जिंदगी का गुणा-भाग, जोड़-घटाव, जो भी सही, पर लाइफ में एक बार अपनी मुलाकात खुद से भी तो होनी चाहिए न
ब्रज पत्रिका, आगरा। आगरा के रंगकर्मियों ने फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में भी अपना हुनर दिखाकर ख़ुद की प्रतिभा का लोहा मनवाया है। तकरीबन 6 मिनिट 28 सेकंड कीशार्ट फ़िल्म ‘एक था बैगर’ को एक सार्थक संदेश संग सोशल मीडिया पर शनिवार 18 जुलाई को रिलीज़ किया गया। इस फ़िल्म की कहानी मेले-तमाशों, भंडारों, मंदिरों से होती हुई विभिन्न घटनाक्रमों को समेटती हुई आगे बढ़ती है। अंत में फ़िल्म की कहानी एक बेहद ही रोमांचक तरीके से दिल्ली पहुंच जाती है, और वहीं इस फ़िल्म का जबर्दस्त क्लाइमेक्स भी आता है।
शार्ट फ़िल्म ‘एक था बैगर’ के मुख्य कलाकार रंगकर्मी चंद्रशेखर हैं, जिनका अभिनय बेहद सधा हुआ, उम्दा व काबिल-ए-तारीफ है। अन्य कलाकारों में निर्मल व सौरभ का अभिनय शानदार है।
शार्ट फ़िल्म ‘एक था बैगर’ का मानव मन पर गहरे स्तर तक असर करने वाला कांसेप्ट संस्कृति प्रोडक्शन्स के जितेंद्र शर्मा ने तैयार किया। कर्णप्रिय संगीत के साथ शार्प एडिटिंग, कम्पाइलिंग व डबिंग को अन्जाम दिया क्रेज़ी क्रिएटर्स के सोनल उपाध्याय ने। सिनेमेटोग्राफी देखते ही बनती है, जिसका श्रेय जाता है ध्वनि म्यूजिक के डायरेक्टर दीपक जैन को। फ़िल्म के प्रोडक्शन हेड हैं डी-मीडिया प्रोडक्शन्स के संस्थापक निदेशक गौरव शर्मा रहे, जिन्होंने शुरू से आखिर तक प्रोजेक्ट में जीवंतता बनाये रखी, और इससे जुड़ी छोटी-बड़ी हर कड़ी को जोड़े रखा। क्रिएटिव हेड सचिता मेहरोत्रा ने स्क्रीन प्ले खूबसूरती से तैयार किया। निर्देशन रंगकर्मी और लोकप्रिय एंकर शिवेंद्र मेहरोत्रा ने किया। उन्होंने फ़िल्म में सिर्फ छह मिनट में बहुत से सीन्स और लोकेशन्स दर्शकों तक पहुंचाने की कोशिश की है।
इस शॉर्ट फ़िल्म के मेकर्स ने फ़िल्म युवा कलाकार स्व. अखिल शर्मा को समपित की है जो इस फ़िल्म के डीओपी और मेकअप आर्टिस्ट भी रहे हैं। लॉन्चिंग की पूर्व सांध्य में 17 जुलाई को एक स्पेशल प्रीव्यू रखा गया, जिसमें मुख्य अतिथि के तौर ओर अखिल शर्मा के पिता पंडित राज नारायण शर्मा खासतौर से मौजूद रहे। यह शार्ट फ़िल्म ‘एक था बेगर’ दिनांक 18 जुलाई 2020 से डी मीडिया प्रोडक्शन्स के ऑफिशियल पेज के साथ-साथ उनके ही यू-ट्यूब चैनल पर उपलब्ध रहेगी।
फ़िल्म के निर्माता-निर्देशक शिवेंद्र मेहरोत्रा ने ब्रज पत्रिका को बताया,
“शार्ट फ़िल्म ‘एक था बेगर’ सामाजिक सरोकारों से जुड़ा संदेश सफलतापूर्वक जन-जन तक पहुचाने में सफल रही है। यह फ़िल्म आगरा की रियल लोकेशन पर शूट की गयी है। चूंकि फ़िल्म के लिए कुछ सीन्स में रियल लोकेशन और भीड़ की ज़रूरत थी, इसलिए फ़िल्म की शूटिंग के लिए यूनिट को कई-कई दिन का इंतज़ार करना पड़ता था। कठिन परिश्रम का असर ही फ़िल्म की खूबसूरती को और बढ़ाता नज़र आता है। फ़िल्म विज़ुअली इतनी रिच है कि बड़े कैमरों और बहुत बड़े सेटअप की कमी दर्शकों को महसूस ही नहीं होने देती।”
फ़िल्म की कहानी के विषय में लेखिका सचिता मेहरोत्रा ने ब्रज पत्रिका को बताया,
“यह फ़िल्म कहना चाहती है कि इंसान कोई भी मुकाम हासिल क्यूँ न कर ले, लेकिन खुद को पहचानने के लिए कुछ ऐसे लम्हों की ज़रूरत होती है जहां वो सिर्फ अपनी तरह की ज़िन्दगी जीना चाहता है। जैसा कि हम सबने कोरोना के चलते हुए लॉक डाउन के दौरान महसूस भी किया है। जिंदगी का गुणा-भाग, जोड़-घटाव, जो भी सही…पर लाइफ में एक बार अपनी मुलाकात खुद से भी तो होनी चाहिए न।”
इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार चंद्रशेखर ने ब्रज पत्रिका को बताया,
“फ़िल्म में काम कर बहुत सीखने को मिला, मसलन कैमरे के सामने कहानी के अनुसार कैसे शॉट देने हैं, कैमरामैन और डायरेक्टर के साथ समन्वय बनाना। कटु अनुभव भी हुए। भिखारियों ने साथ न बिठाया क्योंकि उनके लिए मैं नकली भिखारी था। वे समझ रहे थे शायद उनका मजाक उड़ाने के लिए फ़िल्म बना रहे हैं। भयंकर गर्मी में शॉट दे रहे थे, मेकअप बार-बार हट जाता था। मज़ेदार बात ये हुलिया ऐसा था कि एक बार कुत्ते पीछे पड़ गए। लेकिन अंत भला तो सब भला।”