमारे काम करने के तौर-तरीकों को बदला है, तो दूसरी ओर प्रकृति को नये ढंग से अनुभव करने का भी अवसर दिया है। प्रकृति को देखने के हमारे नज़रिये में भी बदलाव आया है। अब हम सर्दियों के मौसम में कदम रख रहे हैं। हमें प्रकृति के अलग-अलग रंग देखने को मिलेंगे। पिछले कुछ दिनों से इंटरनेट चेरी ब्लॉसम्स की वायरल तस्वीरों से भरा हुआ है। आप सोच रहे होंगे जब मैं चेरी ब्लॉसम्स की बात कर रहा हूँ तो जापान की इस प्रसिद्ध पहचान की बात कर रहा हूँ – लेकिन ऐसा नहीं है! ये, जापान की तस्वीरें नहीं हैं । ये, अपने मेघालय के शिलाँग की तस्वीरें हैं। मेघालय की खूबसूरती को इन चेरी ब्लॉसम्स ने और बढ़ा दिया है।”

प्रधानमंत्री ने कहा,

“साथियो, इस महीने 12 नवंबर से डॉक्टर सलीम अली जीका 125वाँ जयंती समारोह शुरू हुआ है।डॉक्टर सलीम ने पक्षियों की दुनिया में बर्ड वॉचिंग को लेकर उल्लेखनीय कार्य किया है। दुनिया के बर्ड वॉचर्स को भारत के प्रति आकर्षित भी किया है। मैं, हमेशा से बर्ड वॉचिंग के शौकीन लोगों का प्रशंसक रहा हूँ।बहुत धैर्य के साथ, वो, घंटों तक, सुबह से शाम तक, बर्ड वॉचिंग कर सकते हैं, प्रकृति के अनूठे नजारों का लुत्फ़ उठा सकते हैं, और, अपने ज्ञान को हम लोगों तक भी पहुंचाते रहते हैं। भारत में भी, बहुत-सी बर्ड वॉचिंग सोसाइटी सक्रिय हैं। आप भी, जरूर, इस विषय के साथ जुड़िये। मेरी भागदौड़ की ज़िन्दगी में, मुझे भी, पिछले दिनों केवड़िया में, पक्षियों के साथ, समय बिताने का बहुत ही यादगार अवसर मिला। पक्षियों के साथ बिताया हुआ समय, आपको, प्रकृति से भी जोड़ेगा, और, पर्यावरण के लिए भी प्रेरणा देगा।”

पीएम ने आगे कहा,

“मेरे प्यारे देशवासियो, भारत की संस्कृति और शास्त्र, हमेशा से ही पूरी दुनिया के लिए आकर्षण के केंद्र रहे हैं। कई लोग तो, इनकी खोज में भारत आए, और, हमेशा के लिए यहीं के होकर रह गए, तो, कई लोग, वापस अपने देश जाकर, इस संस्कृति के संवाहक बन गए। मुझे “जोनास मसेट्टी” के काम के बारे में जानने का मौका मिला, जिन्हें, ‘विश्वनाथ’ के नाम से भी जाना जाता है। जॉनस ब्राजील में लोगों को वेदांत और गीता सिखाते हैं। वे विश्वविद्या नाम की एक संस्था चलाते हैं, जो रियो डि जेनेरो से घंटें भर की दूरी पर पेट्रोपोलिस के पहाड़ों में स्थित है। जॉनस ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद, स्टॉक मार्केट में अपनी कंपनी में काम किया, बाद में, उनका रुझान भारतीय संस्कृति और खासकर वेदान्त की तरफ हो गया। स्टॉक से लेकर के स्पिरिचुअलिटी तक, वास्तव में, उनकी, एक लंबी यात्रा है। जॉनस ने भारत में वेदांत दर्शन का अध्ययन किया और 4 साल तक वे कोयंबटूर के आर्ष विद्या गुरूकुलम में रहे हैं । जॉनस में एक और खासियत है, वो, अपने मैसेज को आगे पहुंचाने के लिए टेक्नोलॉजी का प्रयोग कर रहे हैं। वह नियमित रूप से ऑनलाइन प्रोग्राम्स करते हैं । वे, प्रतिदिन पोडकास्ट पॉडकास्ट करते हैं। पिछले सात वर्षों में जॉनस ने वेदांत पर अपने फ्री ओपन कोर्सेज के माध्यम से डेढ़ लाख से अधिक स्टूडेंट्स को पढ़ाया है। जॉनस ना केवल एक बड़ा काम कर रहे हैं, बल्कि, उसे एक ऐसी भाषा में कर रहे हैं, जिसे, समझने वालों की संख्या भी बहुत अधिक है। लोगों में इसको लेकर काफी रुचि है कि कोरोना और क्वारंटाइन के इस समय में वेदांत कैसे मदद कर सकता है? ‘मन की बात’ के माध्यम से मैं जॉनस को उनके प्रयासों के लिए बधाई देता हूं और उनके भविष्य के प्रयासों के लिए शुभकामनाएं देता हूं।”

