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दलितों पर अत्याचार की घटनाओं से झकझोरने वाली फिल्म है ‘आर्टिकल-15’

आगरा। अनुभव सिन्हा निर्देशित फिल्म “आर्टिकल-15” एक बेहतरीन फ़िल्म है जो फ़िल्म के नायक के जरिये हजारों सालों से मौजूदा दौर तक चली आ रहे जाति आधारित अमानवीय भेदभाव सहित क्रूर हिंसा और बलात्कार की घटनाओं के ख़िलाफ़ कारगर मुहिम के लिये जागरूक करती है। मौजूदा सभ्य समाज पर कलंक समान जाति केंद्रित पाशविक अत्याचार की ख़िलाफ़त करती इस फ़िल्म में कई सच्ची घटनाओं को नाटकीय अंदाज़ में पेश किया गया है, इसमें दो दलित किशोरियों का सामूहिक बलात्कार तथा नृशंश हत्या उच्च वर्ग के दबंगों द्वारा महज़ उनको अपने अधिकार मांगने पर सबक सिखाने और उपेक्षित समाज को घृणित संदेश देने के लिए कर दी जाती है। फ़िल्म की शुरुआत शानदार एक लोक गीत से है तो फ़िल्म का अंत एक रैप सॉन्ग से किया गया है यानि दो अलग अलग वक़्त के समाज और उसकी सांस्कृतिक पसंद को दिखाने की भी प्रभावी कोशिश है। फ़िल्म एक सार्थक संदेश देती है साथ ही भावनाओं को भड़काकर मौजूदा सामाजिक तानेबाने को बिगाड़ने की कतई कोशिश नहीं करती है। बल्कि दलितों के ऊपर होने वाले अत्याचार और भेदभाव पर पुख्ता सवाल भी उठाती है। उच्च वर्ग के दो स्वरूप दिखाए हैं एक शोषक और एक उद्धारक, मसलन इस फ़िल्म में सिर्फ उच्च वर्ग द्वारा दलितों पर अत्याचार ही नहीं दिखाया बल्कि उनमें से ही कई रोशन ख़याल पात्रों मसलन नायक अंशुमान खुराना और उनकी साथी ईशा तलवार ने हमदर्द बनकर उनके लिए न्याय दिलाने की मुहिम भी चलाई है। आयुष्मान ने इस फिल्म में एक पुलिस अधिकारी की भूमिका निभाई है। ज़ी स्टूडियो और बनारस मीडिया वर्क्स द्वारा निर्मित ये फिल्म गौरव सोलंकी और अनुभव सिन्हा ने लिखी है। इसमें सयानी गुप्ता, कुमुद मिश्रा, मनोज पाहवा ने भी अपने-अपने पात्रों में अच्छा अभिनय किया है। फिल्म भारतीय सविंधान के अनुच्छेद-15 पर आधारित है, जो कि धर्म, जाति, वर्ग, लिंग और जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का अधिकार किसी को नहीं देता है। ये फ़िल्म बीते वर्षों की कई चर्चित और रोंगटे खड़े कर देने वाली अमानवीय घटनाओं से प्रेरित है, कहने का मतलब साफ यही है कि ये फ़िल्म किसी एक विशेष घटना पर आधारित नहीं है। बल्कि यह फ़िल्म वर्ष 2014 में बदायूं की सामूहिक बलात्कार की घटना और वर्ष 2016 में ऊना में घटित दलित अत्याचार की घटना सहित कई अन्य घटनाओं पर केंद्रित हैं। कुल मिलाकर कह सकते हैं ये फ़िल्म कहीं भी न तो बोर करती है और न कहीं उलझाती। बेशक़ ये फ़िल्म देखने और कुछ सीख लेने के लायक भी है।

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