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छप्पर टूट चुका है, आँगन दरक रहा है, सौत ग़रीबी चूम रही है घर का माथा…

ब्रज पत्रिका, आगरा। अन्तर्राष्ट्रीय  विश्व मैत्री मंच की उत्तर प्रदेश ईकाई की पहल पर राष्ट्रीय अध्यक्षा संतोष श्रीवास्तव के संयोजन  में ‘संघर्ष’ विषय पर ऑनलाइन कवि सम्मेलन आयोजित किया गया। जिसकी मुख्य अतिथि डा. नीरज शर्मा (बिजनौर) थीं। कार्यक्रम अध्यक्ष डा.पुनीत बिसारिया (झॉंसी) थीं। विशिष्ट अतिथि निहाल चन्द्र शिवहरे (झॉंसी) थे । इस अवसर पर  उ.प्र. ईकाई की निदेशिका डा. सुषमा सिंह (आगरा) भी उपस्थित थीं। संचालन अलका अग्रवाल ने किया। सरस्वती वन्दना संगीता अग्रवाल ने प्रस्तुत की।कार्यक्रम में कवियों एवं कवियत्रियों सहित 45 साहित्यकारों ने काव्य पाठ कर सहभागिता की। छत्तीसगढ़ ईकाई की उपाध्यक्ष रुपेन्द्र राज एवं वरिष्ठ साहित्यकार डा. प्रमिला वर्मा (भोपाल) से विशेष रुप से उपस्थिति रहीं।

संतोष श्रीवास्तव ने मंच के माध्यम से कोरोना काल में सभी साहित्यकारों को एक साथ व्हाट्सएप के माध्यम से सहभागी बनाने के महत्व पर चर्चा करते हुए सभी अतिथियों का स्वागत किया । इस अवसर पर उन्होंने विश्व मैत्री मंच की उ.प्र. ईकाई के पुनर्गठन की घोषणा करते हूए निहाल चन्द्र शिवहरे (वरिष्ठ साहित्यकार, झांसी) को प्रान्तीय अध्यक्ष, अलका अग्रवाल को उपाध्यक्ष और डा.सुषमा सिंह को निदेशक बनाये जाने की घोषणा की। इस मौके पर सम्पन्न कवि सम्मेलन की प्रमुख रचनायें निम्नवत रहीं।

“क्यों परेशान संघर्ष का सामना बढ़ाए शान।”
—डॉ.सुषमा सिंह
“खून पसीना देकर अपना,खेतों में हैं फसल उगाते।
हारे बिन दिन रातों श्रम कर ये सबके हैं प्राण बचाते।”
—डॉ.हेमलता
“छप्पर टूट चुका है, आँगन दरक रहा है, सौत ग़रीबी चूम रही है घर का माथा।
घुटनों-घुटनों पानी घर में घुस जाएगा, बुधिया कब तक घर आएगा ।।”
—अंकिता कुलश्रेष्ठ

संवेदनाओं को झकझोरती हुई कुछ ये भी रचना सुनाईं गयीं।

सविता मिश्रा’अक्षजा’-
“औरतों को भी बहुत फ़र्क़ पड़ता है
जब तक आते नहीं घर पति, बच्चे, रिश्तेदार
तब तक अटकी रहती है जान।”

कंचन माहेश्वरी-
“ये संघर्ष भी एक सुहाना सफ़र है।
मिली मंज़िलें जो चला इस डगर है।”
मीना गुप्ता—
“इसी जन्म में जीवन मोल चुकाना है ।
ब्याज समेत चुका जीवन से जाना है।।”
नीलम जैन—
“दौर-ए-गर्दिश का गुज़ार कर जो आगे बढ़ना सीख जाता है।
वह हीरे सा चमकता हुआ कुन्दन सा दमकना सीख जाता है।।”
डॉ.प्रभा गुप्ता—
“ज़िंदगी एक संघर्ष है,इसमें हँसना भी है,रोना भी है।
इसमें उठना भी है और गिरना भी है।”