पीएम नरेंद्र मोदी बोले,

“साथियो, इसी तरह, अभी, एक खबर पर आपका ध्यान जरूर गया होगा। न्यूजीलैंड में वहाँ के नवनिर्वाचित एम.पी. डॉ. गौरव शर्मा ने विश्व की प्राचीन भाषाओं में से एक संस्कृत भाषा में शपथ ली है। एक भारतीय के तौर पर भारतीय संस्कृति का यह प्रसार हम सब को गर्व से भर देता है। ‘मन की बात’ के माध्यम से मैं गौरव शर्मा जी को शुभकामनाएं देता हूं। हम सभी की कामना है, वो, न्यूजीलैंड के लोगों की सेवा में नई उपलब्धियां प्राप्त करें।”

प्रधानमंत्री ने आगे कहा,

“मेरे प्यारे देशवासियो, कल 30 नवंबर को, हम, श्री गुरु नानक देव जी का 551वाँ प्रकाश पर्व मनाएंगे। पूरी दुनिया में गुरु नानक देव जी का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
वैंकूवर से वेलिंगटन तक, सिंगापुर से साउथ अफ्रीका तक, उनके संदेश हर तरफ सुनाई देते हैं। गुरुग्रन्थ साहिब में कहा गया है – “सेवक को सेवा बन आई”, यानी, सेवक का काम, सेवा करना है । बीते कुछ वर्षों में कई अहम पड़ाव आये और एक सेवक के तौर पर हमें बहुत कुछ करने का अवसर मिला। गुरु साहिब ने हमसे सेवा ली। गुरु नानक देव जी का ही 550वाँ प्रकाश पर्व, श्री गुरु गोविंद सिंह जी का 350वाँ प्रकाश पर्व, अगले वर्ष श्री गुरु तेग बहादुर जी का 400वाँ प्रकाश पर्व भी है। मुझे महसूस होता है, कि, गुरु साहब की मुझ पर विशेष कृपा रही जो उन्होंने मुझे हमेशा अपने कार्यों में बहुत करीब से जोड़ा है।”

प्रधानमंत्री ने इसी क्रम में आगे कहा कि,

“साथियो, क्या आप जानते हैं कि कच्छ में एक गुरुद्वारा है, लखपत गुरुद्वारा साहिब। श्री गुरु नानक जी अपने उदासी के दौरान लखपत गुरुद्वारा साहिब में रुके थे। 2001 के भूकंप से इस गुरूद्वारे को भी नुकसान पहुँचा था। यह गुरु साहिब की कृपा ही थी, कि, मैं, इसका जीर्णोद्धार सुनिश्चित कर पाया। ना केवल गुरुद्वारा की मरम्मत की गई बल्कि उसके गौरव और भव्यता को भी फिर से स्थापित किया गया । हम सब को गुरु साहिब का भरपूर आशीर्वाद भी मिला। लखपत गुरुद्वारा के संरक्षण के प्रयासों को 2004 में यूनेस्को एशिया पेसेफिक हेरिटेज अवार्ड में अवार्ड ऑफ डिस्टिंक्शन दिया गया।अवार्ड देने वाली ज्यूरी ने ये पाया कि मरम्मत के दौरान शिल्प से जुड़ी बारीकियों का विशेष ध्यान रखा गया। ज्यूरी ने यह भी नोट किया कि गुरुद्वारा के पुनर्निर्माण कार्य में सिख समुदाय की ना केवल सक्रिय भागीदारी रही, बल्कि, उनके ही मार्गदर्शन में ये काम हुआ। लखपत गुरुद्वारा जाने का सौभाग्य मुझे तब भी मिला था जब मैं मुख्यमंत्री भी नहीं था । मुझे वहाँ जाकर असीम ऊर्जा मिलती थी। इस गुरूद्वारे में जाकर हर कोई खुद को धन्य महसूस करता है। मैं, इस बात के लिए बहुत कृतज्ञ हूँ कि गुरु साहिब ने मुझसे निरंतर सेवा ली है। पिछले वर्ष नवम्बर में ही करतारपुर साहिब कॉरिडोर का खुलना बहुत ही ऐतिहासिक रहा। इस बात को मैं जीवनभर अपने ह्रदय में संजो कर रखूँगा। यह, हम सभी का सौभाग्य है, कि, हमें श्री दरबार साहिब की सेवा करने का एक और अवसर मिला। विदेश में रहने वाले हमारे सिख भाई-बहनों के लिए अब दरबार साहिब की सेवा के लिए राशि भेजना और आसान हो गया है। इस कदम से विश्व-भर की संगत, दरबार साहिब के और करीब आ गई है।”

