“आँखों को मूँद लेने से खतरा न जाएगा वो देखना पड़ेगा जो देखा न जाएगा…!”
आगरा विकास प्राधिकरण द्वारा सूरसदन में आयोजित हुआ मुशायरा।
मुशायरे का आगाज़ प्रोफेसर वसीम बरेलवी व जस्टिस इफाकत अली ने शमा रोशन करके किया।
ब्रज पत्रिका, आगरा। ताज महोत्सव 2022 के अंतर्गत दिनांक 28 मार्च 2022 को सूरसदन आगरा में ‘अमन कुल हिंद मुशायरा’ का आयोजन किया गया जिसकी सदारत विश्वविख्यात शायर प्रोफेसर वसीम बरेलवी ने की। मुख्य अतिथि इफाकत अली रिटायर्ड जस्टिस इलाहाबाद हाईकोर्ट थे। मुशायरे का आगाज़ प्रोफेसर वसीम बरेलवी व जस्टिस इफाकत अली ने शमा रोशन करके किया। संयोजक आगरा विकास प्राधिकरण था।
इस अवसर पर बोलते हुए जस्टिस इफाकत अली ने कहा कि,
“मुशायरे हमारी गंगा-जमुनी तहजीब की पहचान है। शायर को अमन, भाईचारा, सुख-शांति का पैगाम अपनी शायरी से देना चाहिए। आज के मुशायरे का उन्वान अमन यानी शांति है जिसकी आज विश्व को बेहद जरूरत है।”
मुशायरे में आए शायरों का बैज लगाकर व माल्यार्पण कर शिवराज यादव, हरीश चिमटी, भरतदीप माथुर, डाॅ. त्रिमोहन तरल, विशाल रियाज़, शाहरुख कुरैशी, डाॅ. नसरीन बेगम, खावर हाशमी आदि ने स्वागत किया। स्वागत सत्र का संचालन अमीर अहमद जाफ़री एडवोकेट ने किया एवं मुशायरे का संचालन अतहर शकील नगीनवी ( मुंबई) ने किया।
मुशायरे में प्रोफेसर वसीम बरेलवी, मंजर भोपाली, खुर्शीद हैदर, अतहर शकील नगीनवी, खलिश अकबराबादी, अतुल अजनबी, अलीना इतरत, दान बहादुर सिंह, चांदनी पांडे, नमिता नमन ने अपना कलाम पेश किया।
चांदनी पांडे ने सुनाया,
“चांद की आगोश में होने से जिसका हो वजूद
खिल सकेगी क्या भला वो रात रानी धूप में
उसकी फुरकत की तपिश में मैं झुलस कर रह गई
वरना इतनी ताप कब थी आसमानी धूप में!”
अतहर शकील नगीनवी ने सुनाया,
“हर एक शख्स को दुश्मन अगर बनाओगे
मिजाज़ पूछने वाला कहाँ से लाओगे
ये चेहरा क्यूँ तेरा उतरा हुआ है
यहाँ तो हर कोई रुसवा हुआ है!”
नमिता नमन ने सुनाया,
“सर्द क्यूँ पड़ गई धड़कने आखिरश
चांदनी ने बदन को छुआ तो नहीं
जिसकी खातिर नमिता बनूँ मैं सिया
राम ऐसा कोई भी मिला तो नहीं!”
अलीना इतरत ने सुनाया,
“उदासी शाम तन्हाई कसक यादों की बेचैनी
मुझे सब सौंप कर सूरज उतर जाता है पानी में
अपनी मुट्ठी में छुपा कर किसी जुगनू की तरह
हम तेरे नाम को चुपके से पढ़ा करते हैं!”
दान बहादुर सिंह ने सुनाया,
“वफ़ा दिखाता अगर समंदर न होता नमकीन मीठा पानी
कहाँ पे ठहरा उदास पानी नदी से पूछो जो पूछना है
रिवाज सारे रटे हुए हैं पता मुझे है हवन के मानें
इबादतों में कमी ना रखते उसी से पूछो जो पूछना है!”
मंजर भोपाली ने सुनाया,
“मोहब्बतों के चरागों की जिंदगी कम है
दीए जलाओ की दुनिया में रौशनी कम है
ये कैसा कर्ज़ है नफरत का कम नहीं होता
ये बढ़ता जाता है जितना चुकाए जाते हैं!”
अतुल अजनबी ने सुनाया,
“बड़े सलीके बड़ी सादगी से काम लिया
दिया जला के अंधेरों से इंतकाम लिया
अब इस उजाले को हैरान कर दिया जाए
मैं बस तुम्हारा हूंँ ऐलान कर दिया जाए!”
वसीम बरेलवी ने सुनाया,
“आँखों को मूँद लेने से खतरा न जाएगा
वो देखना पड़ेगा जो देखा न जाएगा
बात बढ़ जाती तो खोटा होता दोनों का सफर
मैं ही पीछे हट गया और उसको रास्ता दे दिया!”
ख़ुर्शीद हैदर ने सुनाया,
“गैर परों पर उड़ सकते हैं हद से हद दीवारों तक,
अम्बर पर तो वही उड़ेंगे, जिनके अपने पर होंगे!”
फ़ोटो साभार-असलम सलीमी (सीनियर फोटो जर्नलिस्ट)