विश्व का पहला और एकमात्र शहर है आगरा जहाँ लावारिस अस्थियों को पुलिस देती है सलामी!
ब्रज पत्रिका, आगरा। दुनिया भर में आगरा की पहचान प्रेम के प्रतीक ताजमहल के नाम पर है, लेकिन यहाँ प्रेम, करुणा, सेवा, सहानुभूति और मार्मिक संवेदना का एक और ऐसा अनूठा कार्य विगत 28 वर्षों से अनवरत किया जा रहा है, जैसा दुनिया भर में कहीं अन्यत्र देखने को नहीं मिलता। जी, हाँ! आगरा विश्व का पहला और एकमात्र शहर है जहाँ लावारिस मृतकों की अस्थियों को पुलिस की सलामी दी जाती है।
सलामी के बाद इन अस्थि कलशों को मुक्ति रथ द्वारा सोरों ले जाकर माँ गंगा की पवित्र गोद में विधि विधान से विसर्जित किया जाता है। श्री क्षेत्र बजाजा कमेटी, आगरा द्वारा विगत 40 वर्षों से लावारिस अस्थियों की सेवा और 28 वर्षों से माँ गंगा में उनको विसर्जित करने की अनोखी सेवा यात्रा सराहनीय और अनुकरणीय ही नहीं, रोमांचित कर देने वाली भी रही है।
हर अज्ञात अस्थि है सुभाष चंद्र बोस की अस्थि
इस यात्रा के पहले पथिक श्री क्षेत्र बजाजा कमेटी के संरक्षक प्रमुख समाजसेवी अशोक गोयल बताते हैं कि,
“हम वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक महोदय से मिले और उनसे आग्रह किया कि इन अज्ञात मृतकों की अस्थियों को पुलिस की सलामी दी जाए। पहले तो वे हँस पड़े और बोले, गोयल साहब, आप तो सचमुच पागल हो गए हैं। मैंने विनम्रता से कहा- हाँ, हम पागल हैं, क्योंकि हम उन लावारिस लाशों को लकड़ी देते हैं जिन्हें पुलिस नाले में फेंक देती है। हम पागल हैं क्योंकि हम अस्थियों को इस प्रकार सहेज कर रखते हैं कि कभी कोई पहचान हो तो पुलिस के द्वारा उसके वस्त्र आदि के साथ उन्हें परिवार को लौटाया जा सके। हम पागल हैं क्योंकि हम हर अज्ञात अस्थि को सुभाष चंद्र बोस की अस्थि समझते हैं। मेरे इन वचनों का वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक महोदय पर गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने सलामी की अनुमति दे दी। तब से आज तक आगरा नगर में जब भी अज्ञात मृतकों की अस्थियाँ गंगा विसर्जन हेतु जाती हैं, उन्हें पुलिस की सलामी दी जाती है। ऐसी व्यवस्था विश्व में अन्यत्र कहीं नहीं है।”
अज्ञात मृतकों की आत्म-शांति के लिए करवाई भागवत कथा
अशोक गोयल बताते हैं कि,
“उन दिनों हम अक्सर श्मशान घाट पर सेवा कार्य हेतु जाते थे। एक दिन जब हम वहाँ पहुँचे जहाँ अज्ञात मृतकों की अस्थियाँ सुरक्षित रखी जाती थीं, तो मन में एक विचित्र कंपन हुआ। ऐसा लगा मानो लावारिस अस्थियाँ हमें पुकार कर कह रही हों कि, हमारे लिए कुछ करो…! पहले तो हमने इस भावना को सामान्य मन: स्थिति मानकर अनदेखा कर दिया। परंतु जब यही अनुभूति आठ-दस दिन के अंतराल में फिर हुई, और फिर तीसरी, चौथी, पाँचवीं बार भी हुई, तब हमें लगा कि यह कोई भौतिक संकेत मात्र नहीं, बल्कि प्रभु की अलौकिक प्रेरणा है। हमने इस विषय पर अपने पूज्य गुरु, डॉ. चंदनलाल पाराशर जी से परामर्श किया। उन्होंने बिना किसी संकोच के कहा-इन आत्माओं की शांति के लिए श्रीमद्भागवत कथा से श्रेष्ठ कुछ नहीं। इसके बाद हमने श्मशान घाट पर भागवत कथा आयोजन की योजना बनानी शुरू की। कथा वाचन हेतु हमने अपने पारिवारिक मंदिर के पुजारी पंडित मदन मोहन शास्त्री जी से अनुरोध किया। पहले तो वे चकित रह गए, फिर बोले-श्मशान पर कौन कथा सुनने आएगा? हमने सहजता से उत्तर दिया-हमें आम जनता को नहीं, इन अज्ञात आत्माओं को कथा सुनानी है! वे थोड़े ठिठके, पर जब मैंने उन्हें आश्वासन दिया कि मैं स्वयं कथा में धर्मपत्नी सहित प्रतिदिन उपस्थित रहूँगा, तो उन्होंने सहमति दे दी। जब यह प्रस्ताव हमने अपनी समिति में रखा तो शुरुआत में कुछ संशय के बाद अंततः प्रस्ताव को स्वीकृति मिल गई। इस महत्वपूर्ण सेवा कार्य में सुनील विकल और टीएन अग्रवाल सहित सभी कपड़ा व्यवसायी विशिष्ट सहयोगी रहे।”
रथ यात्रा निकाल कर अज्ञात मृतक आत्माओं को किया आमंत्रित
अशोक गोयल ने बताया कि,
“जब भागवत कथा का आयोजन सुनिश्चित हो गया, तब एक रथ यात्रा मोक्ष धाम ताजगंज से विद्युत शवदाहग्रह (बैकुंठ धाम) के डेढ़ किलोमीटर क्षेत्र में निकाली गई। रथ यात्रा द्वारा अज्ञात मृतकों की आत्माओं का आवाह्न कर उन्हें भागवत कथा में आने का निमंत्रण दिया गया।”
मौत के चौराहे (महारानी अवंती बाई चौराहा) पर कौन सुनने आएगा कथा!?