इसके बाद पीएम बोले,

“साथियो, ये, गुरु नानक देव जी ही थे, जिन्होंने, लंगर की परंपरा शुरू की थी और आज हमने देखा कि दुनिया-भर में सिख समुदाय ने किस प्रकार कोरोना के इस समय में लोगों को खाना खिलाने की अपनी परंपरा को जारी रखा है , मानवता की सेवा की – ये परंपरा, हम सभी के लिए निरंतर प्रेरणा का काम करती है। मेरी कामना है, हम सभी, सेवक की तरह काम करते रहे। गुरु साहिब मुझसे और देशवासियों से इसी प्रकार सेवा लेते रहें। एक बार फिर, गुरु नानक जयंती पर, मेरी, बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।”

उन्होंने इसके बाद कहा,

“मेरे प्यारे देशवासियो, पिछले दिनों, मुझे, देश-भर की कई यूनिवर्सिटीज के स्टूडेंट्स के साथ संवाद का, उनकी एजुकेशन जर्नी के महत्वपूर्ण इवेंट्स में शामिल होने का, अवसर प्राप्त हुआ है। टेक्नोलॉजी के ज़रिये, मैं, आईआईटी गुवाहाटी, आईआईटी दिल्ली, गाँधीनगर की दीनदयाल पेट्रोलियम यूनिवर्सिटी, दिल्ली की जेएनयू, मैसूर यूनिवर्सिटी और लखनऊ यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों से कनेक्ट हो पाया। देश के युवाओं के बीच होना बेहद तरो-ताजा करने वाला और ऊर्जा से भरने वाला होता है । विश्वविद्यालय के परिसर तो एक तरह से मिनी इंडियाकी तरह होते हैं। एक तरफ़ जहाँ इन कैंपस में भारत की विविधता के दर्शन होते हैं, वहीँ, दूसरी तरफ़, वहाँ न्यू इंडिया के लिए बड़े-बड़े बदलाव का पैशन भी दिखाई देता है। कोरोना से पहले के दिनों में जब मैं रु-ब-रु किसी इंस्टीट्यूशन के इवेंट्स में जाता था, तो, यह आग्रह भी करता था, कि, आस-पास के स्कूलों से गरीब बच्चों को भी उस समारोह में आमंत्रित किया जाए। वो बच्चे, उस समारोह में, मेरे स्पेशल गेस्ट बनकर आते रहे हैं। एक छोटा सा बच्चा उस भव्य समारोह में किसी युवा को डॉक्टर, इंजीनियर, साइंटिस्ट बनते देखता है, किसी को मैडल लेते हुए देखता है, तो उसमें, नए सपने जगते है – मैं भी कर सकता हूँ, यह आत्मविश्वास जगता है। संकल्प के लिए प्रेरणा मिलती है।”

