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अलसाये नैना सांवरा तोहे देखन सुध खोयी…

57वें निनाद महोत्सव का सुरमयी समापन, विभिन्न अलंकरणों से सम्मानित हुए देश-विदेश के संगीत मनीषी।

विदुषी अनुराधा कुबेर, पं. कालीनाथ मिश्रा, वाहने बहनों की युगलबंदी और अमृत मिश्रा के कथक नृत्य प्रस्तुति से निनाद महोत्सव में श्रोताओं को हुई दिव्य आनंदानुभूति।

ब्रज पत्रिका, आगरा। द्वि-दिवसीय निनाद महोत्सव के अंतर्गत दूसरे दिन नाद साधना प्रातःकालीन सभा में कलाकरों ने अपनी उच्चतम कला का प्रदर्शन किया। कार्यक्रम का प्रारम्भ पं. केशव रघुनाथ तलेगांवकर जी द्वारा राग अहीर भैरव में निबद्ध नाद वंदना से किया गया तथा स्वर संगीत कला केन्द्र के स्वर साधक – ऋचा आर्य, डॉ. मेघा तलेगांवकर राव, हर्षित आर्य, गौरव गोस्वामी एवं गोपाल मिश्रा ने दिए। संवादिनी पर पं. रविन्द्र तलेगांवकर एवं शुभ्रा तलेगांवकर तथा तबले पर डॉ. लोकेन्द्र तलेगांवकर एवं हर्ष कुमार ने कुशल संगति दी, निर्देशन प्रतिभा तलेगांवकर ने किया।

नाद साधना की प्रथम प्रस्तुति के रूप में उज्जैन की युवा कलाकार संस्कृति एवं प्रकृति वाहने ने सितार-संतूर युगलबंदी में राग अहीर भैरव में आलाप, जोड़, झाला, विलम्बित एवं द्रुत रचना प्रस्तुत कर समां बांधा और श्रोताओं की वाहवाही बटोरी। निशांत शर्मा ने कुशल संगत कर कार्यक्रम को अलौकिक आनंद की ऊंचाइयों तक पंहुचाया। इस अवसर पर संस्था द्वारा वाहने बहनों को संगीत कला गौरव और निशांत को ‘संगीत सहोदर’ का मानद सम्मान प्रदान किया गया।

प्रातःकालीन सभा की अंतिम प्रस्तुति के रूप में बनारस घराने के सुविख्यात तबला वादक पं. कालीनाथ मिश्रा एवं उनके सुपुत्र सत्य प्रकाश मिश्रा ने तबला युगलबंदी में बनारस की पारम्परिक रचनाएं विशेष तैयारी के साथ प्रस्तुत की। आपके साथ कुशल नग़मा संगति अतुल ए. फड़के ने की। संस्था द्वारा आपको सर्वोच्च सम्मान ‘संगीत कला रत्न’ से सम्मानित किया गया। सत्यप्रकाश को ‘संगीत कला गौरव’, अतुल को ‘संगीत सहोदर’ का सम्मान प्रदान किया गया। कार्यक्रम का सुन्दर संचालन मेघा तलेगांवकर राव ने किया।

निनाद महोत्सव की समापन सभा प्राचीन कला केन्द्र, चंडीगढ़ के संस्थापक गुरु श्री मदन लाल कौसर जी को समर्पित की गयी। कार्यक्रम का आरम्भ ग्वालियर घराने की पारम्परिक रचना-“गुरु बिन कैसे गुन गावे” से संगीत कला केन्द्र के नन्हे साधकों मास्टर अनहद राव, प्रियाक्षी सिंह, प्रत्यूष पाण्डेय, आर्येश अदम्य एवं दर्शित राज सोनी द्वारा प्रस्तुत किया गया। निर्देशन प्रतिभा तलेगांवकर ने एवं तबले पर साथ डॉ. लोकेन्द्र तलेगांवकर ने दिया।

सभा की प्रथम प्रस्तुति अमृत मिश्रा के कथक नृत्य की हुई। आपने अपनी प्रस्तुति में थाट, आमद, तोड़ा, टुकड़ा, तिहाइयाँ, गत, भाव आदि की प्रभावशाली प्रस्तुति देकर दर्शकों का मन मोहा। तबले पर आनंद मिश्रा, गायन शक्ति मिश्रा एवं बांसुरी पर रवि प्रजापति ने आपका कुशलता से साथ दिया।

