हिमालय व हिन्द महासागर के साये में मौजूद राष्ट्रों का बने एक समूह
आगरा, ब्रज पत्रिका
हिमालय हिंद महासागर राष्ट्र समूह कांफ्रेंस में दूसरे दिन यानि 29 सितंबर को प्रथम सत्र में इन 54 देशों के मध्य टेक्नालॉजी के आदान प्रदान, इन देशों में उपलब्ध विशेषताओं के आधार पर शिक्षा, रक्षा, स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के क्षेत्र में जरूरतों को समझकर संयुक्त कार्यबल स्थापित करने एवं एक-दूसरे की मदद करने पर बल दिया गया। कांफ्रेंस में आये विभिन्न देशों के राजदूत, प्रिंसिपल सेक्रेटरी एवं भारतीय तकनीकी, रक्षा विशेषज्ञ, पर्यावरणविद, प्रशासनिक उच्चाधिकारियों के दो दिवसीय मंथन का निचोड़ ये लगता है कि शीघ्र ही भारत सरकार हिमालय हिन्द महासागर से जुड़े इन देशों का एक समूह जो कि एक दूसरों की जरूरतों, सांस्कृतिक विरासत, संस्क्रति, सभ्यता के पुरातन केंद्र भारत को देखते हुए बनाने पर कार्यवाही शुरू कर सकती है। विषय विशेषज्ञों के विचार विमर्श की ये शुरुआत इस दिशा में सरकार के कदम शीघ्र बढ़ेंगे, स्पष्ट संकेत कर रही है। 28 सितंबर को इथोपिया के राजदूत ने औपचारिक बातचीत में भारतीयों को अपना चचेरा भाई बहन बताया, इससे लगता है कि वे ये समझ रहे हैं कि अब भारत को वैश्विक भूमिका में अपनी जिम्मेदारी को आगे आकर संभालना होगा। सत्र की शुरुआत तकनीकी विचार विमर्श के साथ हुई। इस सत्र में डॉ.राजीव नयन, डॉ.सुदर्शन कुमार, जितेन जैन ने देशों के मध्य रक्षा प्रणाली, अन्य तकनीकी आदान-प्रदान एवं डाटा शेयरिंग, इनफॉरमेशन शेयरिंग के विषय में जरूरत पर बल दिया। साथ ही तकनीक के ट्रांसफर के माध्यम से देश की इकोनॉमी एवं इन देशों के मध्य आपसी संबंध मजबूत करने पर जोर दिया। द्वितीय सत्र की अध्यक्षता इंद्रेश कुमार ने की। इस सत्र में प्रांत प्रचारक डॉ. हरीश रौतेला एवं संगठन मंत्री ब्रज प्रांत भवानी सिंह का भी मार्गदर्शन मिला। इस सत्र का केंद्र बिंदु पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र में आया बदलाव था, इस सत्र में किर्गिस्तान के पूर्व पीस स्टोबडेन ने बताया कि किस तरह तिब्बत एवं चीन में बुद्धिस्ट मंदिरों को तोड़ा गया, जहां भारत के दक्षिण से पुजारी जाते थे, एवं हिमालय की संस्कृति एवं संस्कृत भाषा को खत्म किया गया। उन्होंने कहा कि इन देशों के मूल में संस्कृत भाषा है, उन्होंने जलवायु परिवर्तन से हिमालय पर्वत मालाओं को बचाने की बात की। सत्र में अपना पाथेय देते हुए हर्ष के मुख्य संरक्षक एवं मार्गदर्शक श्री इंद्रेश कुमार जी ने कहा कि इन देशों की सभ्यता का मूल भारत है इनके बीच में एक अटूट संबन्ध है, और इन 54 राष्ट्रों का डीएनए एक है। अतः वक्त की जरूरत है कि इन देशों का बॉर्डर आपस में सेनामुक्त हो, यहाँ पासपोर्ट, वीजा के बिना आया-जाया जा सके। इन देशों में व्यापार, रक्षा, पर्यावरण, स्वास्थ्य के क्षेत्र में सहयोग की संभावनाओ पर शोध हो, इसके लिए कार्यबल बने, साथ ही विभिन्न विश्वविधालय एवं अन्य शोध संस्थान इन संभावनाओं के विषय में तेजी से कार्य योजना को क्रियान्वित करें, और सरकार इनमें मदद करे। यदि भारत को भविष्य में विश्व गुरु की भूमिका जो कि वो पहले भी था, निभानी है तो, ये जिम्मेदारी उठाने का वक्त आ गया है। उन्होंने लोगों से अपनी आदतों में बदलाव कर पानी बचाने, उसके संरक्षण, संचयन एवं उचित उपयोग की अपील की। उन्होंने अधिक से अधिक वृक्षारोपण का संकल्प भी दिलाया। पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता को उन्होंने राष्ट्रभक्ति एवं आने वाली पीढ़ियों के लिए जिम्मेदारी से भी जोड़ा। कांफ्रेंस के संयोजक डा.रजनीश त्यागी आदि को इंद्रेश कुमार, डा.हरीश रौतेला, भवानी सिंह ने संयुक्त रूप से सम्मानित किया। विभिन्न देशों के भारत में अध्ययनरत छात्रों को भी प्रमाणपत्र देकर सम्मानित किया गया। इन देशों में से लगभग 45 देशों के छात्र छात्राओं एवं उच्चाधिकारियों ने प्रतिभाग किया। कार्यक्रम का संचालन ऋचा सहाय ने किया।