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ताजनगरी के गीतकार कुमार ललित को लखनऊ में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने दिया प्रदेश स्तरीय ‘निराला पुरस्कार’

कुमार ललित के गीत संग्रह ‘कोई हो मौसम मितवा’ को गीत विधा में चुना गया उत्तर प्रदेश का सर्वश्रेष्ठ संग्रह।

प्रशस्ति पत्र के साथ मिली सम्मान स्वरूप ₹75 हजार की राशि।

35 वर्ष की काव्य साधना के साथ बड़ों के आशीषों का श्रीफल है यह सम्मान-कुमार ललित

ब्रज पत्रिका, आगरा। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ द्वारा संस्थान के 46वें स्थापना दिवस पर हिंदी भवन के यशपाल सभागार में ताजनगरी के युवा कवि-गीतकार कुमार ललित को उनके गीत संग्रह ‘कोई हो मौसम मितवा’ के लिए गीत विधा का ‘निराला पुरस्कार’ प्रदान किया गया।

उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के निदेशक आरपी सिंह (आईएएस) के साथ सम्माननीय अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. राम कठिन सिंह और वरिष्ठ कथाकार डॉ. सुधाकर अदीब ने कुमार ललित को उत्तरीय ओढ़ाकर प्रशस्ति पत्र के साथ 75 हजार रुपए की सम्मान राशि प्रदान कर सम्मानित किया।

समारोह में केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा की निदेशक प्रोफेसर बीना शर्मा सहित प्रदेश के 34 साहित्यकारों को वर्ष 2021 में प्रकाशित विभिन्न विधाओं की पुस्तकों पर नामित पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया।

उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान की प्रधान संपादक डॉ. अमिता दुबे ने समारोह का कुशलता पूर्वक संचालन किया। इस दौरान पूर्व प्रधान संपादक अनिल मिश्र और वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. विद्या बिंदु सिंह भी मौजूद रहीं।

अपने प्रथम गीत संग्रह पर ‘निराला पुरस्कार’ से हर्षित और उत्साहित गीतकार कुमार ललित ने ‘निराला पुरस्कार’ को गौरवशाली उपलब्धि बताते हुए कहा कि,

“यह सम्मान 35 वर्षों की सतत काव्य-साधना के साथ-साथ माता-पिता, गुरुजनों और ताजनगरी के वरिष्ठ साहित्यकारों के आशीषों और प्रिय मित्रों की शुभकामनाओं का श्रीफल है।”

गौरतलब है कि कुमार ललित के इसी गीत संग्रह को उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा वर्ष 2021 में प्रकाशन हेतु अनुदान प्रदान किया गया था।

श्रृंगार और संवेदना के कुशल चितेरे हैं कुमार ललित

उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा अनुदानित और निराला पुरस्कार से सम्मानित तथा शिल्पायन-दिल्ली से प्रकाशित गीत संग्रह ‘कोई हो मौसम मितवा’ में कुमार ललित के चुनिंदा 70 गीत शामिल हैं। इन गीतों में श्रंगार और संवेदना को कुशलता से चित्रित किया गया है।

ये गीत हुए चर्चित

सृष्टि का विज्ञान सांसों की सतत आराधना है। जिंदगी बस हाथ में जल रोकने की साधना है…
रोज सफर पर चलता है। सूरज रोज निकलता है। वो न कभी गुमसुम होता। बेशक हर दिन ढलता है…
गीत क्या है निर्झरा है। गीत से कब मन भरा है। गीत-गंगा में नहाकर, हर रसिक भव से तरा है…
आज मुझको फिर मिला इक खत नया‌। और मेरा मन हुआ फिर रेशमी…
कल की रात बहुत लंबी थी, मुश्किल कट पाई। रोजाना की तरह तुम्हारी याद चली आई…
कोई हो मौसम मितवा। रक्खो दम में दम मितवा। दामन में खुशबू भर लो। भूलो सारे गम मितवा…
सारा जीवन होम कर दिया। फिर भी कहते क्या किया। हाय रे हाय! बैरी पिया…
कितने अश्क छिपे होते हैं हंसने वाली आंखों में…!

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