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डॉ. आशीष रानाडे के स्वरों से श्रोता आनंद के सागर में डूबे, विदुर के सितार ने किया तन-मन झंकृत, अर्पित ने दिल जीते

31वें नाद साधना वार्षिकोत्सव में सुर-ताल की बही धारा
संगीत जगत के उभरते कलाकार डॉ. आशीष रानाडे ने अपनी कला प्रस्तुति से समाँ बांधा।

ब्रज पत्रिका, आगरा। पं. रघुनाथ तलेगाँवकर फ़ाउंडेशन ट्रस्ट एवं संगीत कला केन्द्र, आगरा के संयुक्त तत्वावधान में ललित कला संस्थान (डॉ. भीमराव आम्बेडकर विश्वविद्यालय, आगरा) के सहयोग से नाद साधना प्रातःकालीन संगीत सभा का 31वाँ वार्षिक समारोह वृहद् आयोजन ललित कला संस्थान के संस्कृति भवन में दिनांक 28 मई को किया गया। इस नाद साधना संगीत सभा की मूल संकल्पना संगीत नक्षत्र पं. केशव रघुनाथ तलेगाँवकर ने वर्षों पूर्व प्रस्तुत की थी।

कार्यक्रम का शुभारम्भ दीप प्रज्ज्वलन तथा माँ सरस्वती, पं. रघुनाथ जी, श्रीमती सुलभा जी, रानी सरोज गौरिहार एवं पं. केशव तलेगाँवकर जी के छायाचित्र पर माल्यार्पण कर किया गया। इस शुभ कार्य का निर्वहन संस्था अध्यक्ष विजय पाल सिंह चौहान, अनिल वर्मा, अरविन्द कपूर, डॉ. मंगला मठकर एवं प्रबंध न्यासी प्रतिभा तलेगाँवकर ने किया।

सर्वप्रथम प्रस्तुति के रूप में पं. केशव जी द्वारा ध्रुपद शैली में रचित नाद वन्दना “नाद की साधना स्वर की आराधना” को संगीत कला केन्द्र के साधकों नीपा साहा, ईशा सेठ, अभिलाषा शुक्ला, आर्ची, गोपाल मिश्रा, जतिन नागरानी, सुधीर कुमार एवं हर्षित आर्य ने गुरु माँ प्रतिभा तलेगाँवकर के निर्देशन में प्रस्तुत किया। आपके साथ तबले पर डॉ. लोकेन्द्र तलेगाँवकर और संवादिनी पर पं. रवीन्द्र तलेगाँवकर ने संगति की।

इसके बाद केन्द्र के नन्हे साधक अर्पित मोदी ने गुरु माँ प्रतिभा तलेगाँवकर के निर्देशन में राग आसावरी में पं. रघुनाथ जी द्वारा रचित मध्य लय रचना “दरस बिन सूनी अँखियाँ मोरी” तथा एक ताल में निबद्ध तराने की प्रभावशाली प्रस्तुति दी। तबले पर शुभ्रा तलेगाँवकर और संवादिनी पर प्रतिभा तलेगाँवकर ने संगति की।

कार्यक्रम के अगले चरण में नगर के युवा सितार वादक विदुर अग्निहोत्री ने सितार पर राग बसंत मुखारी में विलंबित एवं मध्य लय गत ताल, तीन ताल में विशेष तैयारी के साथ प्रस्तुत कर श्रोताओं की वाहवाही लूटी। आपके साथ तबले पर सुविख्यात तबला वादिका प्रो. नीलू शर्मा ने कुशलतापूर्वक संगत की।

कार्यक्रम की विशिष्ट प्रस्तुति के रूप में नासिक से पधारे अतिथि कलाकार डॉ. आशीष रानाडे (सुयोग्य शिष्य पं. अविराज तायडे एवं आनन्द भाटे) का अप्रतिम शास्त्रीय गायन हुआ। आपने अपनी राग शुद्ध सारंग में विलंबित एक ताल में निबद्ध रचना “हे बनावन आये” तत्पश्चात् ताल त्रिताल में “अब मोरी बात” रचना की सुरम्य प्रस्तुति दी, कार्यक्रम का समापन आपने राग भैरवी में सुप्रचलित ठुमरी “बाजू बंद खुल खुल जाये” से किया । आपके साथ तबले पर जाने-माने तबला वादक डॉ. लोकेन्द्र तलेगाँवकर एवं संवादिनी पर सुविख्यात संवादिनी वादक पं. रवीन्द्र तलेगाँवकर ने अत्यंत सूझभरी संगत की।

इस अवसर पर संस्था के पदाधिकारियों द्वारा डॉ. आशीष रानाडे को “नाद गौरव”, डॉ. नीलू शर्मा को “नाद सहोदर”, विदुर अग्निहोत्री को “नाद साधक” के सम्मान से अलंकृत किया गया। कार्यक्रम की बागडोर और संचालन सम्भाला सुविख्यात कवि सुशील सरिता ने। अध्यक्ष विजय पाल सिंह चौहान ने आयोजन को अपने आशीर्वचन दिए और उपस्थित श्रीताओं का आभार प्रकट किया।

उपस्थित श्रोताओं में अरविन्द कपूर, योगेश शर्मा , डॉ. अरुण चतुर्वेदी, डॉ. मंगला मठकर, प्रो. लवली शर्मा, डॉ. मीरा अग्रवाल, डॉ. अमिता त्रिपाठी, क्रिस्टी के. लाल, डॉ. आरके श्रीवास्तव, आरबी दुबे, सोम कमल, सीताराम, नवनीत शर्मा, आदर्श नन्दन गुप्ता, डॉ. महेश धाकड़, पं. गिरधारी लाल, गजेन्द्र सिंह, राशि जौहरी, डॉ. गिरिन्द्र तलेगाँवकर, मुक्ता तलेगाँवकर, आशीष पाठक आदि उपस्थित रहे।

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