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कहानी संग्रह ‘टूटते तटबंध’ और बाल साहित्य ‘कविता के रंग बच्चों के संग’ का लोकार्पण

स्त्रियों की समस्याओं के रोचक समाधान के साथ बच्चों को मिलेगी नैतिक शिक्षा।

वरिष्ठ साहित्यकार रमा वर्मा ‘श्याम’ की दो साहित्यिक कृतियों का यूथ हॉस्टल में संयुक्त रूप से हुआ लोकार्पण।

ब्रज पत्रिका, आगरा। अपने पति-पूर्व जेलर श्याम लाल वर्मा की पावन स्मृतियों को जीवंत बनाए रखने के लिए वरिष्ठ साहित्यकार रमा वर्मा ‘श्याम’ द्वारा नवगठित साहित्यिक संस्था श्याम स्मृति वर्तिका के बैनर तले अपनी दो साहित्यिक कृतियों- ‘टूटते तटबंध’ (कहानी संग्रह) और ‘कविता के रंग बच्चों के संग’ (बाल साहित्य) का लोकार्पण यूथ हॉस्टल में देश के गणमान्य साहित्यकारों द्वारा किया गया।

टूटते तटबंध में जहाँ स्त्रियों की समस्याओं के रोचक समाधान हैं, वहीं कविता के रंग बच्चों के संग में बच्चों को नैतिक शिक्षा मिलेगी। समारोह की अध्यक्षता शांति नागर ने की। खाटू श्याम जी, सीकर के संत कान दास जी महाराज मुख्य अतिथि रहे। सीकर के प्रसिद्ध शिक्षक और गीतकार प्रभु दयाल वर्मा, सुप्रसिद्ध गज़लकार अशोक रावत और कमलेश त्रिवेदी (हापुड़) विशिष्ट अतिथि रहीं।

आरबीएस कॉलेज की पूर्व प्राचार्य और वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुषमा सिंह, डॉ. पुनीता पचौरी और डॉ. गीता यादवेंदु ने ‘टूटते तटबंध’ तथा सुशील सरित और डॉ. रेखा कक्कड़ ने ‘कविता के रंग बच्चों के संग’ पुस्तक की सारगर्भित समीक्षा प्रस्तुत की।

लोकार्पित कृतियों की रचनाकार रमा वर्मा ‘श्याम’ ने कहा कि,

“टूटते तटबंध कहानी संग्रह में संघर्षशील औरतों की कहानियाँ हैं।”

उन्होंने एक कविता के माध्यम से संघर्षशील औरतों का एक रेखाचित्र भी सबके सामने रखा,

“बदलते दौर की/ये बदलती औरतें/ तलाश रही हैं/ अपने पावों के/ नीचे की धरा/ सर के ऊपर की छत/ वे निकल रही हैं/ पुरानी सोच के/ कछुए के खोल/ से बाहर…!”

कहानी संग्रह ‘टूटते तटबंध’ की समीक्षा करते हुए डॉ. सुषमा सिंह ने कहा कि,

“टूटते तटबंध एक तरह से नारी जीवन का महाकाव्य है। रमा जी नारी जीवन के लिए न्याय, समानता और सम्मान की पक्षधर हैं। सभी कहानियाँ उनके इस व्यक्तित्व का प्रतिफल हैं।”

डॉ. पुनीता पचौरी ने कहा कि,

“इस कहानी संग्रह में स्त्रियों की समस्याओं को ही नहीं, बल्कि उन समस्याओं के अत्यंत प्रेरक और उचित समाधान देने का भी स्तुत्य प्रयास किया गया है। संग्रह की सभी कहानियाँ पाठक को चिंतन, मनन करने और दृष्टिकोण में परिवर्तन लाने के लिए मजबूर कर देती हैं।”

डॉ. गीता यादवेन्दु ने कहानी संग्रह टूटते तटबंध पर अपने विचार वक्त करते हुये कहा कि,

“परम्पराओं को तोड़कर जीवन को नये सिरे से जीने और सँवारने का हक है औरत को।”

वरिष्ठ साहित्यकार सुशील सरित ने ‘कविता के रंग बच्चों के संग’ की समीक्षा प्रस्तुत करते हुए कहा कि,

“इस संग्रह में बच्चों के मन को छूने की सहज कोशिश है, और नवीन विषयों का निर्वहन भी है। इन गीतों में बाल मन की भावनाओं को बड़े ही करीने से पिरोया गया है।”

डॉ. रेखा कक्कड़ ने कहा कि,

“रमा जी के लेखन में चिंतन की प्रचुर सामग्री मिलती है।”

इससे पूर्व ज्योत्स्ना सिंह ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। यशोधरा यादव ‘यशो’ और रमा रश्मि ने समारोह का संचालन किया। इस मौके पर मिथलेश पाठक, शीलेंद्र वशिष्ठ, त्रिमोहन तरल, अनिल उपाध्याय, परमानंद शर्मा, शलभ भारती, रमेश पंडित, प्रोफेसर सुगम आनंद, सुरेंद्र वर्मा सजग, संजीव गौतम, कमला सैनी, रेखा शर्मा, विजया तिवारी, साधना वैद, रीता शर्मा, डॉ. रश्मि सक्सैना, सविता मिश्रा, सुनीता चौहान, प्रेमलता मिश्रा, मिली मौर्या भी प्रमुख रूप से उपस्थित रहीं।

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