आखिरी बार जो मैंने देखा, वो था एक हत्यारा सफेद कपड़ों में! मुझे एक डब्बे में फेंक दिया और सब कुछ खत्म हो गया!
“मेरा जन्म अब हुआ ही नहीं था, पर आपने मुझको मार दिया…! मेरे कितने अच्छे-अच्छे सपने थे…!”
कहानी: चोरी बचपन
किताब: मेरा हाथ पकड़ ले, मुझे डर है!
लेखक: आर्मेन निआज़्यान
अनुवादक: आर्मीने निआज़्यान
मैं तीन महीने की एक छोटी सी लड़की हूँ। मैं एक आम जीवन जी लेती हूँ। सच कहूँ, तो मुझे पता ही नहीं कि यह ‘जीवन’ क्या चीज़ होता है। मैं अभी इससे ज़्यादा कुछ नहीं समझती। मेरे मम्मी-पापा हैं। हर बार, जब उनकी आवाज़ सुनती हूँ, मेरा छोटा-सा दिल तेज़ी से धड़कने लगता है। मैं बहुत छोटी हूँ, पर अपने छोटे से हाथ-पैर महसूस कर सकती हूँ । मुझे अपने माँ के साथ खेलना बहुत पसन्द है। जब मैं अपने हाथ-पैर से उसके साथ खेल रही होती हूँ, तो वह बहुत खुश हो जाती है। मैं कितनी खुश हूँ, कितना प्यार करती हूँ अपनी माँ से, और अपने इस ‘जीवन’ से।
एक सुबह पापा की आवाज़ से उठ गयी। मुझे लगा कि वे मेरी मम्मी पर गुस्सा हो रहे थे। उनको ऐसा लग रहा था कि मैं कुछ नहीं सुन पा रही थी, पर मैंने बहुत साफ सुन ली, पापा की बात: “मेरी बात समझ लो, अभी हमें इसकी ज़रूरत नहीं, यह हमें परेशान कर सकती है…!” किसके बारे में बात कर रहे थे वे…? अगर मेरे मम्मी-पापा कुछ करना चाहते हैं और कोई चीज़ उनको परेशान करती है, तो इसे ज़रूर हटाना चाहिए। मैं नहीं चाहती कि मेरे मम्मी-पापा किसी के कारण दुखी हों। वे बहुत अच्छे हैं। फिर पापा घर से कहीं चले गए और माँ रोने लगी। उसके रोने से मैं भी रोने लगी। मैं बहुत छोटी हूँ, लेकिन मैं अपनी माँ से बेहद प्यार करती हूँ। वो मुझे देख नहीं सकती हैं, लेकिन मैं उसकी हर खुशी, हर दर्द महसुस करती हूँ। मैं चाहती हूँ कि मम्मी हमेशा खुश रहें। इससे मुझे बहुत खुशी मिलती है।
अगले दिन मम्मी-पापा के साथ कहीं गये। दोनों कुछ बात नहीं करते, दोनों चुप थे। एक लम्बे गलियारे में चल रहे थे। मैं समझ नहीं पा रही थी कि हम कहाँ जा रहे थे। फिर एक कमरे में गये और तब सब मालूम हुआ…! कितना प्यार करती हूँ मैं अपने मम्मी-पापा से…! वे मेरी फोटो खींचने आये थे। फोटो खिंचते समय गंभीर दिखने की जितने भी कोशिश की, नहीं कर पायी, मुस्कुरा रही थी। हम घर वापस आ गये। वे दोनों अब तक चुप थे, पर मैं खुश थी, शायद इसलिए कि ‘जीवन’ का मतलब अब तक नहीं समझती। क्या दिक्कत थी? परेशान कौन करती थी? मैं क्या कर सकती हूँ, कि इससे माँ को खुशी मिले? मैं अपने छोटे-से पैरों से उसको मारने की कोशिश की, क्योंकि हर बार जब मैं दहल रही थी, वह मुस्कुरा रही थी, पर इस बार वह रोने लगी और मैं भी उसके साथ।
