UA-204538979-1

आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक कौन जीता है तेरी जुल्फ के सर होने तक…!

होटल ग्राण्ड में मिर्जा गालिब की 224वीं जयंती पर सजी ग़ज़लों भरी महफिल।

ब्रज पत्रिका, आगरा। शायरी के बेताज बादशाह मिर्जा असद उल्लाह खां गालिब की 224वीं जयंती पर ग्राण्ड होटल में बज्म-ए-गालिब में वक्ताओं ने जहाँ उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा की वहीं गायक सुधीर नारायण ने ग़ालिब की ग़ज़लों को पेश कर एक शानदार महफ़िल सजाई। कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि पूर्व केंद्रीय मंत्री रामजी लाल सुमन, प्रावीडेन्ट फंड कमिश्नर (दिल्ली) राजीव कुमार पाल, संस्कृतिकर्मी अरुण डंग, गायक सुधीर नारायण, कवि सुशील सरित और बैकुंठी देवी की कुछ छात्राओं ने मिर्ज़ा ग़ालिब की तस्वीर के सम्मुख शमा रोशन कर किया।

सुधीर नारायण ने गालिब की गजलों को तरन्नुम से पेश किया-

“आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक कौन जीता है तेरी जुल्फ के सर होने तक…, कासिद की आते-आते खत एक और लिख सकूं मैं जानता हूं जो वह लिखेंगे जवाब में…, जहां तेरा नक्शे कदम देखते हैं खयामा खयामा इरम देखते हैं…, ये न थी हमारी किस्मत कि विसाले यार होता…, कोई उम्मीद बर नहीं आती कोई सूरत नजर नहीं आती…!”

उनके साथ साज़ों पर संगत करने वाले कलाकारों में थे तबले पर राज मैसी, गिटार पर रमेश कुमार, ढोलक पर राजू पांडे और कोरस में देशदीप शर्मा।

खेमचंद धाकड़ ने शुरुआत में ये ग़ज़ल पेश की,

“हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले बहुत निकले मेरे अरमां लेकिन फिर भी कम निकले…!”

मुख्य अतिथि और पूर्व केंद्रीय मंत्री रामजी लाल सुमन ने कहा कि,

“गालिब कबीर की परंपरा के शायर हैं। उनकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती, उन्हें जितनी बार पढ़ो, उतनी बार उसके नए मायने निकलते हैं।”

प्रावीडेन्ट फंड कमिश्नर (दिल्ली) राजीव कुमार पाल की अध्यक्षता में संपन्न इस समारोह में डॉ. नसरीन बेगम ने गालिब की शोखियां खुतूत के आईने में आलेख प्रस्तुत किया।

आगरा के प्रख्यात शायर शाहिद नदीम ने कहा,

“लफ्ज़ कागज़ पर जब भी आते हैं अपनी ताजीम ही कराते हैं। देखने में उदास झील था वह सोचने में मगर समंदर था खुशबुएं उसकी आज भी है नदीम उसका लहजा था या गुलेतर था।”

संस्कृतिकर्मी अरुण डंग ने गालिब की शायरी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि,

“उनकी शायरी में अहिंसा का भी जिक्र है और महात्मा गांधी के सिद्धांतों का भी-बुरा मत कहो बुरा मत सुनो।”

सुशील सरित ने कहा,

“एक रेशमी एहसास है गालिब की शायरी रूहों में छुपी प्यास है गालिब की शायरी।”

कार्यक्रम में डीजीसी अशोक चौबे एडवोकेट, कर्नल शिव कुंजरू, रामकुमार अग्रवाल, डॉ. अशोक विज, डॉ. महेश धाकड़, पूजा सक्सेना, डॉ. विनोद माहेश्वरी, डॉ. रति खम्बाटा, डॉ. असीम आनंद, डॉ. संदीप अग्रवाल अरेला, फ़िल्म निर्माता अनिल भारद्वाज, लाइन प्रोड्यूसर सत्य प्रकाश शुक्ला आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। कार्यक्रम का संचालन सुशील सरित ने किया और ध्वनि संयोजन किया मुगल साउंड सर्विस ने।

फोटोग्राफ्स साभार-फ़ोटो जर्नलिस्ट असलम सलीमी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!