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नफरतों की आग से खुद को दूर ही रखिए, जो दरख्त जलते हैं फिर हरे नहीं होते…!

फ़िराक गोरखपुरी की याद में 38वां कुल हिंद मुशायरा, 11वां चित्रांशी फ़िराक़ इंटरनेशनल अवार्ड और पहला केसी श्रीवास्तव अवार्ड समारोह रविवार को होटल ग्रांड में संपन्न हुआ।

11वां फ़िराक इंटरनेशनल अवार्ड मंज़र भोपाली को और पहला केसी श्रीवास्तव अवार्ड सैयद अजमल अली शाह को दिया गया।

ब्रज पत्रिका, आगरा। विश्व विख्यात शायर पद्म विभूषण प्रो. रघुपति सहाय फ़िराक गोरखपुरी की याद में 38वां कुल हिंद मुशायरा, 11वां चित्रांशी फ़िराक़ इंटरनेशनल अवार्ड और पहला केसी श्रीवास्तव अवार्ड समारोह रविवार को होटल ग्रांड में संपन्न हुआ। मौजूदा हालातों पर विख्यात शायर मंजर भोपाली ने जब यह शेर पढ़ा तो तालियों से सभागार गुंजायमान हो उठा-“मोहब्बत के चरागों की जिंदगी कम है, दीए जलाओ कि दुनिया में रौशनी कम है…।”

मुशायरे में चित्रांशी फ़िराक इंटरनेशनल अवार्ड से नवाज़े गए शायर मंजल भोपाली का एक और शेर बेहद सराहा गया-“नफरतों की आग से खुद को दूर ही रखिए, जो दरख्त जलते हैं फिर हरे नहीं होते…!” एक और शेर उन्होंने सुनाया-“जिंदगी के लिए इतना नहीं मांगा करते, मांगने वाले से कांसा नहीं मांगा करते। बेटियों के लिए भी हाथ उठाओ मंजर, सिर्फ अल्लाह से बेटे नहीं मांगा करते…।” आजमगढ़ के शायर मिस्दाक आजमी ने इन लाइनों से वाहवाही लूटी-“शर्म की सुर्खी से रौशन राज के हमराज हैं, हम मोहब्बत नाम की आवाज के हमराज हैं। सिलसिला अफवाह का कैसे थमे इस शहर में, आपके हमराज के हमराज के हमराज हैं…।”

अलीना इतरत ने सुनाया-“चमन में हो गई फूलों जैसी आमेजिश, तुम एक मोड़ पे क्या आ गए कहानी में। तन्हाई में लिपटी हुई खामोश स्याह रात, इस आस में बैठी है आएगी सहर भी…। अज्म शाकिरी ने अपनी रचना सुनाई-“लाखों सदमे ढेरों गम, फिर भी नहीं हैं आखें नम। एक मुद्दत से रोए नहीं, क्या पत्थर के हो गए हम…।” श्रोताओं ने उनकी इस रचना को करतल ध्वनियों से नवाज़ा। फानी जोधपुरी ने यह शेर पेश किया-“सोचते उसको रहे ध्यान की जिद पूरी की, हमने यूं जहीने परीशां की जिद पूरी की। आज बहुत दिनों बाद सुनी उसकी आवाज, बहुत दिनों में कानों का रोजा टूटा…।” हुसैन मुरादाबादी ने सुनाया-“लेके होठों पर प्यास बैठा है, इक समंदर उदास बैठा है। किसने परदा उलट दिया रुख से, आइना बदहवास बैठा है…।”

धर्म-जाति की मोहताज नहीं भाषाएं

मुशायरे की शुरुआत में मुख्य अतिथि पूर्व जस्टिस (इलाहाबाद) इफाकत अली ने कहा कि,

“भाषा किसी धर्म-जाति की मोहताज नहीं होती। ऐसे आयोजनों से हम अदब की खिदमत करते हैं। अंग्रेजी के प्रोफेसर होते हुए भी रघुपति सहाय ने फ़िराक गोरखपुरी नाम रखकर उर्दू में शायरी को अंजाम दिया।”

चित्रांशी संस्था के अध्यक्ष प्रो. ब्रजेश चंद्रा ने कहा कि,

“चित्रांशी के सभी पदाधिकारियों और सदस्यों के सहयोग से आगे भी इसी तरह से स्व. केसी श्रीवास्तव के इस कारवां को आगे बढ़ाते रहेंगे।”

कार्यक्रम में अमिताभ, सुरेंद्र पांडेय, जाकिर सरदार, हरीश चिमटी, डॉ. महेश धाकड़, सुनील श्रीवास्तव आदि ने व्यवस्थाएं संभालीं।

उदघाटन सत्र और मुशायरे का मंच संचालन संस्था के महासचिव एडवोकेट अमीर अहमद ने किया। धन्यवाद डॉ. त्रिमोहन तरल ने दिया।

11वां फ़िराक इंटरनेशनल अवार्ड मंज़र भोपाली को और पहला केसी श्रीवास्तव अवार्ड सैयद अजमल अली शाह को दिया गया

आगरा। मुशायरे में 11वां फ़िराक़ इंटरनेशनल अवार्ड मशहूर शायर मंज़र भोपाली को दिया गया। इसमें उनको 51 हजार रुपए नकद, प्रशस्ति पत्र और शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया। संस्था के संस्थापक अध्यक्ष की याद में पहला केसी श्रीवास्तव अवार्ड सुलहकुल की नगरी के सूफी संत और बज्म-ए-मैकश और यादगार-ए-आगरा के संरक्षक सैयद अजमल अली शाह को दिया गया।

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