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अयोध्या में बन रहा श्रीराम मन्दिर मनुष्यों द्वारा बनाया हुआ, मनुष्यता का मन्दिर होगा – श्री पुंडरीक गोस्वामी जी

ब्रज पत्रिका। ऐसा मनोरम दिवस जिसका महोत्सव सम्पूर्ण विश्व में मनाया गया। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु जी की परम्परा का प्रतिनिधित्व करते हुए श्रीगौड़ीय सम्प्रदाय के आचार्य प्रवर पूज्य भी श्रीराम जन्मभूमि शिलान्यास पूजन के शुभ अवसर पर, इसमें शामिल होने के लिए अयोध्या पधारे।

यह ऐतिहासिक कृत्य जो लगभग पाँच शताब्दियों से जिसकी प्रतीक्षा थी। श्रीवृन्दावन की रज, उद्धव गोपी संवाद स्थल और श्रीराधारमण मन्दिर में आज से ५०० वर्ष पूर्व जो श्रीपाद श्रीगोपाल भट्ट गोस्वामी जी महाराज के द्वारा प्रज्ज्वलित अखण्ड अग्नि का भस्म मिश्रित रज को भूमि पूजन के लिए ले जाने का क्रम रहा।

श्री पुंडरीक गोस्वामी जी ने बताया कि,

“ये भूमिपूजन मन्दिर मात्र का नहीं बल्कि सम्पूर्ण वैदिक सनातन राष्ट्र का है, सनातन धर्म का है। ये पूजन मात्र एक जन्मस्थान का नहीं, बल्कि हिन्दू राष्ट्र का पूजन है। सम्पूर्ण आध्यात्मिक ऊर्जा का पूजन है। सकारात्मकता का पूजन है और सबसे बड़ा आकर्षण है अजन्मा जहाँ जन्म लिया है, उस भूमि का पवित्र पूजन है। जिसके पीछे एक बहुत विशाल धार्मिक, राजनैतिक और समर्पण से युक्त भाव अनन्त वर्षों से सम्पन्न हो रही है। एक मन्दिर मात्र आस्था का ही केन्द्र नहीं है विज्ञान का भी केन्द्र है। समाज के विकास का केन्द्र है। मन्दिर चारों वर्णों को पोषित करता है। इस राममन्दिर कि स्थापना अयोध्या को हर रूप से कितना विकसित करेगी भविष्य में हम सभी देखेंगे।
धन्य अवधपुरी जो राम बखानी।।”

रामजन्म भूमि मन्दिर निर्माण कार्य के शुभारम्भ में ही अयोध्या नगरी को वैसे ही सजाया गया जैसे त्रेता में वनवास पश्चात् भगवान के शुभागमन पर सजाया गया था।
रामराज्य बैठे त्रैलोका, हरषित भये गए सब सोका।।

माननीय श्री प्रधानमन्त्री जी के प्रति श्रीगुरुदेव भगवान का भावोद्गार –

“मैंने ये अतुलनीय दृश्य प्रत्यक्ष देखा है। अत्यंत भावुक करने वाला था। समस्त संतो के नेत्र सजल थे। मैं रोमांचित था। कल के सम्पूर्ण प्रसंग में ये लीला अद्वितीय थी। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का नायक, सम्पूर्ण विश्व के अनंत ऐश्वर्य जिसने चरणो मैं है वो प्रधान नायक श्री रघुनाथ के चरणो में नतमस्तक है।
।।भूपाल मौलीमढी मंडित पाद पीठ।।
ये दृश्य मेरे स्मृति पटल पर सदा अंकित रखेगा।
श्री राम चंद्र चरणम शरणम प्रपधे।।”

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