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आकाशवाणी मथुरा के पूर्व वरिष्ठ उदघोषक और साहित्यकार डा. सत्यदेव आजाद की पुस्तक ‘वाक कला’ का हुआ विमोचन

ब्रज पत्रिका, मथुरा। आकाशवाणी मथुरा के पूर्व वरिष्ठ उदघोषक और साहित्यकार डा. सत्यदेव आजाद ने प्रसारण और रचना प्रक्रिया के परिप्रेक्ष्य में एक पुस्तक लिखी है, जिसका नाम ‘वाक कला’ है। मथुरा के ब्रज कला केंद्र में ‘वाक कला’ नामक इस पुस्तक का विमोचन किया गया। समारोह की अध्यक्षता नगर के सुप्रसिद्ध चिकित्सक डा. सत्यमित्र ने की, और पुस्तक की सार्थकता पर प्रकाश डाला।

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि दिल्ली से पधारे पूर्व वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी एवं सुप्रसिद्ध साहित्यकार डा. हरि सिंह पाल थे। इस अवसर पर ब्रज कला केंद्र के राम प्रकाश बंसल , खेमचन्द्र यादव, सीमा, सुमन पाठक, निधि मित्तल, ईशा मित्तल, प्रदीप भारद्वाज, अवधेश शर्मा, राधेलाल, विजय मित्तल सहित ब्रज के तमाम साहित्यकार और साहित्यप्रेमी भी मौजूद रहे।

आकाशवाणी और दूरदर्शन मथुरा के वरिष्ठ प्रभारी अधिकारी सत्यब्रत सिंह और आकाशवाणी आगरा के कार्यक्रम अधिकारी मुकेश वर्मा भी उपस्थित रहे। वक्ताओं ने वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पुस्तक की महत्ता पर उदगार व्यक्त किये। कार्यक्रम का संचालन आकाशवाणी मथुरा के प्रस्तोता राजेश शर्मा ने किया।

पुस्तक-‘वाक कला ’
लेखक-डा. सत्यदेव आज़ाद
पुस्तक समीक्षक-मुकेश वर्मा

कीर्ति, काव्य और ऐश्वर्य की श्रेष्ठता उसके सर्वहिताय एवं मांगलिक प्रयोजन में निहित है। रचनाकार का दृष्टिकोण सर्वभूत हिते रता होने पर ही उसकी सार्थकता होती है। हिन्दी साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान् और अपनी मधुर वाणी के धनी डा. सत्यदेव आज़ाद ने अपनी सद्यः रचित पुस्तक ‘वाक कला’ में शब्द को ब्रह्म की संज्ञा देते हुए बताया है कि परम सत्ता ब्रह्म ही स्वतंत्र सक्रिय चित्त शक्ति है। वस्तुतः चेतना ही जीवन है जिसका आधार है वाणी। इसीलिए डा. आज़ाद ने आलोच्य पुस्तक ‘वाक कला’ का आरम्भ वाग देवता की स्तुति से किया है। अपनी बात में भी लेखक का विश्वास है कि प्रिय व हितकारी वचन वाणी का तप है। कुल 96 पृष्ठों में सिमटी इस पुस्तक में 29 सारगर्भित तथा व्याकरण सम्मत सोपान हैं।

अंत के लगभग 20 पृष्ठों के परिशिष्ट में आकाशवाणी का अपना इतिहास है, उसकी यात्रा है, उसके प्राच्य पुरोधा हैं, स्वातन्त्रय आन्दोलन में प्रदत्त योगदान है। मुख्य राजनेताओं, कवियों और कलाकारों के दुर्लभ सचित्र प्रसंग हैं और साथ में है अमीन सयानी की स्मृति से लेकर ‘मन की बात’ तक का एक सिलसिला। आर. जे. में तलाशते दोस्ती और कम्युनिटी रेडियो। निसंदेह इस पुस्तक के माध्यम से वाणी के जादूगर उदघोषकों और समस्त प्रस्तोताओं को क्षितिज से पार भी अपने पर पसारने का अवसर प्राप्त हो सकेगा।

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