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हीरोइन की परिभाषा बदली, दर्शक ऐसी कहानियां चाहते हैं जो अपनी-सी लगें-भूमि पेडणेकर

ब्रज पत्रिका। अपनी शानदार ऑनस्क्रीन परफॉर्मेंस के लिए मशहूर टैलेंटेड एक्ट्रेस भूमि पेडणेकर ने खुद को एक प्रभावशाली अभिनेत्री के रूप में स्थापित किया है। दमदार किरदारों को निभाने के लिए वो फिल्मकारों की पहली पसंद कही जा सकती हैं। अपनी पहली फिल्म से लेकर अब तक भूमि ने असाधारण सफर तय किया और अपने अलग-अलग रोल्स से दर्शकों के दिलों-दिमाग पर गहरी छाप छोड़ी। अब अपनी सफलता में एक और उपलब्धि जोड़ते हुए उन्होंने फिल्म ‘सांड की आंख‘ में शूटर दादी चंद्रो तोमर का रोल निभाया। तुषार हीरानंदानी के निर्देशन में बनी यह फिल्म दुनिया की दो सबसे बुजुर्ग महिला शार्पशूटर्स की कहानी है, जिन्होंने उम्र के 60वें दशक में शूटिंग को अपनाया। फिल्म में उनके साथ तापसी पन्नू हैं, जिन्होंने प्रकाशी तोमर का रोल निभाया। आगामी 30 मई को रात 8 बजे एंड पिक्चर्स पर होने जा रहे फिल्म के प्रीमियर से पूर्व भूमि पेडणेकर ने इस लीक से हटकर रोल को लेकर अनुभव बताए।
प्रश्न-इस फिल्म में आपने 60 वर्ष की दादी का रोल निभाया है, जिनका शूटिंग के प्रति रुझान पैदा होता है और उसे शौक बना लेती हैं। इस तरह के किरदार को समझना और पर्दे पर निभाना कितना मुश्किल या आसान रहा?
उत्तर-बेशक इस किरदार की अपनी चुनौतियां थीं, लेकिन इस रोल की खूबसूरती यह थी कि ये फलदायक रोल था। ये कुछ ऐसा है जो प्रेरणा देता है। चंद्रो का किरदार निभाने के लिए खास तरह के हावभाव, भाषा व अलग तरह की विचारधारा की जरूरत थी। जरा सोचिए, आप उस उम्र में हैं, जब आप सारी जिंदगी जी चुके और आप आराम करना चाहते हैं। लेकिन शूटर दादियां इस उम्र में जिंदगी के नए मायने तलाशती हैं और यही अनुभव अपने बच्चों और पोतियो को देना चाहती हैं। बाकी सभी बातें तो तकनीकी थीं, लेकिन दादियों की सोच अपनाना, तापसी और मेरे लिए सबसे मुश्किल था। असली चुनौती यह थी कि हम एक पत्नी, एक मां और एक दादी के जीवन का अनुभव कहां से लेते और उस तरह का जीवन कैसे महसूस करते, जिस तरह उन्होंने जिया है।
प्रश्न-इस रोल के लिए किस तरह की तैयारियां कीं?
उत्तर-हमने बहुत-सा समय दादियों के साथ गुजारा। तब जाकर जाना कि उन्होंने किस तरह की जिंदगी जी और किस तरह घर संभालने से लेकर खेतों में काम करने तक जिम्मेदारी निभाई। काफी वक्त ईंट कारखानों में गुजारा ताकि उनकी जिंदगियों को समझ सकें। लेकिन हमें घूंघट पर सबसे ज्यादा ध्यान देना पड़ा। हमें इस तरह घूंघट ढंके रखना था, जैसे यह शरीर का हिस्सा हो। दादियों ने रोज का सारा काम इसी घूंघट में रहते किया। जहां ये बात बहुत-सी बारीकियों में से एक थी, वहीं यह समान रूप से जरूरी थी।
प्रश्न-इसमें कोई शक नहीं ‘सांड की आंख‘ प्रेरक कहानी है, लेकिन इन किरदारों की किस खूबी का गहरा असर हुआ है?
उत्तर-प्रकाशी और चंद्रो तोमर की जिंदगी मुश्किलों से भरी थी। 60 साल से ज्यादा समय घूंघट में रहने के बाद दुनिया देखना शुरु किया था। ऐसा नहीं कि उनके साथ दुव्र्यवहार किया जाता था या उन्हें प्रताड़ना दी जाती थी, बल्कि उन्होंने तो वही साधारण जीवन जिया जो गांव की दूसरी औरतें जीती हैं। लेकिन जो बात दिल में उतर गई वो ये कि एक खुशगवार और संपूर्ण जिंदगी जीने के बावजूद भी वो बदलाव के लिए आगे रहीं। जिंदगी के प्रति उनका उत्साह, आपस में बतियाने की भाषा, यह बातें बताती हैं कि वो जिंदगी को सही मायनों में भरपूर अंदाज में जीना चाहती थीं। जरा सोचिए, वो कभी गांव से बाहर नहीं निकली थीं और कभी परिवार के सदस्यों से खुलकर बात नहीं की, लेकिन फिर अचानक वो कम्फर्ट जोन से बाहर आकर यात्रा करती हैं और दुनिया भर में देश का प्रतिनिधित्व करती हैं। उन्होंने अंग्रेजी सीखी और पूरे आत्मविश्वास के साथ बोला भी।
प्रश्न-फिल्मों में आपका अब तक का सफर किसी भी दूसरी एक्ट्रेस से काफी अलग रहा है। इसे कैसे परिभाषित करेंगी?
उत्तर-सांड की आंख मेरी पांचवीं फिल्म है और ईमानदारी से कहूं तो मैंने अब तक जितनी फिल्मों में काम किया या जितने रोल किए हैं, वो सारे एक दूसरे से बहुत अलग। उनके बीच कुछ समानताएं जरूर हो सकती हैं जैसे मेरे किरदार छोटे शहरों की महिलाओं की कहानियां बताते हैं। मैंने अब तक जिस तरह का सिनेमा किया, मुझे गर्व है क्योंकि यह वो फिल्में हैं जो मेरे लिए कारगर रहीं और मुझे दर्शकों से जुड़ने में मदद मिली। आज के समय में हीरोइन की परिभाषा बदल गई है और वो पहले से विकसित हो गई हैं। आज दर्शक ऐसी कहानियां स्वीकार कर रहे हैं, जो उन्हें अपनी-सी लगे। जरूरी नहीं वो परफेक्ट कहानी हो बल्कि ऐसी कहानियां भी जिनमें कमियां हों या जो परफेक्ट ना हों, वो भी दर्शकों से जुड़ जाती हैं। यदि मैं उन्हें ईमानदारी से कहानी बताऊं या फिर उन्हें ऐसा किरदार दूं जिससे वो जुड़ सकें तो मैं समझूंगी कि मैं एक एक्टर के रूप में सफल हो गई। मेरा अब तक का सफर काफी हलचल भरा रहा, वहीं काफी खुशगवार भी गुजरा है।

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