सिनेमा

महानायक आनंद की जीवनयात्रा बयां करती सुपर फ़िल्म है ‘सुपर-30’

आगरा। चलो खुशी की बात है कि एक सार्थक हिंदी सिनेमा फिर से देश में जिंदा हो रहा है, कुछ लीक से अलग हटकर बन रही फिल्मों के जरिये। “सुपर-30” फ़िल्म की ताज़ातरीन सफलता इसका पुख्ता प्रमाण है। फ़िल्म आनंद नामक एक गणितज्ञ की जीवनी और उनके शैक्षिक कार्यक्रम को सिल्वर स्क्रीन पर बयां करती है। फ़िल्म संदेश देती है कि हमें मानव संसाधन को गरीबी और अमीरी के पैमाने से नहीं आँकना चाहिए बल्कि योग्यता के पैमाने से आँकना चाहिए। राजा का बेटा राजा ही बनेगा इस तरह के पूर्वाग्रहों को तोड़ती हुई ये फ़िल्म दिखाती है कि जो योग्य होगा वही राजा बनेगा फिर वो शख्श चाहे एक गरीब घर में ही पैदा क्यों न हुआ हो। इस फ़िल्म की लोकप्रियता ये साबित करती है कि अच्छा देखने वाले और उसको सराहने वाले लोग समाज में अभी बहुत बड़ी तादाद में मौजूद हैं। अगर समाज को संदेश देने वाली फिल्में बनायी जायें तो वो समाज को दिशा भी देंगी और मुनाफ़ा भी कमायेगीं। विकृत मानसिकता वाले धंधेबाज फ़िल्मकार जान लें कि हिंदी सिनेमा में सिर्फ हिंसा और सेक्स ही नहीं बिकता। गोल्ड सिनेमा से निकलते हुए लोगों में गरीब तबके के लोग नहीं बल्कि एलीट क्लास के लोग थे जो गरीबों के साथ हमदर्दी और उनके उत्थान के इरादे रखते हैं। इस फ़िल्म में कहानी की मांग के अनुरूप ही कलाकारों को और अन्य तकनीकियों का इस्तेमाल सटीक ढंग से किया गया है। विकास बहल द्वारा निर्देशित इस फिल्म में आनंद का किरदार ऋतिक रोशन ने क्या खूब प्रभावशाली ढंग से निभाया है। कुल 155 मिनट की इस फ़िल्म में ऋतिक अपनी बॉलीवुड सुपर स्टार की छवि से बिल्कुल अलग एक ठेठ एक्टर के रूप में दिखे हैं। उनकी प्रेमिका का किरदार खूबसूरत अदाकारा मृणाल ठाकुर ने निभाया है। फ़िल्म में प्रेमी प्रेमिका हैं मगर कोई जबर्दस्ती का ठूंसा हुआ रोमांटिक सीन नहीं है। फ़िल्म एक परिपक्व प्रेम प्रसंग को भी दिखाती है। समाज में गरीबों को लेकर उच्च वर्ग के नजरिये और उससे जनित अत्याचार को दिखाती है। तेजी से फलते फूलते कोचिंग उद्योग को निशाना बनाकर गरीब छात्रों के साथ बरते जाने वाले रवैये को दिखाया गया है। उसके खिलाफ जन संघर्ष को भी बखूबी दिखाया है। संजीव दत्ता द्वारा लिखित इस फ़िल्म में संगीत अजय-अतुल ने दिया है। यह फिल्म फैंटम फिल्म्स, नाडियाडवालाज ग्रैंडसन एंटरटेनमेंट और रिलायन्स एंटरटेनमेंट द्वारा संयुक्त रूप से बनायी है। कुल मिलाकर फ़िल्म परिवार सहित देखने लायक है। युवाओं को जरूर ये फ़िल्म दिखायें ताकि वे इससे प्रेरणा लेकर कुछ देश और समाज के लिए भी सार्थक कर सकें।

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