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आम आदमी की जिंदगी के करीब है रघुवंशी जी का कथा साहित्य

आगरा। हमारा हिंदी का कथा साहित्य हमारे समाज का दर्पण है। कथा साहित्य में हमारे कथाकारों ने समाज की विसंगतियों और कड़ुवी सच्चाइयों को उजागर किया है। समाज में जन चेतना जगाने और समाज को झकझोर देने वाली कहानियों ने समाज में सार्थक परिवर्तन लाने का काम भी बखूबी किया है। स्व. श्री राजेन्द्र रघुवंशी जी ने भी इस कथा साहित्य के सागर में अपनी कलम से योगदान दिया है बल्कि प्रेरणादायक कहानियों और उन पर आधारित नाटकों के मंचन से अतुलनीय योगदान दिया है। ये सारगर्भित विचार 26 जुलाई की शाम यूथ हॉस्टल में कथा साहित्य की विशेषज्ञ विभूतियों ने व्यक्त किए, जहाँ नाट्य पितामह श्री राजेन्द्र रघुवंशी जन्म शताब्दी समारोह समिति द्वारा एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया था। राजेन्द्र रघुवंशी: सृजन-स्मरण (कथा साहित्य) विषय पर आयोजित इस गोष्ठी की मुख्य वक्ता दयालबाग डीम्ड यूनिवर्सिटी की कला संकाय की पूर्व डीन प्रो. कमलेश नागर ने कहा राजेन्द्र रघुवंशी जी ने न सिर्फ पत्रकारिता, बल्कि साहित्य और नाट्य कला के क्षेत्र में भी अपना परचम फहराया। अध्यक्षीय संबोधन में क.मु. हिंदी एवं भाषा विज्ञान विद्यापीठ के पूर्व निदेशक प्रो. जय सिंह नीरद ने कहा नाट्य कला को कई कलाओं का संगम कहा गया है ये बहुत महत्वपूर्ण कला है। तभी तो नाटक को पंचम वेद कहा गया है। उन्होंने रघुवंशी जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। कहाँ एक तरफ पत्रकारिता और कहाँ नाट्य लेखन और मंचन। वे सत्ता के खिलाफ जनहित में कितने मुखर हो सकते थे ये इस बात से साफ जाहिर है कि वे तत्कालीन संपूर्णानंद सरकार के खिलाफ गीत प्रस्तुत करते थे, धोखा दे गई साफ मुकर गयी हरामन सम्पूरण सरकार। मुख्य अतिथि गीतकार श्री सोम ठाकुर ने अपने संबोधन में रघुवंशी जी के व्यक्तित्व और कृतित्व को समर्पित एक कविता पढ़ी-कतरे से समुंदर तक गुमनाम सिलसिला हूँ…। उपन्यास बिंध गया सो मोती की समीक्षा करते हुए केंद्रीय हिंदी संस्थान की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. ज्योत्स्ना रघुवंशी ने कहा ये उपन्यास जीवन के विभिन्न रंगों को समेटे हुए है। इसमें 50 के दशक के मुम्बई का शानदार जिक्र किया गया है। हालांकि ये उपन्यास 20 वर्षों तक कथाकार श्री राजेन्द्र यादव जी के पास पढ़ा था। अफ़सोस की बात है कि ये इतना बेहतरीन उपन्यास उनके देहावसान के बाद ही प्रकाशित हुआ। कहानी संग्रह दूसरा बाप की समीक्षा करते हुए दयालबाग डीम्ड यूनिवर्सिटी के डॉ. ब्रजराज सिंह ने कहा कि श्री राजेन्द्र रघुवंशी ने नाटकों में जहाँ कमजोर तबके के दर्द और समस्याओं को प्रमुखता से उभारा वहीं उन्होंने साहित्य में भी बिल्कुल इसी भावना से अपनी कलम चलायी यही वजह है कि रघुवंशी जी का साहित्य बिल्कुल प्रेमचंद के साहित्य के करीब लगता है। कार्यक्रम संयोजक श्री विनय पतसारिया एडवोकेट ने प्रस्तावना पढ़ते हुए कहा आज समाज को ढकोसलों से रहने वाले लोग चाहिए। मंचासीन अतिथि डॉ. रेखा पतसारिया ने भी रघुवंशी जी के व्यक्तित्व और कृतित्व को रेखांकित किया। पूर्व विधायक और लोक साहित्य और लोक संगीत प्रेमी लेखक चौधरी बदन सिंह जी ने रघुवंशी जी के लोक कलाओं के प्रति रुझान के विषय में जानकारी दी। उन्होंने एक लोक गीत भी सुनाया। इस मौके पर श्री राजेन्द्र रघुवंशी जी द्वारा लिखित कहानी सात जूते का नाट्य मंचन इप्टा के कलाकारों श्री मुक्ति किंकर, श्री असलम खान, श्री कमल गोस्वामी, श्री अनुज ने किया। निर्देशन कार्यक्रम के समन्वयक श्री दिलीप रघुवंशी ने किया। संचालन कार्यक्रम संयोजक श्री हरीश चिमटी ने किया। धन्यवाद ज्ञापन श्री ओम मेहरा ने दिया। अतिथियों का स्वागत एवं सम्मान कार्यक्रम के संयोजक श्री राजीव सिंघल सहित श्री बसंत रावत, श्री राजीव सक्सेना, श्री अशोक रावत, डॉ. शशि तिवारी, श्रीमती आभा मेहरा आदि ने किया।

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