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“तूने मेरी राह में कांटे बिछाये थे कभी, आ मेरे मोहसिन मैं पहले तेरी गुलपोशी करूं, ऐसी हमदर्दी दिखाई उसने इक दिन जोश में, मेरा दामन चाक कर डाला रफ़ू के नाम पर!”

उर्दू-हिंदी के विद्वान शायर डॉ. कलीम क़ैसर (गोरखपुर) को 51000 की पुरस्कार राशि का चित्रांशी फ़िराक़ इंटरनेशनल अवार्ड-2025 से सम्मानित किया।

चित्रांशी के संस्थापक अध्यक्ष स्वर्गीय के. सी. श्रीवास्तव अवार्ड आगरा के प्रसिद्ध रंगकर्मी पत्रकार व लेखक अनिल शुक्ला को दिया गया।

ब्रज पत्रिका, आगरा। आगरा की प्रमुख साहित्यिक सांस्कृतिक व सामाजिक संस्था चित्रांशी का प्रतिष्ठित चित्रांशी फ़िराक़ इंटरनेशनल अवार्ड-2025 समारोह, केसी श्रीवास्तव अवार्ड समारोह व कुल हिंद मुशायरे का आयोजन होटल ग्रांड आगरा में आयोजित किया गया।

मुख्य अतिथि के रूप में केंद्रीय राज्य मंत्री प्रो. एस. पी. सिंह बघेल और विशिष्ट अतिथि के रूप में अपर जिला जज एवं सचिव जिला विधिक प्राधिकरण डॉ. दिव्यानंद द्विवेदी ने उर्दू-हिंदी के विद्वान शायर डॉ. कलीम क़ैसर (गोरखपुर) को शाल पहनाकर सम्मान पत्र देकर व अवार्ड की ट्रॉफी देकर चित्रांशी फ़िराक़ इंटरनेशनल अवार्ड-2025 से सम्मानित किया। इस अवसर पर संस्था द्वारा 51 हज़ार रुपये की पुरस्कार राशि भेंट की गई।

चित्रांशी के संस्थापक अध्यक्ष स्वर्गीय के. सी. श्रीवास्तव अवार्ड आगरा के प्रसिद्ध रंगकर्मी पत्रकार व लेखक अनिल शुक्ला को मुख्य अतिथि और विशिष्ट अतिथि द्वारा शाल पहनाकर, सम्मानपत्र व अवार्ड ट्रॉफी देकर प्रदान किया गया।

इस अवसर पर बोलते हुये सम्मानित अवार्डी द्वारा संस्था का धन्यवाद अदा किया गया तथा कहा कि जब किसी व्यक्ति को उसकी सेवाओं का पुरस्कार सम्मान के रूप में मिलता है तो जो दिली खुशी मिलती है उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता।

मुख्य अतिथि प्रो. एस. पी. सिंह बघेल ने अपने उद्बोधन में चित्रांशी से अपने जुड़ाव का जिक्र करते हुए कहा कि,

“वे लंबे समय से संस्था से जुड़े हुये हैं तथा अधिकांश कार्यक्रमों में शामिल हुये हैं, संस्था विशुद्ध रूप से साहित्य की सेवा कर रही है। इसके मुशायरों में देश के तकरीबन सभी प्रसिद्ध शायरों ने शिरकत की है। राजनीतिक व्यस्तता के बावजूद वे ऐसे कार्यक्रमों में शामिल होते हैं इससे उन्हें आत्मिक शांति मिलती है।”

संस्था के संरक्षक नज़ीर अहमद ने कहा कि,

“इस तरह के प्रोग्राम हमें अपनी तहज़ीब से जोड़े रखने में अहम रोल अदा करते हैं। साथ ही मुल्क की मिली-जुली गंगा जमुनी तहज़ीब व भाईचारे को बनाये रखने में भी बेहद अहम किरदार अदा करते हैं।”

चित्रांशी के अध्यक्ष तरुण पाठक ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये अपने संबोधन में कहा कि,

“इस तरह के कार्यक्रम हमें अपनी संस्कृति से रूबरू कराते हैं।”

