‘ब्रजरस’ लोक सांस्कृतिक संध्या में कलाकारों ने नृत्य संगीतमयी प्रस्तुतियों संग बरसाया मधुर रस
आगरा, ब्रज पत्रिका
सांस्कृतिक अकादमी उत्तर मध्य रेलवे आगरा और रेलवे संस्थान आगरा कैंट के तत्वावधान में नाट्य पितामह राजेन्द्र रघुवंशी जन्म शताब्दी समारोह को समर्पित ‘ब्रज रस’ नामक लोक सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया। ‘संकेत’ सामाजिक साहित्यिक और सांस्कृतिक संस्था और इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन (इप्टा) के सहयोग से आयोजित इस कार्यक्रम में प्रेम-भक्ति और उल्लास का संगम दिखाई दिया। इस कार्यक्रम में कलाकारों ने भजन, जिकड़ी, रसिया, लांगुरिया, ढोला, मल्हार, होरी, बारहमासी आदि लोक कलाओं की सुंदर छटा बिखेरी। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जनार्दन और रानी सरोज गौरिहार ने रघुवंशी जी के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलित करके उद्घाटन किया। विशिष्ट अतिथि सुरेश चंद्र गुप्ता विभव थे। जयंती समारोह के संयोजक हरीश चिमटी ने इसके स्वरूप और अभी तक के कार्यक्रमों पर प्रकाश डाला। अन्य अतिथियों में रेलवे के पीआरओ वाईके सिंह, नागरी प्रचारिणी सभा की उप सभापति डॉ. कमलेश नागर, कवियत्री डॉ. शशि तिवारी, संगीतज्ञ केशव तलेगांवकर, ग़ज़लकार अशोक रावत, लेखक सर्वज्ञ शेखर गुप्त, पत्रकार डॉ. महेश चंद्र धाकड़, डॉ. भरत सिंह पमार शामिल थे। कार्यक्रम के संयोजक राजीव शर्मा थे। मंच संचालन इप्टा के निदेशक दिलीप रघुवंशी ने किया। कार्यक्रम का शुभारंभ विदुर अग्निहोत्री की संगीतमयी शारदा वंदना की प्रस्तुति के साथ हुआ। इसके बाद राजीव शर्मा ने रघुवंशी जी पर एक रसिया है जन्मशती को जोर शोर…गाकर सबको रघुवंशी जी के व्यक्तित्व से परिचित कराया। देव लाल ने ‘कर्ण वध’ नामक भजन जिकड़ी गायन किया। बरसें फुहारें कारी घटा..मल्हार तनु और पायल ने सुनाई। इसके बाद उन्होंने मल्हार सुनाई-मेरी बहना छाई घटा घनघोर…। अधर धरके बनवारी…रसिया परमानंद शर्मा ने सुनाया। राजन के इंद्र रघुवंश में जन्म लियो…ये रानी सरोज गौरिहार द्वारा लिखित छंद रमेश चंद्र ने सुनाया। इसके बाद उन्होंने सुनाया बन गए नंद लाल लिलहार कि लीला गुदवाय लेओ प्यारी…। मोहे सूनो लगे ये संसार…बारहमासी राजीव शर्मा ने सुनाई। चौक प्रावो माटी रंगालो…परमानंद ने सुनाया जिस पर ततहीर चौहान ने नृत्य किया। शैलेन्द्र राजपूत ने राजपूती होरी-द्रोपदी की लाज़ राखी… सुनाई। सुनीता धाकड़ ने समसामयिक हालातो पर रसिया-अब जनता नैन निहार अब आयो बुरौ जमानो है… सुनाकर मौजूदा व्यवस्था पर चोट की। इस पर भुवनेश धाकड़ ने लोक नृत्य किया। जब से गये घनश्याम ब्रजधाम…बारहमासी सुनाई भगवान स्वरूप ने। काऊ दिन उठ गयो मेरो हाथ…सुनाया रमेश चंद्र भारद्वाज ने। डॉ. लाल सिंह राजपूत ने जिकड़ी भजन सुनाया। बारी जोगणिया तेरे लांगुर कुं चिरैया लेके उड़ गई…राजेन्द्र रघुवंशी के लिखे इस लांगुरिया को परमानंद ने सुनाया। ततहीर, रिदम, रायम, अलीरेबा ने नृत्य किया। नृत्य निर्देशन अर्चना चौहान ने किया। ढोलक पर मास्टर चोखे लाल, देवकी नंदन ने और मंजीरे पर अरविंद ने संगत की। कोरस में असलम, कमल, योगेश सूर्य, अनुज, जय शामिल थे। प्रस्तुति व्यवस्था मनोज सिंह, मुक्ति किंकर और कुमकुम रघुवंशी ने संभाली।