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पत्रकारिता हमेशा लीक से अलग हटकर चलने का नाम है। खबर का अकेला प्राणतत्व है सच-शशि शेखर

बेहतरीन शिक्षक और पत्रकार थे स्व. डॉ. अजय कुमार शर्मा, पाँच वर्ष बिना वेतन के भी केएमआई में विद्यार्थियों को उन्होंने पढ़ाया-निर्मला दीक्षित

स्व.डॉ.अजय कुमार शर्मा के व्यक्तित्व और कृतित्व को मुखर करती स्मारिका का किया गया विमोचन, शख्शियतों का भी हुआ सम्मान।

ब्रज पत्रिका, आगरा। स्वर्गीय डॉ अजय कुमार शर्मा स्मृति स्मारिका का विमोचन समारोह पालीवाल पार्क स्थित डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा के जुबली हॉल में संपन्न हुआ। समारोह के मुख्य अतिथि और हिंदुस्तान के समूह संपादक शशि शेखर थे। विशिष्ट अतिथि महापौर नवीन जैन, प्रो-वाईस चांसलर प्रो. अजय तनेजा और श्री मनकामेश्वर मंदिर के महंत योगेश पुरी थे। स्व. डॉ. अजय शर्मा की धर्मपत्नी मृदु शर्मा भी मंचासीन थीं। कार्यक्रम की शुरुआत में मंचासीन अतिथियों ने माँ शारदा के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर उदघाटन किया।

समारोह के मुख्य अतिथि और हिंदुस्तान के समूह संपादक शशि शेखर ने कहा,

“उन शहरों से गुजरना जहाँ आपका बचपन गुजरा हो बड़ा तकलीफ़ देह होता है। जैसे-जैसे चीजें खत्म होती हैं तो आपका बचपन भी खत्म हो जाता है। याद आता है 1970 के दशक में जब अपनी अवज्ञाओं के आलोक गढ़ रहे थे मैं और अजय जी। वो जर्नलिज़्म ही क्या जिसमें विद्रोह न हो। हमने साइकिल से पत्रकारिता की, उस वक़्त अजय जी भी साथ थे।”

हिंदुस्तान के समूह संपादक शशि शेखर ने कहा,

“मुझे याद आती हैं एक सिनेमा के गीत की लाइनें जो शायर साहिर लुधियानवी ने लिखी हैं-मैंने जो गीत तेरे प्यार की ख़ातिर लिक्खे, आज उन गीतों को बाज़ार में ले आया हूँ…! सिनेमा के शुरू से शौक़ीन रहे हैं हम, पिताजी की सलाह पर डायरी लिखने लगा था, उस डायरी के मुताबिक एक बार तो एक साल में 168 फिल्में देखीं थीं।”

हिंदुस्तान के समूह संपादक शशि शेखर ने कहा,

“मुझे डैडी फ़िल्म का गीत याद आता है-
आईना मुझसे मेरी पहली सी सूरत मांगे,
मेरे अपने मुझसे मेरे होने की निशानी मांगें…!
इसी गीत की लाइनें हैं-
वक्त लिखता रहा चेहरे पे हर पल का हिसाब
मेरी शोहरत मेरी दीवानगी की नज़र हुई…!”

हिंदुस्तान के समूह संपादक शशि शेखर ने कहा,

“अजय जी के पिता जी आनंद शर्मा जी को मैं ताऊ जी कहता था।एक दौर था जब मैं कभी एक्टर बनना चाहता था, कभी कवि तो कभी मन करता था एनशिएंट हिस्ट्री पर काम करूँ। मगर आया पत्रकारिता में कुछ कर गुजरने की ललक में तो कभी डोरीलाल जी के पास चला जाता था, कभी डॉ. रामविलास शर्मा जी के पास तो कभी डॉ. विद्या निवास जी के पास और कभी आनंद शर्मा जी के पास। सभी ज्ञान देते, आनंद जी के यहाँ जाता तो बाहर निकलने पर अजय जी और विजय जी कहते प्रक्टिकली बने रहो। यादों का एक लंबा सिलसिला है, ये यादों का ऐसा इनबॉक्स है जिसमें जंक का कोई स्थान नहीं है।”

उन्होंने एक महिला पत्रकार द्वारा पत्रकारों पर हो रहे हमलों संबंधित पूछे गए सवाल के जवाब में कहा,

