“हम सभी सभ्य समाज के सभ्य नागरिक, उसे हर स्त्री को चीज समझने के संस्कार ही तो देते रहते हैं।”
डॉ. कमलेश नागर
जब भी किसी बालिका निर्भया हो या नेहा मेरे मन में एक ही प्रश्न आता है क्या ये बलात्कारी आसमान से उतरा, ये किसी मां का बेटा, बहिन का भाई और कभी-कभी तो पत्नी का पति होता है, फिर क्या संस्कार मिले परिवार से, क्या शिक्षा मिली परिवार से, घर में ही बेटे को शह देकर उसे मर्द मानुस होने का अहं देकर बहिनों पर रौब चलाने का आधिकार देकर, उसके सामने बात-बात में मां-बहिन की गाली देकर, गाली सुन विरोध न करके, हम सभी सभ्य समाज के सभ्य नागरिक उसे हर स्त्री को चीज समझने के संस्कार ही तो देते रहते हैं।
मैने स्वयं “तू चीज बड़ी है मस्त मस्त गाने” पर घर-परिवार के सदस्यों के सामने मजे-मजे लेकर नृत्य करते और प्रोत्साहन पाते छोटी-छोटी लड़कियों को देखा है। जब “कल चोली सिलाई आज तंग हो गयी, दरजी से मेरी जंग हो गयी” जैसे गानों पर सांस्कृतिक नृत्य प्रतियोगिताओं में पुरस्कार दिये जायें और दर्शक आनंद लेते हुये ताली बजायें तो, जो हो रहा है वो तो होगा ही। समाज में होने वाली शुरुआत में रोकने-टोकने के साहस की बात छोड़ ही दीजिए, हम तो उसमें आनंद लेते हैं।
मैं शायद कुछ ज्यादा ही कटु हो गयी हूं, इन पंक्तियों में हो सकता है, किसी को कुछ अनुचित लगे पर सच यही है, बल्कि बहुत थोड़ा सच है। कोई कानून कोई सजा इस दुष्कर्म पर रोक नहीं लगा सकती, बस नारी को अपना मौन छोड़कर पुरुषों को अपनी मानसिकता को बदलने के लिये विवश करना होगा। तभी शायद नेहा (दयालबाग यूनिवर्सिटी की पीड़िता) और उस जैसी देश की तमाम निर्भया बच पायें।
(ये लेखिका के अपने स्वतंत्र विचार हैं)