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मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी पड़ रहा है COVID-19 का मानव मन पर

ब्रज पत्रिका। पिछले कुछ महीनों से, दुनिया भर के लोग कोरोना वायरस महामारी से जूझ रहे हैं जिसने दुनिया को बहुत ही दयनीय स्थिति में खड़ा कर दिया है। लगभग छह महीने हो गए हैं और इस वायरस के खिलाफ कारगर दवा या वैक्सीन अभी भी नहीं मिला है। जैसे सैनिक लड़ाइयों के मनोवैज्ञानिक दबाव को झेलते हैं, वैसे ही इस जैविक युद्ध ने सामान्य लोगों के दिमाग पर तनाव और दबाव बनाना शुरू कर दिया है। COVID-19 महामारी के डर ने दुनिया को ठप कर दिया है। अब लोगों ने उम्मीद खोना शुरू कर दिया है और नुकसान, हताशा और तनाव का अनुभव करना शुरू कर दिया है। इसके अतिरिक्त, लॉकडाउन ने तनाव को आर्थिक और मानसिक दोनों स्तर पर हर व्यक्ति के घर तक पहुंचा दिया। संक्रमित मामलों की संख्या भारत में 1,91.327 और दुनिया में 5.92 मिलियन के लगभग हो चुकी है। बिना किसी ठोस उपचार के कोरोना वायरस के मामलों की बढ़ती दर लोगों को चिंतित और भयभीत कर रही है। मनोवैज्ञानिक डर ने लोगों के दिमाग में घर बना लिया है।
अतुल मलिकराम के अनुसार, “यह स्थिति लोगों के दिमाग पर दबाव डाल रही है। सोशल मीडिया पर हर दिन दिखाई देने वाली खबरों और कहानियों से हमारा दूर रहना मुश्किल है। अगर लोग इस अनदेखी बिमारी के खिलाफ लड़ना चाहते हैं तो उन्हें अपनी मानसिक ताकत और परस्पर दृढ़ संकल्प शक्ति बढ़ाने की जरूरत है। वर्तमान में, हम एक संक्रमण प्रक्रिया का सामना कर रहे हैं, केवल दो विकल्पों के साथ- या तो इसे बनाने या इसे तोड़ने के लिए।” ‘कुबलर रॉस मॉडल’ के अनुसार, जब कोई दर्दनाक अनुभव होता है, तो एक मानव मन भावनाओं के 5 चरणों से गुजरता है। पांच चरणों में शामिल हैं- गंभीरता, गुस्सा, संशय, अवसाद और स्वीकृति। कोरोना वायरस का प्रकोप पूरी दुनिया में तेजी से बढ़ रहा है, साथ ही एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव, तनाव और चिंता को लोगों के बीच बढ़ा रहा है। इन निम्न चरणों के अनुसार मानव आबादी वैश्विक महामारी का सामना कैसे कर रही है।

गंभीरता का चरण-
इस प्रारंभिक चरण में, लोगों का मानना है कि किसी भी तरह का बुरा प्रभाव उनके पास नहीं आ सकता है। यदि आपको याद है, जब हमें नावेल कोरोना वायरस स्थिति से परिचित कराया गया था, तो अधिकांश लोग इसको लेकर गंभीर नहीं थे। किसी को विश्वास नहीं था कि वे एक दिन इस महामारी के परिणाम को भुगत सकते हैं।

क्रोध का चरण-
क्रोध के साथ हमेशा दर्द आता है। जब आपको कुछ पाना हो तो गुस्सा आपका यक़ीनन सहायक हो सकता है। इस घातक वायरस का सामना कर रहे लोग गुस्से में है । उन्होंने अपने रिश्तेदारों, सरकार, डॉक्टरों और यहां तक कि भगवान के प्रति भी अपना रोष दिखाया। इसके अलावा, लॉकडाउन के लागू होने से कई लोग सरकार के खिलाफ उग्र हो गए, यह उनके निजी जीवन का क्रोध  था।

संशय का चरण-
नुकसान से पहले, आप अपने आप को और अपने प्रिय जनों को दर्द से दूर करने के लिए कुछ भी करेंगे। इस स्तर पर, लोग अक्सर अपने निर्णयों के बारे में बहुत ज्यादा सोचते हैं। इस दौरान हम विचारों के समंदर में संशय के गोते लगा रहे होते  हैं। लॉक डाउन कब खत्म होगा, वायरस का टीका कब आएगा इत्यादि।

अवसाद की स्थिति-
अतीत को याद करने के बाद, मानव मन अपने वर्तमान की ओर बढ़ता है। शून्यता की भावना दुःख, हानि और क्लेश को घर के दरवाजे पर ले जाती है। यह कहना गलत नहीं है कि हमारा देश अवसाद के इस दौर से गुजर रहा है। कई लोगों ने अपने प्रियजनों को खो दिया है, जबकि बाकी लोगों ने महामारी के गंभीर परिणामों को देखा है। केवल अर्थ व्यवस्था ही नहीं बल्कि नौकरी खोना, गरीबी,मजदूरी या कोई काम नहीं होने के कारण लोग अधिक से अधिक उदास और चिंतित हो रहे हैं।

स्वीकार करने की अवस्था-
यह अंतिम चरण है जहां मानव मन अपनी वास्तविकता के साथ रहना स्वीकार करता है। यह तब होता है जब लोग खुद को पुनर्गठित और आश्वस्त करके फिर से जीना शुरू करते हैं। कोरोना वायरस अब हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन रहा है। लोगों ने पहले से ही अपने जीवन को इसके अनुसार समायोजित करना शुरू कर दिया है। सरकार ने पहले ही लॉकडाउन में कुछ ढील दे दी है। उद्योग, कार्यालय, स्कूल, दुकानें खोलने के निर्णय लिए जा रहे हैं। COVID-19 वायरस ने दुनिया को एक “नई वास्तविकता” दी है जिसे मानव जाति को स्वतंत्र रूप से स्वीकार करना होगा। इस समय दुनिया तनाव और चिंता से बाहर आने के लिए काम कर रही है, मानव आबादी को इन पांच चरणों से गुजरना पड़ता है। तभी वे इस जैविक दुश्मन को हराने में सफल होंगे। जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है। अच्छा और बुरा समय ऋतुओं की तरह होता है जिसमें आपको तालमेल बिठाना पड़ता है। अवसरों को तलाशते हुए नए क्षितिज के लिए अपना रास्ता बनाएं।

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