नीरज शर्मा—
“श्रेय प्रेय, मति और मनस में होता आया संघर्ष सदा।
दृढ़ संकल्पों की शक्ति से कटती है दुविधा की बेड़ी।
कमला सैनी—
“कर्न की ज्योति बुझने न देना।”
ऋचा गुप्ता नीर-
“मैं चलती रहती हूँ…।”
बबीता वर्मा-
“ये जिंदगी संघर्ष का ही तो नाम है,
आदि से अंत तक, नहीं कोई विराम है।”
डॉ.शशि सिंह-
“जीवन संघर्षों का घेरा है
कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है।”
डॉ.मधु पाराशर-
“संघर्ष जीवन का अंग है।”
राजकुमारी चौहान-
“संघर्ष मनुज को सिखलाते, हरेक परिस्थिति में रहना।”

*आम आदमी की गुहार*

“मँहगाई की मौत, हमें तुम मत मरने दो।
अपना वेतन, हमें नियंत्रित खुद करने दो।”
-साधना वैद
बाज तो जांबाज़ हुआ करते हैं।
जो कि तूफान में भी उड़ा करते हैं।
-संध्या निगम
“ज़िंदगी संघर्ष है संघर्ष ज़िदगी।
जीते हम सहर्ष संघर्ष ज़िन्दगी।।”
-मीरा परिहार
“नई सोच के पंख लगाएँ
संघर्षों से ना घबराऎं
ऐसे ऊँचे उड़ें गगन में
आसमां  को छूकर आयें।”
-संगीता अग्रवाल
“पाया है नर तन, तो चल अनवरत, न आराम हो l
तू रत हो कर्म-पथ पर सदा, जीवन की तेरे न शाम।”
-अलका अग्रवाल
“हे मजदूर करोनाकाल में
तेरे संघर्ष को देखा है
तेरे तन पर चिथड़ा
और माथे पर बेबसी की रेखा है
ये हर जनमानस ने देखा है।”
-राकेश मेहरोत्रा
“स्वाति नक्षत्र की स्वच्छ निश्छल बूँद
झर रही थी आसमां के निर्झर से
सीपी में गिर मोती बनने के लिए।”
-पूजा आहूजा कालरा
“जीतें हम इस संघर्ष में,
हरा दें मन के दुःख को।
दुःख-सुख को समान बना
आनंद की धारा बहा दें।”
-डॉ.मीता माथुर

“चलते रहो बढ़ते रहो,
रुको  नही झुका नही
जीवन संघर्ष है, फूलो की सेज नहीं।”
-विजया तिवारी
“हो तुम अबला बेचारी,
कोमल कुम्हलाई नारी ।
तुमको सबला बनना होगा
संघर्षों से लड़ना होगा।”
-चारु मित्रा
“संघर्ष कड़ा है काल से,रखना कदम संभाल के
सब ओर मंज़र मौत का,पर जीतना हर हाल से”
-डॉ. रमा ‘रश्मि’
“संघर्ष की कसौटी पर खरा उतरा है जीवन मेरा।
प्रेय से श्रेय तक की अन्त:यात्रा है जीवन मेरा।”
-डॉ० नीलम भटनागर
डॉ.रेखा कक्कड़ ने अपनी कविता में सृष्टि के आरंभ से ही चला आ रहा संघर्ष। प्रकृति, जीव-जन्तु और मानवीय जीवन में व्याप्त संघर्ष के कई आयामों का उद्घाटन किया।
अन्त में नवनियुक्त प्रांतीय अध्यक्ष निहाल चन्द्र शिवहरे ने सभी का आह्लवान करते हुए टीम भावना से मंच को सहयोग देकर  साहित्य साधना में रत रहने का निवेदन करते हुए कहा-
“मेरी कल्पना तेरी आशा मिलकर बने नयी परिभाषा, स्वांति की बूंद की चाह में चातक अब रहे क्यों प्यासा,
अमृत कलश की चाह में पूर्ण हो सिन्धु मंथन अभिलाषा।” अन्त में सभी के आभार के पश्चात कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।

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