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जब पर्यावरण के लिए कोई गंभीर समस्या पैदा होती है, तब सरकार और न्यायपालिका उनकी निगरानी करना जारी रखती हैं, और आवश्यकता पड़ने पर उपयुक्त हस्तक्षेप भी करती हैं-एम. सी. मेहता

‘ताज महोत्सव-२०२३’ के तहत आयोजित ‘आगरा बियोंड ताज – ग्रीन हेरिटेज ऑफ आगरा’ विषय पर एक महत्वपूर्ण चर्चा डीईआई के अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी हॉल में आयोजित की गयी।

ब्रज पत्रिका, आगरा। सोसायटी फॉर प्रिजर्वेशन ऑफ हेल्दी एनवायरनमेंट एंड इकोलॉजी एंड हेरिटेज ऑफ आगरा (स्फीहा) के साथ दयालबाग एजुकेशनल इंस्टीट्यूट (डीम्ड यूनिवर्सिटी), उत्तर प्रदेश टूरिज्म एंड टूरिज्म गिल्ड ऑफ आगरा ने अपने वार्षिक कार्यक्रम ‘आगरा बियोंड ताज – आगरा की हरित विरासत’ का आयोजन किया। यह संगोष्ठी डीईआई के अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी हॉल में आयोजित की गयी। इसका उद्देश्य आगरा शहर की हरित विरासत को संरक्षित करने के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना था।

रित विरासत शहर के प्राकृतिक और सांस्कृतिक परिदृश्य को भी व्याख्यायित करती है, जिसने इसके पारिस्थितिक, सौंदर्य और ऐतिहासिक महत्व में योगदान दिया है। आगरा शहर खूबसूरत बगीचों, पार्कों और बागों के समृद्ध इतिहास को समेटे हुए है। दुर्भाग्य से शहरीकरण और विकास के कारण इनमें से कई हरित स्थान खो गए हैं, जिससे कई पर्यावरणीय समस्याएं पैदा हो गई हैं। संगोष्ठी में आगरा की हरित विरासत के संरक्षण के महत्व पर प्रकाश डाला गया और भावी पीढ़ियों के लिए एक सतत और स्वस्थ वातावरण सुनिश्चित करने के लिए सतत विकास के तरीकों पर चर्चा की गई।

कार्यक्रम की शुरुआत सर्वशक्तिमान के चरण कमलों में प्रार्थना से हुई। कार्यक्रम के आयोजन सचिव और स्फीहा के उपाध्यक्ष राजीव नारायण ने वक्ताओं, गणमान्य व्यक्तियों और श्रोताओं का स्वागत किया। संगोष्ठी के विषय का परिचय देकर विस्तार स्फीहा के अध्यक्ष एम. ए. पठान ने किया।


अतिरिक्त महानिदेशक, वन (वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार) बिवाश रंजन, आईएफएस ने ऑनलाइन लिंक के माध्यम से दिल्ली से इस सेमिनार में शामिल हुए और हरित आवरण में सुधार के लिए की जा रहीं विभिन्न सरकारी पहलों के बारे में चर्चा की। उन्होंने आगरा की वन भूमि में किए गए कार्यों का भी जिक्र किया।

विख्यात पर्यावरण अधिवक्ता एम. सी. मेहता ने मुख्य भाषण दिया। उन्होंने वर्तमान स्थिति, कानूनी प्रावधानों और आगरा शहर के लिए हरित विरासत के संरक्षण के लिए भविष्य के रोड-मैप के बारे में बताया। उन्होंने उल्लेख किया कि,

“जब पर्यावरण के लिए कोई गंभीर समस्या पैदा होती है, तब सरकार और न्यायपालिका उनकी निगरानी करना जारी रखती हैं, और आवश्यकता पड़ने पर उपयुक्त हस्तक्षेप भी करती हैं।”

राधास्वामी सत्संग सभा के अध्यक्ष जी. एस. सूद ने बताया कि,

“दयालबाग सक्रिय रूप से हरित क्षेत्र को बढ़ाने के लिए स्फीहा और बायो-फेंसिंग जैसी अवधारणाओं सहित अन्य निकायों के साथ काम कर रहा है।”

उन्होंने दयालबाग की सौर ऊर्जा, जल संरक्षण, वर्षा जल संचयन और अपशिष्ट प्रबंधन उपचार विधियों का भी उल्लेख किया।

टूरिज्म गिल्ड ऑफ आगरा के अध्यक्ष राजीव सक्सेना ने अतिथियों को हरियाली और पर्यटन के सीधे संबंध की जानकारी दी। उन्होंने जोर देकर कहा कि,

“आगरा की हरित विरासत के संरक्षण के लिए और अधिक प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।”

उन्होंने यह भी कहा कि किस तरह आज सबसे अधिक पर्यटन विकास स्थायी रूप से हो रहा है और पर्यावरण संबंधी चिंताएं प्रमुख महत्व रखती हैं।

दयालबाग एजुकेशनल इंस्टीट्यूट के निदेशक प्रो. पी. के. कालरा ने अनुपम उपवन सहित उनके द्वारा की गई विभिन्न पहलों के बारे में बताया, जिसे शांति निकेतन की तर्ज पर विकसित किया जा रहा है। उन्होंने डीईआई में पर्यावरण चेतना के लिए की गई व्यक्तिगत पहलों एवं खाद्य विकास पहलों का भी उल्लेख किया।

संस्कृतिकर्मी और पर्यटन उद्यमी अरुण डंग आगरा में कुछ उद्योगों की बंदी के बाद हुए नौकरियों के नुकसान के बारे में मुखर हुए, जिसका बंद हुए उद्योगों ने सामना किया। उन्होंने कहा कि,

“सतत विकास को समावेशी होना चाहिए, हरित पहलों के कार्यान्वयन को सभी लोगों की अपेक्षाओं से मेल खाना चाहिए।”

साथ ही उन्होंने कहा कि,

“जिनका काम आगरा के लोगों की सेवा करना है, वे ऐसा करने में विफल रहे हैं और वर्षों से अभी भी कई मुद्दे बने हुए हैं। आगरा देश में पर्यटन का सबसे अधिक राजस्व अर्जक होने के बावजूद आगरा की हरित विरासत, विशेष रूप से यमुना नदी के बगल में और साथ ही शहर में घट रही है।”

इसके बाद एक पैनल चर्चा भी आयोजित की गई जिसमें वक्ताओं ने आगरा की हरित विरासत के महत्व, शहर के हरित आवरण की तत्कालीन और वर्तमान स्थिति के साथ खोए हुए हरित स्थानों को संरक्षित और पुनर्स्थापित करने के लिए किए जा सकने वाले उपायों पर चर्चा की। स्फीहा के सचिव पंकज गुप्ता ने इस पैनल चर्चा का संचालन किया।

स्फीहा के संयुक्त सचिव कर्नल (सेवानिवृत्त) आर. के. सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन के साथ सेमिनार का समापन किया। कार्यक्रम का संचालन सुधीर नारायण ने किया। इस कार्यक्रम में आनंद मोहन, स्नेह बिजलानी, संत भनोट, हरि सुकुमार, पीपी श्रीवास्तव, अमोल्या कक्कड़, राजेश शर्मा, प्रो. जे. के. वर्मा, आर. बी. सिंह, सुरेखा यादव, डॉक्टर गिरजा शंकर शर्मा, डॉक्टर महेश धाकड़, शब्द मिश्र सहित आगरा की अन्य स्वनामधन्य शख्शियतें शामिल हुईं।

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