शाम को माँ नानी से बात कर रही थी: “बस, निश्चित हो गयी, कल मुक्त कर देंगे। हमारे बहुत सारे सपने हैं, अब वो हमको नहीं चाहिए!” ज़रूर , अगर ऐसी कोई चीज़ है, जो मेरे मम्मी-पापा को परेशान करती है, उसे ज़रूर मुक्त करना चाहिए, मैं नहीं चाहती कि वे किसी के कारण दुःखी हो जाएं। मैं माँ को सुनती रही। “हाँ, पता है, लेकिन क्या करूँ, मेरी प्यारी बच्ची को मारना पड़ेगा!” क्या? किसको? इस नाम से माँ मुझसे बात करती है, मुझे इस नाम से बुलाती है…! अब मुझे नहीं चाहती? मुझे? क्यों? मैं उनको क्या परेशान करती थी? मरने के बाद क्या होता है? मुझे किसी और को दे देंगे क्या? मम्मी, पापा आप क्या करना चाहते हैं? दिल तेज़ी से धड़कने लगा, कुछ समझ नहीं पा रही थी। क्या हो रहा है? मैं अपने हाथ-पैर दहल रही थी। हर बार जब ऐसा करती थी, माँ मुझको प्यारी बातें कहती थी, शान्त कराती थी। माँ, मुझे बहुत डर लगता है। पर नहीं, शायाद मैं उनकी बात गलत समझती हूँ, मैं बहुत छोटी हूँ न, इसलिये। मैं जानती हूँ कि मेरी मम्मी मेरी रक्षा करेगी। पता ही नहीं चला, कि कैसे सो गयी।
सुबह को सब दुःखी थे। मम्मी-पापा के साथ वहीं गये, जहाँ कल मेरे फोटो खिंचवाने गये थे। कई दिन हो गये कि न पापा न मम्मी मुझसे बात नहीं करते, मुझसे प्यार से कुछ नहीं कहते। आखरी बार मेरे बारे में माँ की बात नानी से हुई थी। कोई माँ से कुछ कह रहा था: “आप चिंता मत कीजिये, वो अभी बहुत छोटी है, कुछ महसूस नहीं कर सकती!” पता नहीं किन भावनाओं की बात कर रहे थे, पर मैं सब महसूस कर रही थी, मैंने ज़ोर से चिल्लाने की कोशिश की: “ऐ, तुम, क्या बोल रहे हो? मैं महसूस कर सकती हूँ, मैं अपनी माँ की खुशियां और ग़म महसूस कर सकती हूँ, उसके साथ खुश होती हूँ, उसके साथ रोती हूँ! आप क्या करना चाहते हैं, जो मैं महसूस नहीं करूँगी?”
पर मेरी बात कोई सुन नहीं पा रहा था। फिर कुछ अजीब सा हुआ। अपने ‘जीवन’ में पहली बार मैंने किसी का छूना महसुस किया, बहुत डर गयी, इससे दूर जाना, छिप जाना चाहती थी, पर नहीं कर पायी, मुझे खींच रहे थे अपनी माँ से, बहुत दर्द हुआ…! एक पल में सब कुछ बदल गया! इस नूतन दिनों में मैं अँधेरे में थी, आँखे बंद थे, मैं अपनी माँ के साथ थी, वो मुझसे प्यार करती थी, मैं सुरक्षित थी, पर अभी…! अभी मुझे अपनी माँ से अलग कर दिया! आखिरी बार जो मैंने देखा, वो था एक हत्यारा सफेद कपड़ों में! मुझे एक डब्बे में फेंक दिया और सब कुछ खत्म हो गया! मम्मी, पापा मैं जीना चाहती थी…! मेरा जन्म अब हुआ ही नहीं था, पर आपने मुझको मार दिया…! मेरे कितने अच्छे-अच्छे सपने थे…! यही था ‘जीवन’ क्या? “अगर एक दिन मेरे भाई -बहन होंगे, तो उनको जीने दीजिये, उनसे जीवन मत चुराइये, उनका बचपन उनसे मत छीनना!”
आर्मेनियाई अनुवादक आर्मीने निआज़्यान ने इस कहानी के बाबत ‘ब्रज पत्रिका’ को बताया,
“मैं अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर अपना यह पहला साहित्यिक अनुवाद प्रस्तुत करना चाहती थी, जो पाठकों के समक्ष मैंने प्रस्तुत कर दिया है, उम्मीद है कि पाठक इसमें छिपे सामाजिक जागरूकता और मानवीय संवेदनाओं की परवाह करने के संदेश को समझ कर बालिकाओं के जीवन की रक्षा के लिए जरूरी प्रयास करेंगे।”
(इस सार्थक व संदेशपरक कहानी के लेखक और अनुवादक दोनों आर्मेनियाई मूल के रचनाकार हैं, रचना उनकी अनुमति से ‘ब्रज पत्रिका‘ में प्रकाशित है, जो उनके मुताबिक़ उनकी मूल कृति है।)