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ब्रज में परंपराओं के निर्वाह के साथ मनाया गया भाई-बहिन के प्रेम का प्रतीक त्यौहार ‘रक्षाबंधन’

ब्रज पत्रिका। रक्षा बंधन का पावन पर्व समूचे ब्रज में लोक परंपराओं के निर्वाह के साथ में मनाया गया। हर्षोल्लास के माहौल में बहिनों ने अपने-अपने भाइयों को राखी बांधी। हालांकि कोरोना के खतरों का प्रभाव भी त्यौहार पर पड़ा। कई भाइयों की बहिनें नहीं आ सकीं। वहीं कई भाई और बहिन को तो मास्क पहनकर राखी बांधने की परंपरा का निर्वाह करते देखा गया। ब्रज के जिन मंदिरों में भीड़भाड़ रहा करती थी वो भी कोरोना के कारण सुने रहे। सिर्फ पुजारियों द्वारा ही पूजा की गईं। सोशल मीडिया के जरिये ऑनलाइन दर्शनों का जरूर इंतज़ाम किया गया था।

कोरोना के कारण आवाजाही प्रभावित रही। हालांकि प्रदेश सरकार ने बसों में बहिनों के लिए सफर मुफ़्त कर दिया था, इसके बावजूद कोरोना के खतरों के चलते बहिनों ने बाहर निकलना उचित नहीं समझा। इसी तरह अधिकतर भाई भी अपनी बहिनों से मिलने के लिए घरों से बाहर नहीं निकले। इसने हालांकि त्यौहार के उल्लास पर गहरा असर डालकर इसका मज़ा छीन लिया।

भाई और बहिन का ये त्यौहार रक्षाबंधन, यूँ तो हर साल की तरह ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। इस मौके पर लोक परंपराओं का निर्वाह भी किया गया। मगर इस वर्ष थोड़े से मुश्किल वक़्त में भाइयों ने बहिनों के लिए और बहिनों ने अपने भाइयों की सेहत की बरकरारी की कामना भी की है। इसके अलावा रक्षाबंधन पर कोरोना को ध्यान में रखकर एहतियात भी बरती गयीं।

समाजसेवी नरेश पारस ने त्यौहार के अनुभव साझा करते हुए बताया,

“हमारी बहन पुष्पा ब्रजभूमि, मथुरा में रहती हैं। उनसे रक्षा बंधन के इस त्यौहार पर राखी बँधवाने गए। चूँकि कोरोना महामारी चौतरफा फैल रही है, एहतियात भी बरती गयी। हमने बच्चों श्वेता व तरुण को मास्क पहनने की आदत भी डाल दी है। मास्क के साथ ही रक्षाबंधन पर राखी बँधवाई।”

भाई-बहिन के इस पावन त्यौहार को मनाने के बाद मथुरा निवासी पुष्पा ने बताया,

“अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं का निर्वाह हर भारतीय के परिवार में हुआ है। रक्षा बंधन पर बहिनों द्वारा रक्षा सूत्र भाई की रक्षा की कामना के साथ बान्धा जाता है। इसके साथ भाई बहिन की रक्षा का संकल्प लेते हैं। इसीलिए इस वर्ष उनके कोरोना से रक्षा की भी हमने कामना की है।”

इस वर्ष न झूले ज्यादा दिखे न मल्हार ही सुनाई दिए

इस वर्ष न तो झूले ही दिखाई दिए और न मल्हारों के स्वर ही सुनाई दिए। हालांकि मेहंदी से जरूर बहिनों के हाथ महकते हुए महसूस हुए। रक्षाबंधन के मौके पर त्यौहार का जो उल्लास दिखाई देता था, वह कोरोना ने छीन लिया। लोगों की इस त्यौहार पर मिलने-जुलने की प्रवृत्ति पर भी कोरोना का ये प्रभाव दिखायी दिया है। इस सबंध में सरकार के भी निर्देश थे कि सभी लोग अपने-अपने घरों में ही त्यौहार को मनाएं। इसका लोगों ने जनहित में पालन भी किया। इसीलिए सड़कों पर ज्यादा लोग नहीं दिखे।

घेवर की रही कमी, हलवाइयों की दुकानों पर कतारें

रक्षाबंधन के त्यौहार पर एक और फर्क दिखाई दिया इस वर्ष, इस वर्ष बाजारों में भी वो पहले जैसी रौनक नहीं दिखाई दी। हालांकि हर जगह पर मिठाई की दुकानों पर अच्छी-खासी भीड़ थी। वहाँ भी लाइन में लगकर ही लोगों ने खरीददारी की। लोगों को कई कई घंटे का इंतज़ार करना पड़ा। इसके साथ ही घेवर की किल्लत ही रही।

मिठाई वालों के यहाँ घेवर कम बनने के कारण इसकी बिक्री पर तो असर पड़ा ही साथ ही ग्राहकों को भी उनकी जरूरत के अनुसार घेवर नहीं मिल सका, उनको जो मिल सका, उसी से संतोष करना पड़ा। ऐसा कोरोना के कारण बाज़ार एक दिन यानि शनिवार को मिनी लॉक डाउन के कारण नहीं खुलने से हुआ। ये गनीमत रही कि इस मिनी लॉक डाउन के दूसरे दिन यानि रविवार को मिठाई विक्रेताओं को अपना माल यानि कि घेवर और अन्य मिठाईयों को तैयार करने की अनुमति मिलने से हलवाइयों ने कुछ माल बना लिया था, जिसकी कि बिक्री सोमवार को रक्षाबंधन के त्यौहार पर कर ली गयी। वर्ना घेवर के लिए तरस जाते लोग।

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