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सदा के लिए शांत हुए साज़-ओ-आवाज़ के सरताज़, संगीत सम्राट पद्मविभूषण पण्डित जसराज के मधुर सुर

ब्रज पत्रिका। भारतीय शास्त्रीय संगीत की महान शख़्शियत पद्मविभूषण पण्डित जसराज जी के 17 अगस्त को इस दुनिया से जाने का गहरा दुःख है। अमेरिका के न्यू जर्सी में 90 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। मुझे उनके साथ वो शानदार साक्षात्कार याद आ रहा है, जब आगरा में ताज़ महोत्सव में उनके कार्यक्रम से पूर्व हमने उनसे इंटरव्यू लेने के लिए गुज़ारिश की, तो वह सहज ही तैयार हो गए। जबकि कार्यक्रम आयोजक या आर्टिस्ट कॉर्डिनेटर हमेशा की तरह सेलेब्रिटी को मीडिया से मिलवाने में आनाकानी करते हैं।

पद्मविभूषण पंडित जसराज के साथ ग्रीन रूम में पत्रकार वार्ता के बाद इस मुलाकात को उनके साथ फोटो के जरिये यादगार बनाया। -फ़ाइल फ़ोटो

इस मुलाकात के बाद की पंडित जसराज जी की वह सुरमयी शाम आज भी बखूबी याद है जब उन्होंने मुक्ताकाशीय मंच पर अपनी यादगार प्रस्तुतियां दीं। शाम के अंत में जब फ़रमाइशी सत्र में आगरा की शान पंडित सत्यभान शर्मा से रूबरू हुए तो उन्होंने उनको अंत में मंच पर बुलाकर सम्मानित किया। ये ही तो बड़े कलाकार की निशानी है, योग्य शख़्शियत की पहचान और फिर बेझिझक सम्मान।

ताज महोत्सव में ग्रीन रूम में पत्रकारों से बातचीत बाद पत्रकारों के साथ इस मुलाकात को सहज भाव से कैमरों में कैद कराते रहे पद्मविभूषण पंडित जसराज। -फ़ाइल फ़ोटो

पद्मविभूषण पंडित जसराज का जन्म – 28 जनवरी 1930 को हिसार में हुआ था। शास्त्रीय संगीत के मेवाती घराने से ताल्लुक रखने वाले पंडित जसराज जी जब चार वर्ष के थे तभी उनके पिता पण्डित मोतीराम जी का देहान्त हो गया। उनका पालन पोषण बड़े भाई पण्डित मणीराम जी के संरक्षण में हुआ। पंडित जसराज जी ने 14 साल की उम्र में ही एक गायक के रूप में प्रशिक्षण प्राप्त करना शुरू कर दिया था, इससे पहले तक वह तबला वादक ही थे। उल्लेखनीय है कि जब उन्होने तबला त्यागा, तो उस समय संगतकारों ने सही व्यवहार नहीं किया। उन्होंने 22 साल की उम्र में गायक के रूप में पहली मंचीय प्रस्तुति दी थी। मंचीय कलाकार बनने से पहले पंडित जसराज जी ने कई वर्षों तक रेडियो पर भी प्रस्तुतियां दीं थीं। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ (IAU) ने 11 नवंबर, 2006 को खोजे हीन ग्रह 2006 VP32 (संख्या -300128) को पं.जसराज जी के सम्मान में ‘पण्डित जसराज’ नाम दिया। पंडित जसराज जी ने संगीत की दुनियाँ में 80 वर्ष से अधिक साधना की। पण्डित जसराज जी के परिवार में पत्नी मधु जसराज जी, पुत्र सारंग देव व पुत्री दुर्गा जसराज हैं। शास्त्रीय व अर्ध-शास्त्रीय स्वरों में उनकी प्रस्तुतियों को कई एल्बम में संजोया है। पंडित जसराज जी ने भारत के अलावा कनाडा व अमेरिका में शिष्यों को संगीत की तालीम दी। कुछ शिष्य उल्लेखनीय संगीतकार बनकर उनका नाम रोशन कर रहे हैं।

ताज महोत्सव में सुरमयी शाम सजाने से पूर्व पत्रकारों से रूबरू होते हुए पद्मविभूषण पंडित जसराज। -फ़ाइल फ़ोटो

पंडित जसराज जी के जीवन में वह पल अनमोल बन गए जब 1962 में उन्होंने फिल्म निर्देशक वी. शांताराम की बेटी मधुरा शांताराम से विवाह किया, जिनसे उनकी पहली मुलाकात 1960 में मुंबई में हुई थी। पंडित जसराज जी को उनके पिता पंडित मोतीराम जी ने मुखर संगीत में दीक्षा दी। बड़े भाई पंडित प्रताप नारायण जी ने तबले में प्रशिक्षित किया। वह अपने सबसे बड़े भाई, पंडित मनीराम जी के साथ एकल गायन प्रस्तुति में अक्सर शामिल हुआ करते थे। बेगम अख्तर जी से प्रेरित होकर उन्होने शास्त्रीय संगीत को अपनाया था।

ताज महोत्सव में कार्यक्रम की प्रस्तुति से पूर्व पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए पद्मविभूषण पंडित जसराज। -फ़ाइल फ़ोटो

शास्त्रीय संगीत में अतुलनीय योगदान के लिए पंडित जसराज जी को राष्ट्रपति द्वारा सन 2000 में पद्म विभूषण, 1990 में पद्मभूषण और 1975 में पद्म श्री से नवाज़ा गया। सन 1987 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार के अलावा वर्ष 2010 में मिली संगीत नाटक अकादमी फैलोशिप इनमें उल्लेखनीय हैं।

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