उन्होंने कार्यक्रम में शामिल होने वाले सभी शायरों और श्रोताओं का शुक्रिया अदा किया तथा कहा कि संस्था इसी प्रकार साहित्य सेवा करती रहेगी।

इस अवसर पर डॉ. कलीम कैसर साहब का परिचय ज़ाकिर सरदार ने व अनिल शुक्ला का परिचय डॉ. महेश धाकड़ ने तथा सम्मान पत्रों का वाचन अब्दुल क़ुद्दूस ख़ां व हरीश सक्सैना ‘चिमटी’ ने किया।

अतिथिगणों, सम्मानित व्यक्तियों व शायरों का स्वागत कर्नल जी. एम. ख़ान, इंजीनियर जी. डी. शर्मा, अभिनय प्रसाद, भरतदीप माथुर, सिराज कुरैशी, प्रो. मोहम्मद हुसैन, महमूद उज़ ज़मां आदि ने बुके देकर किया।

सम्मान समारोह के संपन्न होने के पश्चात प्रो. बघेल, नजीर अहमद, डॉ. कलीम क़ैसर व तरुण पाठक ने संयुक्त रूप से शमा-ए-मुशायरा रौशन करके मुशायरे का आग़ाज़ किया। मुशायरे में डॉ. कलीम क़ैसर, अतहर शकील नगीनवी, डॉ. त्रिमोहन तरल, मीना ख़ान, अफ़ज़ल इलाहाबादी व कुनाल दानिश ने अपनी-अपनी बेहतरीन शायरी से समा बाँध दिया। उनके शेरों पर श्रोताओं ने भरपूर दाद दी, तथा सभागार वाह-वाह की शदाओं व तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजता रहा। बेहतरीन उम्दा मेयारी शायरी का श्रोताओं ने भरपूर आनंद लिया।

कार्यक्रम से पूर्व दो मिनट का मौन धारण करके अहमदाबाद विमान हादसे के मृतकों को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई। कार्यक्रम का सरस सफल संचालन चित्रांशी के महासचिव अमीर अहमद एडवोकेट ने किया।

मुशायरे में पढ़े गये ये प्रमुख शेर
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डॉ. कलीम क़ैसर ने सुनाया,

“तूने मेरी राह में कांटे बिछाये थे कभी,
आ मेरे मोहसिन मैं पहले तेरी गुलपोशी करूं,
ऐसी हमदर्दी दिखाई उसने इक दिन जोश में,
मेरा दामन चाक कर डाला रफ़ू के नाम पर!”

अफ़ज़ल इलाहाबादी ने सुनाया,

“मेरी तामीर मुकम्मल नहीं होने पाती,
कोई बुनियाद हिलाता है चला जाता है,
चल रहे हैं क़तार में सूरज,
और चराग़ों की रहनुमाई है!”

कुनाल दानिश ने सुनाया,

“नन्हें परों की जान के पीछे पड़े रहे,
बचपन से हम उड़ान के पीछे पड़े रहे,
इतनी बड़ी ज़मीन अता की गई हमें,
फिर भी हम आसमान के पीछे पड़े रहे!”

अतहर शकील नगीनवी ने सुनाया,

“वो तीरगी थी शहर में हर सू निकल पड़े,
लोगों को देने हौसला जुगनू निकल पड़े,
मैंने ये सोचकर भी हटाई नहीं नज़र,
शीशे के एक फ्रेम से कब तू निकल पड़े!”

मीना ख़ान ने सुनाया,

“ये उदासी तो मुक़द्दर में लिखी थी वरना,
मुझको हंसने का बहुत शौक़ हुआ करता था,
ज़ब्त के सख़्त मराहिल से गुज़र कर मैंने,
इश्क़ की आज भी तौक़ीर बचा रक्खी है!”

डॉ. त्रिमोहन तरल ने सुनाया,

“घास के तिनके जो थे बेकार कूड़े में शुमार,
चंद चिड़ियों के हुनर से आशियाने हो गये,
चिराग़ होता अगर मैं तो बात दीगर थी,
मैं रौशनी हूँ मुझे तुम बुझा नहीं सकते!”

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