नरेंद्र मोदी ने कहा,

“साथियो, इसके अलावा एक और बात जानने में मेरी हमेशा रूचि रहती है कि उस इंस्टीट्यूशन के एलुमिनाई कौन हैं, उस संस्थान के अपने एलुमिनाई से रेगुलर एंगेजमेंट की व्यवस्था है क्या? उनका एलुमिनाई नेटवर्क कितना जीवंत है…!
मेरे युवा दोस्तो, आप तब तक ही किसी संस्थान के विद्यार्थी होते हैं जब तक आप वहाँ पढाई करते हैं, लेकिन, वहाँ के एलुमिनाई, आप, जीवन-भर बने रहते हैं। स्कूल, कॉलेज से निकलने के बाद दो चीजें कभी खत्म नहीं होती हैं – एक, आपकी शिक्षा का प्रभाव, और दूसरा, आपका, अपने स्कूल, कॉलेज से लगाव। जब कभी एलुमिनाई आपस में बात करते हैं, तो, स्कूल, कॉलेज की उनकी यादों में, किताबों और पढाई से ज्यादा कैंपस में बिताया गया समय और दोस्तों के साथ गुजारे गए लम्हें होते हैं, और, इन्हीं यादों में से जन्म लेता है एक भाव इंस्टीट्यूशन के लिए कुछ करने का। जहाँ आपके व्यक्तित्व का विकास हुआ है, वहाँ के विकास के लिए आप कुछ करें इससे बड़ी खुशी और क्या हो सकती है? मैंने, कुछ ऐसे प्रयासों के बारे में पढ़ा है, जहाँ, पूर्व विद्यार्थियों ने, अपने पुराने संस्थानों को बढ़-चढ़ करके दिया है। आजकल, एलुमिनाई इसको लेकर बहुत सक्रिय हैं । आईआईटीयन्स ने अपने संस्थानों को कॉन्फ्रेंस सेंटर्स, मैनेजमेंट सेंटर्स, इन्क्यूबेशन सेंटर्स जैसे कई अलग-अलग व्यवस्थाएं खुद बना कर दी हैं । ये सारे प्रयास वर्तमान विद्यार्थियों के लर्निंग एक्सपीरियंस को इम्प्रूव करते हैं। आईआईटी दिल्ली ने एक एंडोमेंट फण्ड की शुरुआत की है, जो कि एक शानदार आईडिया है। विश्व की जानी-मानी यूनिवर्सिटी में इस प्रकार के एंडोमेंट्स बनाने का कल्चर रहा है , जो स्टूडेंट्स की मदद करता है। मुझे लगता है कि भारत के विश्वविद्यालय भी इस कल्चरको इंस्टीट्यूटिनालाइस करने में सक्षम है।
जब कुछ लौटाने की बात आती है तो कुछ भी बड़ा या छोटा नहीं होता है। छोटे से छोटी मदद भी मायने रखती है। हर प्रयास महत्वपूर्ण होता है। अक्सर पूर्व विद्यार्थी अपने संस्थानों के टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन में, बिल्डिंग के निर्माण में, अवार्ड्स और स्कॉलरशिप शुरू करने में, स्किल डेवलपमेन्ट के प्रोग्राम शुरू करने में, बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कुछ स्कूलों की ओल्ड स्टूडेंट एसोसियेशन ने मेंटोरशिप प्रोग्राम्स शुरू किए हैं। इसमें वे अलग-अलग बैच के विद्यार्थियों को गाइड करते हैं। साथ ही एजुकेशन प्रॉस्पेक्टस पर चर्चा करते हैं। कई स्कूलों में खासतौर से बोर्डिंग स्कूलों की एलुमिनाई एसोसिएशन बहुत स्ट्रॉन्ग है, जो, स्पोर्ट्स टूर्नामेंट और कम्युनिटी सर्विस जैसी गतिविधियों का आयोजन करते रहते हैं। मैं पूर्व विद्यार्थियों से आग्रह करना चाहूँगा, कि उन्होंने जिन संस्था में पढाई की है, वहाँ से, अपनी बॉन्डिंग को और अधिक मजबूत करते रहें। चाहे वो स्कूल हो, कॉलेज हो, या यूनिवर्सिटी। मेरा संस्थानों से भी आग्रह है कि एलुमिनाई एंगेजमेंट के नए और इन्नोवेटिव तरीकों पर काम करें।क्रिएटिव प्लेटफॉर्म्स डेवलप करें ताकि एलुमिनाई की सक्रिय भागीदारी हो सके। बड़े कॉलेज और यूनिवर्सिटीज ही नहीं, हमारे गांवो के स्कूल्सका भी, स्ट्रॉन्ग वाइब्रेंट एक्टिव एलुमिनाई नेटवर्क हो।”

