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“नये ज़माने की रंगत में ढल के देखेंगे, हम अपने आप को थोड़ा बदल के देखेंगे, सुना है प्यार की राहें बड़ी कंटीली हैं, तुम्हारे साथ ज़रा इन पे चल के देखेंगे।”

आर. डी. पब्लिक स्कूल में अखिल भारतीय हिंदीं कवि सम्मेलन में देश के ख्यातिप्राप्त कवियों नें पढ़ी कविताऐं।

ब्रज पत्रिका, आगरा। शमशाबाद रोड स्थित आर. डी. पब्लिक स्कूल में अखिल भारतीय हिंदीं कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का स्कूल के चेयरमैन हमवीर सिंह ने माँ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण करके उदघाटन किया। स्कूल की प्रिंसिपल वंदना गोयल ने अतिथियों का परिचय कराया। ब्रह्माकुमारी स्पिरिचुअल मिशन के वक्ताओं ने अपने-अपने मन के उदगार व्यक्त किए।

ईशान देव साहित्यिक क्लब द्वारा आरडी पब्लिक स्कूल के सहयोग से स्कूल के ही प्रांगण में आयोजित इस कवि सम्मेलन में स्कूल के चेयरमैन हमवीर सिंह, निदेशक चारु सिंह, सत्या सिंह, सीए आर.के. सिंह, प्रधानाचार्या वंदना गोयल, ब्रजेश यादव (निदेशक, लघु उद्योग मंत्रालय भारत सरकार), वरिष्ठ पत्रकार डॉ. महेश धाकड़ आदि भी मौजूद थे। मंच पर कवियों का स्वागत ग्लैमर लाइव फिल्म्स के निदेशक सूरज तिवारी, ईशान साहित्यिक क्लब के आचार्य संतोष सारस्वत, विनोद यादव, लक्ष्मी शर्मा, डॉ. रिंकी यादव, मुकेश कुशवाह, पिंकी यादव, रोहित सिंह आदि ने माला पहना कर, शॉल ओढ़ाकर और स्मृति चिन्ह प्रदान करके किया।

काव्य मंच का संचालन दिल्ली से आये डॉ. प्रवीण शुक्ल ने किया। डॉ. प्रवीण शुक्ला ने अपनी रचना सुनाई-

“कैसे कह दूँ कि थक गया हूँ मैं,
जाने किस-किस का हौसला हूँ मैं।”

इटावा से आये डॉ. राजीव राज ने भी अपनी कविता सुनाकर भरपूर तालियाँ पायीं-

“हाँ कुछ-कुछ वैसे जैसे दीपक बहते हैं पानी में 
दो नैना हैं अपनी प्रेम कहानी में।”

राजस्थान के दौसा से पधारीं सपना सोनी ने सुनाया-

“नये ज़माने की रंगत में ढल के देखेंगे,
हम अपने आप को थोड़ा बदल के देखेंगे,
सुना है प्यार की राहें बड़ी कंटीली हैं,
तुम्हारे साथ ज़रा इन पे चल के देखेंगे।”

राजस्थान के तिजारा से आये डॉ. कमलेश बसंत ने सुनाया-

“देह पूरी लड़ी बस मिली बोटियाँ,
इस शहादत में खेली गई गोटियाँ,
तेरे घर पे न चूल्हा जला बीस दिन,
पर सियासत में सेकी गयीं रोटियाँ।”

दिल्ली से आये मोहित शौर्य ने सुनाया-

“दिलों की महफिलों में भी दिलवाले नहीं दिखते,
शहर की रोशनी में भी अब उजाले नहीं दिखते,
बड़ी लाचार और बेदर्द हैं दुनिया की नज़रें भी,
मेरे जूते तो दिखते हैं मगर छाले नहीं दिखते।”

आगरा के शशांक नीरज ने सुनाया-

“हम पर छाई फ़क़ीरी ऐसी खोना-पाना छोड दिया,
हमने शाहों के रस्तों पर आना-जाना छोड़ दिया,
जबसे मैंने कुटिया के दीपों को अर्घ्य चढ़ाया है,
उस दिन से सूरज ने मुझसे आँख मिलाना छोड़ दिया।”

कवि सम्मेलन के संयोजक बाल कवि ईशान देव ने सुनाया-

“दुःख है कि सब ही तो आखिर अंग्रेजी के स्कूल गए,
हिन्द में रहने वाले ही आख़िर हिन्दी को भूल गए।”

कार्यक्रम को विधिवत मैनेज एवं एक्सीक्यूट किया सूरज तिवारी के निर्देशन में ग्लैमर लाइव फिल्म्स एन्ड इवेंट्स की टीम ने।

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