अशोक गोयल ने बताया कि,
“सब यही सोच रहे थे कि मौत के चौराहे पर कौन सुनने आएगा कथा!? पर प्रभु की लीला का किसे था पता! कि लोग जुड़ते चले जाएंगे और एक कारवाँ बन जाएगा…जी हाँ! कथा के लिए एक छोटा-सा, लेकिन मर्यादित पंडाल लगाया गया था। किसी को विश्वास नहीं था कि वहाँ कोई भी श्रोता आएगा। वह स्थान वैसे भी संवेदनशील माना जाता था। विद्युत शवदाह गृह के समीप का चौराहा तो ‘मौत का चौराहा’ कहलाता था। लेकिन… प्रभु की लीला देखिए-कथा प्रारंभ होते ही वातावरण बदल गया। जनमानस उमड़ पड़ा। शहर के सभी अधिकारी, संतजन, श्रद्धालु…सब उपस्थित हुए। इस ऐतिहासिक आयोजन में प्रसाद वितरण का आयोजन भी किया गया, जहाँ जाति-धर्म से परे, सभी ने एक साथ भोजन किया। कथा के उपरांत, इन अस्थियों को गंगा विसर्जन हेतु ले जाने की योजना बनी तो अस्थियों को शहर की चारों दिशाओं में स्थित प्रमुख शिव मंदिरों, मस्जिदों, अब्बू लाला की दरगाह और गुरुद्वारों में ले जाकर प्रार्थनाएँ की गईं, और अंततः सोरों स्थित गंगा जी में अस्थियों को विधिवत विसर्जित किया गया।”
अब इसे कोई नहीं कहता अपशकुनी चौराहा
अशोक गोयल ने बताया कि,
“भागवत कथा के दिव्य आयोजन और सर्वधर्म स्थलों पर प्रार्थनाओं के साथ-साथ पवित्र गंगा में विसर्जन की प्रक्रिया का सुखद परिणाम यह हुआ कि अवंती बाई चौराहे पर असमय और अकाल दुर्घटनाओं से होने वाली मौतों पर विराम लग गया। लोगों ने धीरे-धीरे इसे मौत का चौराहा या अपशकुनी चौराहा कहना छोड़ दिया।”
लावारिस अस्थियों को करवाई ब्रज चौरासी कोस की पावन अद्भुत यात्रा
अशोक गोयल ने बताया कि,
“एक अन्य अवसर पर मन में विचार आया कि, इन अस्थियों को क्यों न ब्रज 84 कोस की यात्रा कराई जाए? आखिरकार यह विचार भी साकार हुआ। यह 11 दिवसीय यात्रा अत्यंत रोमांचक और पवित्र रही। ब्रज के बड़े-बड़े संत, जिनके दर्शन दुर्लभ होते थे, वे केवल इन अज्ञात मृतकों की अस्थियों के निमित्त आमंत्रण पर श्रद्धा सुमन अर्पित करने आए। शहर के सम्माननीय नागरिक प्रसिद्ध ज्वेलर्स श्री ओ पी अग्रवाल (ओ पी चैन ) एवं प्रमुख बिल्डर श्री वीडी अग्रवाल (पुष्पांजलि ग्रुप) सपत्नीक स्वयं इस सेवा यात्रा में समिति के साथ सहभागी बने।”
काश! मेरी मृत्यु भी अज्ञात के रूप में हो…!
एक बहुत बड़े व्यक्ति ने अपने उद्बोधन में कहा कि, “मैं प्रभु से प्रार्थना करता हूँ कि मेरी भी मृत्यु आगरा में अज्ञात के रूप में हो जिससे कोई न कोई अशोक मेरी अस्थियों को ब्रज 84 कोस की पावन यात्रा करवा सके।”