प्रधानमंत्री इसके बाद बोले,

“मेरे प्यारे देशवासियो, 5 दिसम्बर को श्री अरबिंदो की पुण्यतिथि है।श्री अरबिंदो को हम जितना पढ़ते हैं, उतनी ही गहराई, हमें, मिलती जाती है। मेरे युवा साथी श्री अरबिंदो को जितना जानेंगें, उतना ही अपने आप को जानेंगें, खुद को समृद्ध करेंगें। जीवन की जिस भाव अवस्था में आप हैं, जिन संकल्पों को सिद्ध करने के लिए आप प्रयासरत हैं, उनके बीच, आप, हमेशा से ही श्री अरबिंदो को एक नई प्रेरणा देते पाएंगें, एक नया रास्ता दिखाते हुए पाएंगें। जैसे, आज, जब हम, ‘लोकल के लिए वोकल’ इस अभियान के साथ आगे बढ़ रहे हैं तो श्री अरबिंदो का स्वदेशी का दर्शन हमें राह दिखाता है। बांग्ला में एक बड़ी ही प्रभावी कविता है ।
‘छुई शुतो पॉय-मॉन्तो आशे तुंग होते।
दिय-शलाई काठि, ताउ आसे पोते।।
प्रो-दीप्ती जालिते खेते, शुते, जेते।
किछुते लोक नॉय शाधीन।।
यानि, हमारे यहां सुई और दियासलाई तक विलायती जहाज से आते हैं। खाने-पीने, सोने, किसी भी बात में, लोग, स्वतन्त्र नहीं है।
वो कहते भी थे, स्वदेशी का अर्थ है कि हम अपने भारतीय कामगारों, कारीगरों की बनाई हुई चीजों को प्राथमिकता दें। ऐसा भी नहीं कि श्री अरबिंदों ने विदेशों से कुछ सीखने का भी कभी विरोध किया हो। जहाँ जो नया है वहां से हम सीखें जो हमारे देश में अच्छा हो सकता है उसका हम सहयोग और प्रोत्साहन करें, यही तो आत्मनिर्भर भारत अभियान में, वोकल फ़ॉर लोकल मन्त्र की भी भावना है। ख़ासकर स्वदेशी अपनाने को लेकर उन्होंने जो कुछ कहा वो आज हर देशवासी को पढ़ना चाहिये। साथियो, इसी तरह शिक्षा को लेकर भी श्री अरबिंदो के विचार बहुत स्पष्ट थे। वो शिक्षा को केवल किताबी ज्ञान, डिग्री और नौकरी तक ही सीमित नहीं मानते थे। श्री अरबिंदो कहते थे हमारी राष्ट्रीय शिक्षा, हमारी युवा पीढ़ी के दिल और दिमाग की ट्रेनिंग होनी चाहिये, यानि, मस्तिष्क का वैज्ञानिक विकास हो और दिल में भारतीय भावनाएं भी हों, तभी एक युवा देश का और बेहतर नागरिक बन पाता है, श्री अरबिंदो ने राष्ट्रीय शिक्षा को लेकर जो बात तब कही थी, जो अपेक्षा की थी आज देश उसे नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के जरिए पूरा कर रहा है।”