संगीत कला केन्द्र एवं पं. रघुनाथ तलेगांवकर फाउंडेशन ट्रस्ट आगरा द्वारा संगीत क्षेत्र में विशेष सेवाओं हेतु विभिन्न अलंकरण प्रदान किये जाते हैं। इस वर्ष पं. राजेन्द्र प्रसन्ना एवं पं. कालीनाथ मिश्रा को ‘संगीत कला रत्न’, विदुषी अनुराधा कुबेर को ‘संगीत नक्षत्र’, वीना चन्द्रा (यूएसए) को ‘संगीत सेवी’, पं. विजय शंकर मिश्रा को ‘संगीत कला संवर्धक’, पं. लोकेश वाहने को ‘संस्कृति संवाहक’, श्रीकृष्ण एवं डॉ. मनीषा को ‘संगीत कलानुरागी’, प्रीती-पियूष, संस्कृति-प्रकृति वाहने, सत्यप्रकाश मिश्रा, अमृत मिश्रा को ‘संगीत कला गौरव’ तथा उस्ताद सलीम खां, शुभम शर्मा, रितेश प्रसन्ना, निशांत शर्मा, अतुल ए. फड़के, आनंद मिश्रा, शक्ति मिश्रा, रवि प्रजापति, सौमित्र क्षीर सागर एवं ऋग्वेद देशपांडे को ‘संगीत सहोदर’ सम्मान प्रदान किया गया।

सभा की अंतिम प्रस्तुति भेंडी बज़ार घराने की प्रतिनिधि कलाकार विदुषी अनुराधा कुबेर के शास्त्रीय गायन की रही। आपने राग मारु बिहाग में आपके दादा गुरु उस्ताद अमान अली खां साहब द्वारा रचित दो बंदिशें प्रस्तुत की। पहली मध्य लय रूपक में जिसके बोल थे-

“अलसाये नैना सांवरा तोहे देखन सुध खोयी”

तथा दूसरी बंदिश द्रुत तीन ताल में सुनाई-

“सजना जाओ ना बिदेस”

तत्पश्चात राग जोग में सुनाया-

“भस्म भूषण अंगन शिव गले सोहे रुण्ड माल”

यह मध्य लय एक ताल में एवं द्रुत तीन ताल में

“बनरा बन आयो राज दुलारो”

बंदिशों से श्रोताओं को आनंदित किया। आपके गायन में स्वर लगाव, भाव, तानों की विशेष तैयारी मंत्रमुग्ध करने वाली थी। आपके साथ तबले पर ऋग्वेद देशपांडे एवं संवादिनी पर सौमित्र क्षीर सागर ने प्रभावशाली संगति दी। इस अवसर पर संस्था द्वारा आपकी अप्रतिम प्रस्तुति हेतु पं. केशव रघुनाथ तलेगांवकर जी की पुण्य स्मृति में स्थापित ‘संगीत नक्षत्र’ सम्मान प्रदान किया गया साथ ही ऋग्वेद एवं सौमित्र को ‘संगीत सहोदर’ सम्मान दिया गया।

कार्यक्रम का समापन संस्था की परम्परानुसार पं. विष्णु दिगम्बर पलुस्कर जी द्वारा स्वरबद्ध “जय जगदीश हरे” एवं राम धुन का गायन करके किया गया, जिसे संस्था के साधकों एवं सदस्यों ने प्रस्तुत कर 57 वें निनाद महोत्सव को उसके अलौकिक आनंद के चरमोत्कर्ष तक पंहुचाया। इस कार्यक्रम का सफल संचालन संस्था के संरक्षक सदस्य विजय पाल सिंह चौहान ने किया।

सम्पूर्ण ‘निनाद’ महोत्सव को मूर्त रूप देने में निनाद संचालन समिति की डिजिटल टीम और खासतौर से अनुपम चटर्जी का अतुलनीय सहयोग रहा। प्रतियोगिता प्रभारी संतोष कुलश्रेष्ठ ने सराहनीय योगदान दिया। टीम के अन्य सदस्यों में अभिनव जोशुआ, शुभ्रा तलेगांवकर, आरोही तलेगांवकर, हर्षित आर्य, नीरज ग्रे ने इस कार्यक्रम को सफल बनाने में अपना-अपना अमूल्य योगदान दिया। कार्यक्रम समन्वयक डॉ. लोकेन्द्र तलेगांवकर एवं ट्रस्ट की प्रबन्ध न्यासी प्रतिभा केशव तलेगांवकर ने सभी रसिकों एवं कलाकारों का आभार व्यक्त किया।

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