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उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने दिया अनुदान, आगरा के कवि कुमार ललित का बढ़ा मान!

इस अनुदान से नामचीन प्रकाशक ‘शिल्पायन’ ने किया कवि कुमार ललित का प्रथम गीत संग्रह ‘कोई हो मौसम मितवा’ प्रकाशित।

आगरा और देश के जाने-माने कवि-गीतकारों ने की गीतों की सराहना, दिया आशीर्वाद।

ब्रज पत्रिका, आगरा। “रोज सफर पर चलता है। सूरज रोज निकलता है। वो न कभी गुमसुम होता। बेशक हर दिन ढलता है…!”

“कोई हो मौसम मितवा। रक्खो दम में दम मितवा। दामन में खुशबू भर लो। भूलो सारे गम मितवा…!”

ऐसे अनेक प्रेरणाप्रद गीत लिखने वाले ताजनगरी के सुपरिचित कवि-गीतकार कुमार ललित के 70 चुनिंदा गीतों का प्रथम गीत संग्रह ‘कोई हो मौसम मितवा’ दिल्ली के नामचीन प्रकाशक शिल्पायन पब्लिशर्स ने प्रकाशित किया है।

इस गीत संग्रह की पांडुलिपि को उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ द्वारा प्रकाशन हेतु अनुदान दिए जाने के लिए चयनित किया गया था। इस अनुदान से ही 128 पृष्ठ की हार्ड बाउंड पुस्तक का प्रकाशन हुआ है। कुमार ललित ने अपना पहला गीत संग्रह अपने काव्य रसिक पिता दामोदर दयाल बंसल को समर्पित किया है।

सोम दा ने की थी संस्तुति

ख्यातिप्राप्त गीतकार सोम ठाकुर और वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुषमा सिंह ने कुमार ललित के गीत संग्रह की पांडुलिपि को अनुदान दिए जाने के लिए अपनी संस्तुति प्रदान की थी। उन्होंने लिखा था कि ये गीत संवेदना एवं भाववत्ता से परिपुष्ट हैं। संवेदना को झकझोरने वाले हैं। ऐसे गीत-कवियों को अवश्य प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

इनका भी मिला आशीर्वाद

सोम दा और सुषमा जी के साथ-साथ देश के सुप्रसिद्ध गीतकार डॉ. कुंवर बेचैन, डॉ. सीता सागर, साहित्यिक पत्रिका चर्वणा के संपादक शीलेंद्र कुमार वशिष्ठ, हिंदुस्तानी अकादमी के सदस्य राज बहादुर सिंह ‘राज’, डॉ. राजकुमार रंजन, डॉ. श्यामलाल यादव ‘राजेश’, डॉ. राजीव राज, डॉ. सत्या सक्सेना, डॉ. कुसुम चतुर्वेदी, मधु भारद्वाज, डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा और डॉ. रुचि चतुर्वेदी ने भी संग्रह के गीतों की मुक्त कंठ से सराहना करते हुए कवि कुमार ललित को हार्दिक स्नेह और आशीष प्रदान किया है। डॉ. सुरीति रघुनंदन (मॉरीशस), नूतन अग्रवाल ‘ज्योति’ और सोनिया सभरवाल ने भी गीतों को सराहा है।

कान्हा की बांसुरी की टेर

अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कवि डॉ. कुंवर बेचैन ने लिखा है कि कुमार ललित के गीत कान्हा की बांसुरी की टेर और राधा के मधुबन तक पहुंचने की देर के अंतराल का विरह गान हैं।

हिंदी अकादमी की पूर्व सलाहकार सदस्य डॉ. सीता सागर ने लिखा है कि एक परिपक्व गीतकार की तरह कुमार ललित के गीतों में कहीं सुकोमल भावना की नदी का तीव्र वेग है, तो कहीं चिंतन के महासागर का शांत पारदर्शी ठहराव।

कोरोना काल की साहित्यिक उपलब्धि

इटावा निवासी देश के सुप्रसिद्ध गीतकार डॉ. राजीव राज ने लिखा है कि साहित्य की कोमल कांत और संवेदनशील विधा गीत को अपनी ललित शब्दावली और स्वर माधुरी से सजाकर मोहक अंदाज में प्रस्तुत करने वाले भाई कुमार ललित इस कोरोना काल की उपलब्धि कहे जा सकते हैं।

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