पीएम श्री मोदी ने कहा,

“मेरे प्यारे देशवासियों, भारत में खेती और उससे जुड़ी चीजों के साथ नए आयाम जुड़ रहे हैं। बीते दिनों हुए कृषि सुधारों ने किसानों के लिए नई संभावनाओं के द्वार भी खोले हैं। बरसों से किसानों की जो माँग थी, जिन मांगो को पूरा करने के लिए किसी न किसी समय में हर राजनीतिक दल ने उनसे वायदा किया था, वो मांगे पूरी हुई हैं। काफ़ी विचार विमर्श के बाद भारत की संसद ने कृषि सुधारों को कानूनी स्वरुप दिया। इन सुधारों से न सिर्फ किसानों के अनेक बन्धन समाप्त हुये हैं , बल्कि उन्हें नये अधिकार भी मिले हैं, नये अवसर भी मिले हैं। इन अधिकारों ने बहुत ही कम समय में, किसानों की परेशानियों को कम करना शुरू कर दिया है। महाराष्ट्र के धुले ज़िले के किसान, जितेन्द्र भोइजी ने, नये कृषि कानूनों का इस्तेमाल कैसे किया, ये आपको भी जानना चाहिये। जितेन्द्र भोइजी ने मक्के की खेती की थी और सही दामों के लिए उसे व्यापारियों को बेचना तय किया। फसल की कुल कीमत तय हुई करीब तीन लाख बत्तीस हज़ार रूपये। जितेन्द्र भोइ को पच्चीस हज़ार रूपये एडवांस भी मिल गए थे। तय ये हुआ था कि बाकी का पैसा उन्हें पन्द्रह दिन में चुका दिया जायेगा। लेकिन बाद में परिस्थितियां ऐसी बनी कि उन्हें बाकी का पेमेन्ट नहीं मिला। किसान से फसल खरीद लो, महीनों – महीनों पेमेन्ट न करो, संभवतः मक्का खरीदने वाले बरसों से चली आ रही उसी परंपरा को निभा रहे थे। इसी तरह चार महीने तक जितेन्द्र जी का पेमेन्ट नहीं हुआ। इस स्थिति में उनकी मदद की सितम्बर मे जो पास हुए हैं, जो नए कृषि क़ानून बने हैं – वो उनके काम आये। इस क़ानून में ये तय किया गया है, कि फसल खरीदने के तीन दिन में ही, किसान को पूरा पेमेन्ट करना पड़ता है और अगर पेमेन्ट नहीं होता है, तो, किसान शिकायत दर्ज कर सकता है। कानून में एक और बहुत बड़ी बात है, इस क़ानून में ये प्रावधान किया गया है कि क्षेत्र के एस.डी.एम को एक महीने के भीतर ही किसान की शिकायत का निपटारा करना होगा। अब, जब, ऐसे कानून की ताकत हमारे किसान भाई के पास थी, तो, उनकी समस्या का समाधान तो होना ही था, उन्होंने शिकायत की और चंद ही दिन में उनका बकाया चुका दिया गया। यानि कि कानून की सही और पूरी जानकारी ही जितेन्द्र जी की ताकत बनी। क्षेत्र कोई भी हो, हर तरह के भ्रम और अफवाहों से दूर, सही जानकारी, हर व्यक्ति के लिए बहुत बड़ा सम्बल होती है। किसानों में जागरूकता बढ़ाने का ऐसा ही एक काम कर रहे हैं, राजस्थान के बारां जिले में रहने वाले मोहम्मद असलम जी । ये एक किसान उत्पादक संघ के सीईओ भी हैं। जी हाँ, आपने सही सुना, किसान उत्पादक संघ के सीईओ। उम्मीद है, बड़ी बड़ी कम्पनियों के सीईओज को ये सुनकर अच्छा लगेगा कि अब देश के दूर दराज वाले इलाको में काम कर रहे किसान संगठनों में भी सीईओज होने लगे हैं, तो साथियो, मोहम्मद असलम जी ने अपने क्षेत्र के अनेकों किसानों को मिलाकर एक व्हाट्सएप ग्रुप बना लिया है। इस ग्रुप पर वो हर रोज़, आस-पास की मंडियो में क्या भाव चल रहा है, इसकी जानकारी किसानों को देते हैं। खुद उनका एफपीओ भी किसानों से फ़सल खरीदता है, इसलिए, उनके इस प्रयास से किसानों को निर्णय लेने में मदद मिलती है।”

