शख्शियत

फ़िल्म संगीत की दुनिया को नूर देकर रुख़सत कर गया ‘नूरी’ का संगीतकार, ख़य्याम

आगरा। डॉ. महेश चंद्र धाकड़

आ जा रे ओ मेरे दिलबर आ जा…फ़िल्म नूरी का ये गीत सुनकर ऐसा लगता है जैसे इसका संगीत कानों के जरिये हृदय में उतरकर अंतरात्मा को झंकृत कर रहा हो। इस फ़िल्म ने रातों रात इस फ़िल्म की नायिका को स्टार बना दिया था। इस फ़िल्म को इस स्तर का संगीत देने वाले संगीतकार मोहम्मद ज़हूर ख़य्याम हाशमी साहब इस दुनिया से रुख़सत कर गए। उन्होंने अपने संगीत में शास्त्रीय संगीत की खुशबू के साथ-साथ ग़ज़ल की महक भी पूरे करियर में बनाये रखी। उन्होंने 19 अगस्त को 92 वर्ष की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। अंतिम सांस उन्होंने मुम्बई के सूरज अस्पताल में ली, जहाँ उनको संक्रमण के चलते सांस लेने में दिक्कत होने के बाद भर्ती कराया गया था। 20 अगस्त को उन्हें अंधेरी पश्चिम के फोर बंगला कब्रिस्तान में सुपुर्द-ए-ख़ाक कर दिया गया। उनको अंतिम विदाई देने सिनेमा जगत की तमाम मशहूर हस्तियाँ पहुँची। इनमें उनकी वो अदाकारा भी थी जिसको वे नूरी कहकर ही पुकारते थे, यानी पूनम ढिल्लन। उनके अलावा प्रमुख रूप से गीतकार गुलज़ार, फ़िल्म अभिनेत्री शबाना आज़मी, चरित्र अभिनेता रज़ा मुराद, गायक तलत अजीज़, लेखक और गीतकार जावेद अख्तर आदि उनके अंतिम दर्शन करने पहुँचे। ख़य्याम द्वारा जिन फिल्मों को संगीत से सजाया गया वे हिंदी सिनेमा की अनमोल कृति बन गईं। मसलन फ़िल्म बाज़ार, उमराव जान, कभी-कभी, नूरी, रजिया सुल्तान, दर्द, थोड़ी सी बेवफ़ाई आदि। उनके संगीत से सजे कुछ गीतों का ज़िक्र करना ही होगा। फिर छिड़ी  रात बात फूलों की, दिखाई दिए यूँ कि बेख़ुद किया, बहारो मेरा जीवन भी संवारो, कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है, ये क्या जगह है दोस्तो, करोगे बात तो हर बात याद आएगी, मोहब्बत बड़े काम की चीज़ है, ऐ दिले नादां, इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं, तेरे चेहरे से नज़र नहीं हटती नज़ारे हम क्या देखें, मैं पल दो पल का शायर हूँ, कभी किसी को मुकम्मल ज़हां नहीं मिलता, वो सुबह कभी तो आएगी, आपकी महकती हुई जुल्फों।

फ़िल्म संगीत की दुनिया में अतुलनीय योगदान के लिए महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल जी से देश के प्रतिष्ठित पद्मभूषण सम्मान ग्रहण करते हुए संगीतकार श्री मोहम्मद ज़हूर ख़य्याम साहब।

वर्ष 2011 में राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल द्वारा पद्मभूषण सम्मान से नवाज़े गए ख़य्याम साहब को 2007 में संगीत नाटक अकादमी अवार्ड से भी नवाज़ा गया था। उन्हें तीन फ़िल्म फेयर अवार्ड भी मिले। 1977 में फ़िल्म कभी कभी के लिए, 1982 में फ़िल्म उमराव जान के लिए और 2010 में लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड देकर सम्मानित किया गया। फिल्म उमराव जान के लिए तो उनको इस फ़िल्म के म्यूजिक डायरेक्टर के तौर पर नेशनल अवार्ड मिला था। 18 फरवरी 1927 में पंजाब प्रांत में जन्मे ख़य्याम जवानी के दिनों में फिल्मों में एक्टिंग करने की खातिर वे लाहौर चले गए। वहाँ वे बाबा चिश्ती के शिष्य बन गए। उसके बाद मुम्बई आ गए फिल्मों में काम करने जहाँ से उन्होंने बतौर संगीतकार कॅरियर की शुरुआत की। फिल्म हीर-रांझा से उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की थी। मगर बीवी फ़िल्म में रफ़ी साहब द्वारा गाये गीत ने उन्हें पहचान दिलाई। शगुन फ़िल्म में गायिका जगजीत कौर से उन्होंने शादी की। 1976 में यश चोपड़ा की फ़िल्म कभी कभी ने उनके सितारे चमका दिए। फ़िल्म बाजार और उमराव जान भी उनके करियर में मील का पत्थर साबित हुईं। फिल्मों के इतर भी उन्होंने संगीत दिया, इनमें कई गीत मशहूर हुए-पाँव पडूँ तोरे श्याम ब्रज में लौट चलो, गज़ब क्या तेरे वादे पे ऐतबार किया। मीना कुमारी की एक एल्बम को भी उन्होंने संगीत दिया। जिंदगी में उनके कई ग़म भी साथ निभाते गए, उनके सुपुत्र प्रदीप उनका 2012 में साथ छोड़कर इस दुनिया से चले गए। इस ग़म से वे ताउम्र उबर नहीं सके। एक हमदर्द इंसान ख़य्याम ने इस दुनिया से जाने से पहले अपने 90वेें जन्मदिन पर ख़य्याम जगजीत कौर ट्रस्ट बनाकर जीवन भर की कमाई करीब 12 करोड़ रुपये दान कर दिए जिससे जरूरतमंद कलाकारों की मदद हो सके। संगीत जगत की ऐसी आला शख़्शियत को शत-शत नमन!

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