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नजीर की नज्मों और गजलों के साथ शहरवासियों ने मनाया ‘जश्न-ए-बसंत’

सुधीर नारायन की संगीतमयी प्रस्तुतियों ने माहौल में भरा गज़ब का उल्लास, सबको याद कराया परस्पर भाईचारा।

“पुरानी मंडी” मेट्रो स्टेशन की दीवारों पर स्टेशन के अंदर और बाहर नज़ीर की लिखी गई कविताएं होनी चाहिए, यह जनकवि-मियां नजीर अकबराबादी को श्रद्धांजलि होगी।

ब्रज पत्रिका, आगरा। बसंत पंचमी के अवसर पर ‘जश्न-ए-बसंत’ का ताजगंज स्थित शीरोज हैंग आऊट पर आयोजन कर ऋतुराज का स्वागत किया गया। यह प्रोग्राम अमृता विद्या एजुकेशन फॉर इम्मोर्टालिटी और छांव फाउंडेशन द्वारा आयोजित किया गया था। इस अवसर पर प्रख्यात गजल गायक सुधीर नारायन और उनके सहयोगी ग्रुप ‘हॉरमनी’ के कलाकारों ने अपनी कर्णप्रिय और हृदयस्पर्शी संगीतमयी प्रस्तुतियों से जन-जीवन में उल्लास और उमंग भरने के साथ ही लोगों में आपसी भाईचारा भाव की अभिवृद्धि की।

गायक सुधीर नारायन ने जनकवि नजीर को याद करते हुए कहा कि,

“वह नज्मों के शहंशाह थे और उन्होंने मजहब की सीमा से परे रहते हुए हमेशा आम लोगों के लिये नज्में और गजलें लिखीं। वसंत ऋतु के आगमन का देशभर में अपने-अपने अंदाज में स्वागत किया जाता है, आगरा में बसंत पंचमी को पर्व के रूप में मनाये जाने की पुरानी परंपरा है, खुशी की बात है कि यह अब तक बरकरार है।”

सुधीर नारायन के साथ उनके हारमनी ग्रुप की सदस्यों ख़ुशी सोनी, प्रीति कुमारी ने भी नज़ीर की रचनाओं को अपने स्वरों में पेश किया। उनके साथ संगतकारों में की-पैड पर देशदीप शर्मा, तबले पर राज मेसी, ढोलक पर राजू पाण्डेय ने संगत की। सब ठाठ पड़ा रह जायेगा जब लाद चलेगा बंजारा, क्या-क्या कहूं मैं कृष्ण-कन्हैया का बालपन, जय बोलो कृष्ण-कन्हैया की, दोनों जहां के सुल्तान हज़रात सलीम चिस्ती, जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की, सब की तो बसंत है, यारों का बसंता, दूर से आये सुनके-ग़ज़ल, उसके सहारे हुस्ने आदि रचनाओं की संगीतमय प्रस्तुतियां दीं। राजीव सक्सेना, आरिफ तैमूरी आदि ने नजीर एवं बसंत पर्व से जुड़ी बृज क्षेत्र की परंपराओं पर विस्तार से चर्चा की।

अमृता विद्या एजुकेशन फॉर इम्मोर्टालिटी की ओर से कहा गया कि, मौजूदा दौर में नजीर और भी ज्यादा प्रासंगिक हो गये हैं, किंतु चिंता का विषय है कि जिस आगरा में नजीर को जानने और समझने वाले अब गायक सुधीर नारायण- नज़ीर अकबराबादी-विजन के अकेले योद्धा और प्रचार या मशाल वाहक सक्रिय रह गये हैं, जबकि एक समय आगरा के तमाम बुद्धिजीवी और साहित्यकार स्वयं को उनसे जुड़ा हुआ मानते थे।

अमृता विद्या एजुकेशन फॉर इम्मोर्टालिटी के सेक्रेटरी अनिल शर्मा ने एक संदेश में कहा कि, “हर शहर की अपनी एक अलग संस्कृति होती है और उसके प्रति स्थानीय लोगों को जोड़े रखने के लिये एक वार्षिक कार्यक्रम या संस्कृति सप्ताह होता है। आगरा में भी इसी प्रकार की गतिविधि शुरू किये जाने की आवश्यकता है। उन्होंने आगरा मेट्रो संचालकों से मांग की है कि “पुरानी मंडी” मेट्रो स्टेशन की दीवारों पर स्टेशन के अंदर और बाहर लिखी गई नज़ीर की कविताएं होनी चाहिए। यह जनकवि-नजीर को श्रद्धांजलि होगी।”

छांव फाउंडेशन के आशीष शुक्ला ने कहा कि,

“बसंत पंचमी आगरा का एक महत्वपूर्ण पर्व है- नज़ीर अकबराबादी ने इसे जहां जनपर्व के रूप में मनाया, वहीं राधास्वामी संप्रदाय ने इसे आध्यात्मिकता से जोड़ा है। बसंत को आगरा का पर्व घोषित किया जाए। शहर को इसे सार्वजनिक रूप से मनाना चाहिए। पर्यटन विभाग को स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर योजना बनानी चाहिए। इससे शहर और क्षेत्र की विरासत को पुनर्जीवित करने में मदद मिलेगी। उल्लेखनीय है कि बसंत पंचमी की आगरा ही नहीं संपूर्ण बृज क्षेत्र में खास महत्ता है, बसंत पंचमी के दिन से हास्य,परिहास्य, स्वांग, नृत्य, गायन और रंग आदि के जो आयोजन शुरू होते हैं, वे होली तक चलते हैं। जनकवि के रूप में विख्यात मियां नजीर ताजगंज की मलको गली में रहते थे, प्रकृति की हरी-भरी छटा और पीली सरसों से आच्छादित सरसों के खेतों से अभिभूत होकर बसंत पंचमी का पर्व अपने अंदाज में मनाते और मुगलकालीन मोहल्लों की होली में भी उनकी अपने अंदाज में भागीदारी होती थी।”

प्रोग्राम में असलम सलीमी, डॉ. महेश धाकड़, सैय्यद शाहीन हाश्मी, अजय तोमर, दीपक प्रह्लाद अग्रवाल, शिव दयाल शर्मा, मजाज़ उद्दीन कुरैशी, डॉ. विजय शर्मा, फरमान फैजान, अनुजा शुक्ला, संजीव शर्मा, योगेश त्यागी, अमित जसावत, अभिषेक कटारा, अभिनव पाराशर, अभिजीत सिंह, रमाकांत शर्मा, राम विनोद, बब्बू, शीरोज हैंग आउट की एसिड अटैक सर्वाइवर आदि उपस्थित रहे।

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