UA-204538979-1

‘लॉक डाउन डेज़’ उपन्यास में प्रतिबिंबित किए कोरोना काल के हालात

ब्रज पत्रिका, आगरा। सच ही कहते हैं कि सिनेमा और साहित्य समाज के दर्पण होते हैं। इसके अलावा यह भी एक मान्यता है कि जो घटित है वही पठित है। इसी तर्ज़ पर अब साहित्य में हालिया लॉक डाउन का प्रभाव दिखाई देने लगा है।

मौजूदा दौर के साहित्यकारों की कलम अब इसी विषय पर चल रही हैं। कोरोना के कहर और उससे इंसानी जिंदगी पर क्या असर हुआ है, यही इन साहित्यिक रचनाओं में देखने को मिल रहा है। आगरा की लेखिका कामना सिंह ने भी अपना ताज़ा उपन्यास ‘लॉक डाउन डेज़’ इसी विषय को केंद्र में रखकर लिखा है।

लेखिका कामना सिंह ने दर्शन शास्त्र और हिंदी से एमए और पीएचडी की है। शुरू से ही मेधावी छात्रा रहीं कामना सिंह ने कई स्वर्ण पदक भी प्राप्त किए हैं। लेखन की कला उनको विरासत में ही मिली है। वह मशहूर बाल साहित्यकार प्रो. उषा यादव की सुपुत्री हैं। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वह बच्चों और बड़ों के लिए समान रूप से लेखन करती हैं। उनके अभी तक उपन्यास ‘बोल मेरी मछली’ और ‘पद्म अग्नि’ प्रकाशित हुए हैं। इसके अलावा उनके कहानी संग्रह ‘हवा को बहने दो’ पुरस्कृत हुआ है। इसके अलावा दो और कहानी संग्रह ‘फिर बसंत आया’ और ‘मन सतरंगी’ प्रकाशित हो चुके हैं। एक कविता संग्रह  ‘समां सौगात बन जाये’ प्रकाशित हुआ है। उनके जो समीक्षा ग्रंथ प्रकाशित हुए हैं उनमें ‘रवींद्र नाथ टैगोर के दर्शन में मानववाद’, ‘श्री रामकृष्ण-विवेकानंद का धर्म दर्शन’, ‘स्वातंत्र्योत्तर हिंदी बाल साहित्य’, ‘हिंदी बाल साहित्य एवं बाल विमर्श में सह लेखन’, ‘उषा यादव का रचना संसार’, ‘उषा यादव के उपन्यासों में नारी सशक्तिकरण’ उल्लेखनीय हैं। करीब दो दर्ज़न बाल एवं किशोर उपन्यास भी उनके प्रकाशित हो चुके हैं। उनको उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान लखनऊ से नामित ‘सूर पुरस्कार’, ‘निरंकार देव सेवक बाल साहित्य इतिहास लेखन सम्मान’, ‘हवा को बहने दो’ को दो राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। उनके विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में भी  व्यापक प्रकाशन होता रहा है। ‘बोल मेरी मछली पर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में शोधकार्य। पाठ्यक्रम में रचनाओं का संकलन। कला प्रदर्शनियों में भी उन्होंने सहभागिता की है।

‘लॉक डाउन डेज़’ नामक इस अपने उपन्यास में लेखिका ने कोरोना के कहर से उपजे हालातों को भी इसमें समाहित किया है। इसके अलावा देश और दुनिया में क्या हालत उत्पन्न हुए हैं इसका भी अहसास इसको पढ़कर होता है। बदले हुए हालातों का जीवंत चित्रण इसमें उन्होंने किया है। मानव मन को किस तरह ये हालात प्रभावित कर रहे हैं ये भी बखूबी कई बार अहसास होता है। ‘लॉक डाउन डेज़’ उपन्यास ऐमज़ॉन पर पढ़ने के लिए उपलब्ध है।

वायुयान से बाहर आया तो एयर पोर्ट पर भी अफरा-तफ़री मची थी। कई फ्लाइट्स एक साथ आईं थीं। सभी यात्री आगे बढ़ रहे थे। जल्द से जल्द घर जाना चाह रहे थे। पर जाँच के लिए रुकना जरूरी था। जांच काउंटर कहाँ है, इसका पता नहीं चल रहा था।
“कृपया इंतज़ार करें।” बड़े से हॉल में अनाउंसमेंट हुआ। एक बैरियर के पीछे रुकना पड़ा। यहाँ से यात्रियों की लाइन बननी शुरू हो रही थी। मैं भी भीड़ का एक भाग बना खड़ा रहा। लोग आपस में बातें कर रहे थे, जो अनचाहे ही कानों में जा रही थीं।
एक सहयात्री दूसरे से कह रहा था “कई देशों में तो बहुत बुरा हाल है। चाइना के बाद इटली, स्पेन…। लोग बीमारी को रोक नहीं पा रहे और चिकित्सा की सुविधा उपलब्ध नहीं है, पता नहीं क्या चल रहा है?”
“हमारे देश में?यहाँ की मेडिकल सिचुएशन कैसी है?”
“न्यूज़ नहीं देखते हैं क्या? बाज़ार में मेडिकल सामानों की कमी आ गयी है। सेनिटाइज़र मिल नहीं रहा। कहा जा रहा है कि अप्रैल के अंत तक 20 लाख कोरोना संक्रमित होंगे भारत में।”
(‘लॉक डाउन डेज़’ उपन्यास से)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!