“पत्रकारिता के समक्ष पहले भी चुनौतियाँ थीं, आज भी हैं। अगर हम 100 साल पहले जाएं तो हर आदमी आजादी की लड़ाई लड़ रहा था। 1857 के ग़दर के दौरान अंग्रेजों ने चार लाख से ज्यादा लोगों को कत्ल कर दिया था। पत्रकारों को गलतफहमी क्यूँ कि आजादी सिर्फ पत्रकारिता ने नहीं दिलाई। जब वक्त बदला है तो पत्रकारिता कैसे बचेगी। अमेरिका जो सबसे स्ट्रॉन्ग देश माना जाता है वहाँ लोग संसद में घुस जाते हैं। आप पत्रकार हैं तो बोलने और लिखने की कला भी आनी चाहिए। मैं तो यूक्रेन भी रिपोर्टिंग के लिए जाना चाहता था, मगर उम्र का हवाला देकर कंपनी ने अनुमति नहीं दी। मैं आज भी खुद को संपादक नहीं पत्रकार कहता हूँ क्यूँकि कुर्सियाँ तो आती जाती रहेंगी।”

उन्होंने कहा,

“पत्रकारिता हमेशा लीक से अलग हटकर चलने का नाम है। खबर का अकेला प्राणतत्व है सच। सच में कुछ मिला देते हैं तो वह कथा हो जाती है, कहानी हो जाती है। पत्रकारिता में खतरे कल भी थे और आज भी हैं। कोलंबिया में खतरे माफ़िया से हैं और हमारे यहाँ माफ़िया हुकूमत भी करते हैं। प्रिंट मीडिया के भविष्य के सवाल पर कहा हॉवर्ड यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च रिपोर्ट सही साबित हुई तो 2032 के आसपास आखिरी अख़बार छपेगा। आज न्यूजप्रिंट के जो भाव तेजी से बढ़ रहे हैं अखबारों के लिए बहुत चुनौतीभरा वक़्त है।”

महापौर नवीन जैन ने कहा,

“कोरोना की पहली लहर में हल्ला बहुत मचा मगर जनहानि उतनी नहीं हुई, लेकिन दूसरी लहर में जनहानि हुई, लोगों के फोन आते थे किसी का दवाई के लिए, किसी का ऑक्सिजन के लिए। शमशान घाट पर लकड़ियों तक कि किल्लत थी। ऐसा वक़्त भगवान कभी न दिखाए, इसने हमसे अजय शर्मा जी को छीन लिया। हम जब गुदड़ी मंसूर खाँ में रहते थे, अजय शर्मा का परिवार बेलनगंज में रहता था, बहुत सी यादें मेरी उनसे जुड़ी हुई हैं।”

प्रो-वाईस चांसलर प्रो. अजय तनेजा ने कहा,

“कोई कोई शख्स हमारे जीवन में कुछ यूँ घर कर जाता है कि उसको भुला पाना मुश्किल हो जाता है।”

महंत योगेश पुरी ने कहा,

“जिसका जन्म हुआ है उसका इस दुनिया से जाना भी तय है मगर इतनी जल्दी जाना बहुत दुख दे गया। इंसान जन्म लेता है एक व्यक्ति के रूप में मगर जब मरता है तो व्यक्तित्व के रूप में। पत्रकारिता के क्षेत्र में अजय शर्मा जी ने खुद की प्रतिभा से खुद को प्रतिष्ठापित किया।”

शुरू में उनके परिवार के करीबी रहे पूर्व आईएएस शशिकांत शर्मा ने भी विचार व्यक्त किए।

महिला आयोग की सदस्या निर्मला दीक्षित ने कहा,

“बेहतरीन शिक्षक और पत्रकार थे स्व. डॉ. अजय कुमार शर्मा, पाँच वर्ष बिना वेतन के भी केएमआई में विद्यार्थियों को उन्होंने पढ़ाया!”

स्मारिका विमोचन समारोह में शख्शियतों को किया गया सम्मानित

इस मौके वरिष्ठ पत्रकार विनोद भारद्वाज को स्व. आनंद शर्मा स्मृति सम्मान, स्व. कमलेश स्मृति सम्मान महिला आयोग की सदस्या निर्मला दीक्षित को, स्व. अजय कुमार शर्मा स्मृति सम्मान वरिष्ठ पत्रकार गोलेश स्वामी को दिया गया। वहीं पत्रकारिता में सर्वश्रेष्ठ अंक प्राप्त कर अजय शर्मा गोल्ड मैडल हासिल करने वाले छात्र जैकी और स्मारिका के संपादक भानु प्रताप सिंह को भी सम्मानित किया गया।

इस मौके पर विश्वविद्यालय के कुलसचिव और वित्ताधिकारी सहित प्रमुख शिक्षक भी मौजूद थे। अतिथियों का स्वागत ब्रजेश शर्मा, शिखा शर्मा, क्यूरी शर्मा, ग्रेनी शर्मा आदि ने किया। संचालन सुशील सरित ने किया। अंत में धन्यवाद ज्ञापन ई.ब्रजेश शर्मा एडवोकेट ने किया।

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