अनूठे साहित्यिक कार्यक्रम ‘पैरोडी काव्य समारोह’ में हिस्सा लें
ब्रज पत्रिका, आगरा। साहित्य संगीत संगम और संस्थान संगम के संयुक्त तत्वावधान में एक विशिष्ट काव्य आयोजन श्रंखला का आरंभ 10 अगस्त से किया जा रहा है। आपको किसी भी कवि की चर्चित पंक्ति को लेकर एक पैरोडी रचना करनी है यह पैरोडी उर्दू के शायर के शेर के आधार पर हो सकती है, हिंदी के चर्चित कवि के चर्चित गीत की प्रथम पंक्ति के आधार पर हो सकती है। इसमें सीमा 16 पंक्तियां हैं। इन्हें एक ओर लिखकर भेजना है तो दूसरी ओर इसका वीडियो प्रस्तुत करना है।
पांच अगस्त तक हिंदुस्तान के किसी शायर या कवि की चर्चित पंक्तियों में से प्रथम पंक्ति लेकर रचना करें और भेज दें। रचना का मूड सिर्फ और सिर्फ हास्य-व्यंग्य हो। शामिल होने के लिए कोई शर्त नहीं है, न कोई शुल्क है। प्रविष्टियां डॉ. राजेन्द्र मिलन, सुशील सरित और अशोक अश्रु के व्यक्तिगत पटल पर भेज सकते हैं। विस्तृत जानकारी सुशील सरित से 9411085159 पर ली जा सकती है।
उन्होंने कहा पाँच अगस्त तक प्राप्त सभी वीडियोज को लेकर 10 अगस्त को प्रथम आयोजन करेंगे। विशेष बात यह कि इस श्रृंखला को अगस्त से लेकर दिसंबर तक लगातार प्रत्येक माह की 10 तारीख को चलाया जाएगा। इन्हीं पाँच माह में जो भी प्रतिभागी इस रचना श्रृंखला में शामिल होंगे, उनसे उनकी उन रचनाओं को लेकर एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित करेंगे। हालांकि एक आग्रह अवश्य रहेगा कि पुस्तक प्रकाशन बाद उस पुस्तक की कम से कम 2 प्रतियां आपको खरीदनी होंगी।
कार्यक्रम संयोजक सुशील सक्सेना ‘सरित’ ने कहा,
“विशुद्ध फिल्मी गीतकारों के गीतों को हम इसमें शामिल नहीं करेंगे। लेकिन यदि किसी साहित्यकार का कोई गीत फिल्मों में आया है, उदाहरणार्थ सोम ठाकुर, गोपाल दास नीरज, गोपाल सिंह नेपाली आदि तो उसका स्वागत है। संभवत: आगरा में प्रथम बार इस तरह का अनूठा प्रयोग किया जा रहा है, उत्तर प्रदेश में भी शायद ये पहला होगा।”
यह सूचना प्रथम बार 10 जुलाई को हमने पटल पर प्रेषित की थी। उसके बाद कई फोन आए और कई मित्रों ने इस विषय में गहन पूछताछ की तो सभी के लिए मैं स्पष्ट करना चाहूंगा कि,
1-पैरोडी लेखन हिंदी हास्य-व्यंग के अंतर्गत आने वाली एक विधा है, और आमतौर पर इससे पूर्व में उर्दू में शायरों ने खूब बतौर प्रयोग, इसे शुरू किया।
2-हिंदी में हमारे कुछ कवियों ने पैरोडी मंच पर खूब सुनाई, और वे चर्चित हुए। मंच पर फिल्मी गीतों की धुन के आधार पर ही अधिकतर पैराडियाँ प्रस्तुत की गईं।
3-पदम अलबेला, हमारे वरिष्ठ कवियों में से एक हैं, उनका नाम इस दिशा में बेहद चर्चित रहा। फिल्मी धुनों पर आधारित उनकी पैरोडियां काफी चर्चित रहीं। वह लोकप्रिय भी हुए।
4-कुमार अनुपम ने भी कई प्रयोग किए, उन्होंने उर्दू के शायरों के शेरों को लेकर और हिंदी के कुछ गंभीर किस्म के कवियों की रचनाओं को लेकर पैरोडियों की रचना की, और भी कई कवि है जिन्होंने ऐसे प्रयोग किए।
5-कुल मिलाकर तो दो बातें स्पष्ट हुईं, एक ओर तो वे रचनाकार हैं, जिन्होंने फिल्मी गीतों की धुनों पर पैरोडियां लिखी और प्रस्तुत कीं। दूसरी ओर वे रचनाकार जिन्होंने किसी कवि शायर की रचना की प्रथम पंक्ति को लेकर उस पर पूरी पैरोडी प्रस्तुत की, दोनों स्थितियों में रचना का मूड, हास्य-व्यंग्य रहा, अर्थात हास्य-व्यंग्य पैरोडी की प्रथम शर्त है।
उदाहरण स्वरूप वरिष्ठ कवि प्रताप दीक्षित की मशहूर रचना “जिंदगी कहां से कहां हमें खींच लाई है, एक ओर कुआं यहां, एक ओर खाई है” पर सुशील सरित ने पैरोडी लिखी इसमें प्रथम पंक्ति रचनाकार की, शेष पंक्तियां सुशील सरित की हैं-
जिंदगी कहां से कहां हमें खींच लाई है
तेरह जने घर में पर एक ही रजाई है
ऐसा भी नहीं है कि पैसे हैं पास नहीं
बंद पड़ी शाप रुई जहां पे धुनवाई है
घर में नौ बच्चे हैं, बीवी ,अम्मा बाबू
ऊपर से टपक पड़ा बीवी का भाई है
कैसे एडजस्ट करूं ऑफिस में भी भैया
धेला भर हुई नहीं ऊपर की कमाई है
कर दिए कोरोना ने सीधे अच्छे-अच्छे
तीसमारखाओं की ऐसी नस दवाई है
तरस रहे चम्मच भर छाछ ना नसीब उन्हें
बचपन से ही जिनके मुंह लगी मलाई है
बच्चों को मोबाइल देना नहीं बीवी से
कल तक होती आई इसी पर लड़ाई है
आज कहा एंड्रॉयड लाकर दो बच्चों को
वरना तुम्हारी समझो शामत ही आई है।