सब ठाठ पड़ा रह जायेगा जब लाद चलेगा बंजारा…
आवामी शायर नज़ीर अकबराबादी की विरासत और आज के हालात विषय पर संगोष्ठी का यूथ हॉस्टल में आयोजन।
ब्रज पत्रिका, आगरा। आवामी शायर नज़ीर अकबराबादी की विरासत और आज के हालात विषय पर एक संगोष्ठी और संगीत संध्या का आयोजन यूथ हॉस्टल में किया गया। इस मौके पर नज़ीर की रचनाओं की संगीतमय प्रस्तुति आगरा इप्टा द्वारा दिलीप रघुवंशी के नेतृत्व में की गई। आदमीनामा, रीछ का बच्चा, सब ठाठ पड़ा रह जायेगा जैसी नज़्मों की बेहद प्रभावशाली प्रस्तुति कलाकारों द्वारा की गई।
इस कार्यक्रम के दूसरे सत्र में संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे प्रो. रामवीर सिंह ने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि,
“नज़ीर ने सत्ता के निमंत्रण को कभी स्वीकार नहीं किया। इतिहास को कभी बदला नहीं जा सकता है, चाहे इतिहास के खिलाफ कितने भी षड्यंत्र कर लिए जायें। आज नफ़रत की राजनीति के कारण हमारा देश विकास के पायदान पर नीचे जा रहा है।”
जनवादी महिला समिति की राष्ट्रीय संयुक्त सचिव मधु गर्ग ने नज़ीर अकबराबादी को याद करते हुए कहा कि,
“आज हमें इतिहास के पन्नों को पलटने की ज़रूरत है। हमें याद रखने की ज़रूरत है कि हमारे यहां यदि सूरदास हैं तो रसखान भी हैं। आजादी की लड़ाई में बहादुर शाह ज़फ़र हैं, तो लक्ष्मीबाई भी हैं। वर्ण-व्यवस्था की ब्राह्मणवादी संस्कृति को ललकारने वाले सावित्री बाई फुले, ज्योति बा फुले, फातिमा शेख हैं, तो सूफी संत कबीर, रैदास, बुल्ले शाह और तुकाराम भी हैं। इसी विरासत को आगे बढ़ाने वाले आगरे के नज़ीर अकबराबादी हैं, जिन्होंने हिंदू और मुस्लिम एकता की बात कही थी।”
प्रगतिशील लेखक संघ की प्रो. ज्योत्स्ना रघुवंशी ने कहा कि,
“नज़ीर आगरा के थे और यहां की मिट्टी में उनकी शायरी घुली थी, किन्तु अफ़सोस है कि आज नफ़रत की राजनीति ने उनकी विरासत को भुला दिया है। नज़ीर ने आम आदमी की मानवीय गरिमा को प्रतिष्ठित किया। नज़ीर अकबराबादी की तमाम रचनाएं आम आदमी के जीवन के दुख-सुख को प्रस्तुत करती हैं।”
भाईचारा मंच से प्रो. नसरीन बेगम ने नज़ीर अकबराबादी के जीवन की रोचक घटनाओं और उनकी मशहूर नज़्मों को पढ़कर सुनाया, जो आम आदमी के हालात बयान करती हैं।
इसी क्रम में प्रो. नसरीन बेगम ने बताया कि,
“आगरा में बज़्मे-नज़ीर की स्थापना हुई जो नज़ीर अकबराबादी की धरोहर को संजोने और उसके प्रचार के मक़सद में कामयाब हुई। इसके फाउंडर सदस्य अमर उजाला के संस्थापक स्व. डोरीलाल अग्रवाल भी थे। नज़ीर आज हमारी धरोहर हैं, जो नफ़रत के माहौल में मोहब्बत की अलख जगाते हैं।”
संगोष्ठी का संचालन करते हुए जनवादी लेखक संघ के रमेश पंडित ने कहा कि,“नज़ीर अकबराबादी 245 साल बाद भी प्रासंगिक हैं।”
अंत में जनवादी महिला समिति की जिला सचिव किरन सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन किया।