प्रधानमंत्री श्री मोदी ने आगे कहा,

“साथियो, जागरूकता है, तो, जीवंतता है। अपनी जागरूकता से हजारों लोगों का जीवन प्रभावित करने वाले एक कृषि उद्यमी श्री वीरेन्द्र यादव जी हैं। वीरेन्द्र यादव जी, कभी ऑस्ट्रेलिया में रहा करते थे। दो साल पहले ही वो भारत आए और अब हरियाणा के कैथल में रहते हैं। दूसरे लोगों की तरह ही, खेती में पराली उनके सामने भी एक बड़ी समस्या थी। इसके सॉल्यूशन के लिए बहुत व्यापक स्तर पर काम हो रहा है, लेकिन, आज, ‘मन की बात’ में, मैं, वीरेन्द्र जी को विशेष तौर पर जिक्र इसलिए कर रहा हूँ, क्योंकि, उनके प्रयास अलग हैं, एक नई दिशा दिखाते हैं। पराली का समाधान करने के लिए वीरेन्द्र जी ने, पुआल की गांठ बनाने वाली स्ट्रॉ बेलर मशीन खरीदी। इसके लिए उन्हें कृषि विभाग से आर्थिक मदद भी मिली। इस मशीन से उन्होंने पराली के गठठे बनाने शुरू कर दिया। गठठे बनाने के बाद उन्होंने पराली को एग्रो एनर्जी प्लान्ट और पेपर मिल को बेच दिया। आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि वीरेन्द्र जी ने पराली से सिर्फ दो साल में डेढ़ करोड़ रुपए से ज्यादा का व्यापार किया है, और उसमें भी, लगभग 50 लाख रुपये मुनाफा कमाया है। इसका फ़ायदा उन किसानों को भी हो रहा है, जिनके खेतों से वीरेन्द्र जी पराली उठाते हैं। हमने कचरे से कंचन की बात तो बहुत सुनी है, लेकिन, पराली का निपटारा करके, पैसा और पुण्य कमाने का ये अनोखा उदाहरण है। मेरा नौजवानों, विशेषकर कृषि की पढ़ाई कर रहे लाखों विद्यार्थियों से आग्रह है, कि, वो अपने आस-पास के गावों में जाकर किसानों को आधुनिक कृषि के बारे में, हाल में हुए कृषि सुधारो के बारे में, जागरूक करें। ऐसा करके आप देश में हो रहे बड़े बदलाव के सहभागी बनेंगे।”

मन की बात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आगे कहा,

“मेरे प्यारे देशवासियो,
‘मन की बात’ में हम अलग-अलग, भांति-भांति के अनेक विषयों पर बात करते हैं। लेकिन, एक ऐसी बात को भी एक साल हो रहा है, जिसको हम कभी खुशी से याद नहीं करना चाहेंगे। करीब-करीब एक साल हो रहे हैं, जब, दुनिया को कोरोना के पहले केस के बारे में पता चला था। तब से लेकर अब तक, पूरे विश्व ने अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं। लॉक डाउन के दौर से बाहर निकलकर, अब, वैक्सीन पर चर्चा होने लगी है । लेकिन, कोरोना को लेकर, किसी भी तरह की लापरवाही अब भी बहुत घातक है। हमें, कोरोना के ख़िलाफ़ अपनी लड़ाई को मज़बूती से जारी रखना है।”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आगे कहा,

“साथियो, कुछ दिनों बाद ही, 6 दिसम्बर को बाबा साहब अम्बेडकर की पुण्य-तिथि भी है। ये दिन बाबा साहब को श्रद्धांजलि देने के साथ ही देश के प्रति अपने संकल्पों, संविधान ने, एक नागरिक के तौर पर अपने कर्तव्य को निभाने की जो सीख हमें दी है, उसे दोहराने का है। देश के बड़े हिस्से में सर्दी का मौसम भी जोर पकड़ रहा है। अनेक जगहों पर बर्फ़-बारी हो रही है। इस मौसम में हमें परिवार के बच्चों और बुजुर्गों का, बीमार लोगों का विशेष ध्यान रखना है, खुद भी सावधानी बरतनी है। मुझे खुशी होती है, जब मैं यह देखता हूँ कि लोग अपने आस-पास के जरूरतमंदों की भी चिंता करते हैं। गर्म कपड़े देकर उनकी मदद करते हैं। बेसहारा जानवरों के लिए भी सर्दियाँ बहुत मुश्किल लेकर आती हैं। उनकी मदद के लिए भी बहुत लोग आगे आते हैं। हमारी युवा-पीढ़ी इस तरह के कार्यों में बहुत बढ़-चढ़ कर सक्रिय होती है। साथियों, अगली बार जब हम, ‘मन की बात’ में मिलेंगे तो 2020 का ये वर्ष समाप्ति की ओर होगा। नई उम्मीदें, नये विश्वास के साथ, हम आगे बढ़ेंगे। अब, जो भी सुझाव हों, आइडियाज हों, उन्हें मुझ तक जरूर साझा करते रहिए। आप सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। आप सब, स्वस्थ रहें, देश के लिए सक्रिय रहें। बहुत-बहुत धन्यवाद।”

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