स्वतंत्रता दिवस पर साहित्यिक जगत में भी उल्लास, युवा कवियों ने पेश कीं कविताएं
ब्रज पत्रिका। देश में स्वतंत्रता दिवस पर साहित्यिक जगत ने भी उत्साह और उल्लास का एहसास कराया है। गद्य और पद्य दोनों ही में सराहनीय रचनात्मक लेखन देखने को मिला है। इस मौके पर कुछ युवा कवियों ने भी अपनी देशभक्ति भाव से परिपूर्ण शानदार कविताओं को साहित्य प्रेमियों के साथ साझा किया है। जिनमें देश और समाज के प्रति उनके सरोकार भी मुखरित हो रहे हैं। यहाँ प्रस्तुत हैं ऐसे ही दो प्रतिभाशाली युवा कवियों की सुंदर कविताएं।
ताजनगरी आगरा के युवा कवि कुमार ललित ने अपनी ‘शहीदों की शहादत’ कविता पेश की है,
“शहीदों की शहादत को न हरगिज़ भूल जाना तुम,
अनूठी इस मुहब्बत को न हरगिज़ भूल जाना तुम,
वो माटी में मिले तो देश की माटी हुई पावन,
वतन की इस इबादत को न हरगिज़ भूल जाना तुम!
मसूरी और नैनीताल जाते हो तो जाना तुम,
मगर इस बार सरहद पर ज़रा सा घूम आना तुम,
जो सीना तान कर दिन-रात सरहद पर खड़े रहते,
चरण छू लेना उनके और माथा चूमा आना तुम!
वतन में जब कहीं आतंक के बादल घने घिरते,
ये मां के लाल अपनी जां हथेली पर लिए फिरते,
इन्हें तुम पूजना चाहो तो सरहद पर चले आओ,
ये मंदिर में नहीं मिलते, ये मस्जिद में नहीं मिलते!
हिमालय की तरह से सरहदों पर टिक गए सैनिक,
वतन के दिल में झांका तो वहां पर दिख गए सैनिक,
तुम्हें फ़ुर्सत मिले तो तुम ये पुस्तक भी ज़रा पढ़ना,
मुहब्बत का नया अध्याय जिसमें लिख गए सैनिक!”
प्रयाग राज के युवा कवि सुधांशु पांडे ‘निराला’ ने अपनी कविता ‘उठो देश के वीर सपूतों’ पेश की है,
“आजाद, जवाहर, गांधी की,
अभय धरा घबराई है!
उठो देश के वीर सपूतो,
पुनः आपदा आई है!
विश्वासघात खूब किया गया,
मुझको विश्वास दिला करके!
लूटना चाहता मधुशाला,
शाकी को सुरा पिलाकर के!
कर देना चाहिए उसे सूर,
जो राजमुकुट पर नजर रखें!
होना द्रवित नहीं चाहिए,
यदि रिपु अपना दृग सजल रखें!
अंगार उगलने वाली,
कविता मुको ने गाई है!
कविता मुको ने गाई है!
उठो देश के वीर सपूतों,
पुनः आपदा आई है!
खिलवाड़ करो पर ध्यान रहे,
ये पावक है, राख नहीं!
अगर काटना है तो काटो,
चेतन तरु का शाख नहीं!
करे बिक्षोभ वतन में जो,
दो मचा कोलाहल उसके घर पर!
भवन खुद ही ढह जाएगा,
आघात करो केवल जड़ पर!
गद्दारों के शोणित से,
कब तलवार लजाई है!
कब तलवार लजाई है!
उठो देश के वीर सपूतो,
पुनः आपदा आई है!
ऐसा हाहाकार मचा दो,
भीतर तक रिपु हिल जाए!
साहस के अवलोकन से,
चेतना हीन गुल खिल जाए!
बतला दो उन मूढ़ो को,
मुझे गर्व है माटी पर!
नीलकंठ सा करो तांडव,
हर नृशंस की छाती पर!
आओ बिना विलंब किए,
हमने कब्र खुदाई है!
हमने कब्र खुदाई है!
उठो देश के वीर सपूतो,
पुनः आपदा आई है!
क्षोभ मचाने वाले बंधु,
हम तो अमन चाहते हैं!
संरक्षक फूलों के हम,
दिल से चमन चाहते हैं!
खंडों में है बटा हिंद जो,
उसे अखंड बनाएंगे!
सब्र करो एक रोज तुम्हारे,
उर पर ध्वज लहराएंगे!
खुद ही चुनो क्या सुनना है,
ढोल इधर शहनाई है!
ढोल इधर शहनाई है!
उठो देश के वीर सपूतो,
पुनः आपदा आई है!
आजाद, जवाहर, गांधी की,
अभय धरा घबराई है!
उठो देश के वीर सपूतो,
पुनः आपदा आई है!”