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जूते की गुणवत्ता बढ़ाने और आयात कम करके, देश में उत्पादन बढ़ाने की है मंशा इसीलिए जूतों पर लाए गए हैं क्यूसीओ-बीआईएस

✒️ पूरन डाबर (उद्यमी)

ब्रज पत्रिका, आगरा। पूरा विश्व भारत की ओर देख रहा है सबसे बड़े बाज़ार के रूप में और विश्व की उत्पादन फैक्ट्री के रूप में भी। ग्लोबल आर्थिक संस्थाएँ यह पूरी शताब्दी भारत की बताती हैं। सरकार भी पूरे प्रयास कर रही है मैन्यूफ़ैक्चरिंग सेक्टर को किस तरह बढ़ावा दिया जाए, कैसे रोज़मर्रा की कंज्यूमर गुड्स का इंपोर्ट बंद हो या घटे, उत्पादन देश में हो, उस पर कुछ ड्यूटी बड़ाकर टैरिफ़ बैरियर और कुछ अन्य तरह की रोक लगाकर नॉन टैरिफ़ बैरियर के प्रयास कर रही है।

लेकिन देश के आम नागरिकों या छोटे उत्पादकों की सीमित समझ कहें, अज्ञानता कहें या फिर वे सरकारी तंत्र से इतने प्रताड़ित हो चुके हैं, इस कारण वह भयभीत हैं। हर उन अच्छे कदमों का विरोध करते हैं, जो उनके लिए ही किए जा रहे हैं। अग्निवीर हो या किसान क़ानून ये अद्भुत योजनायें राजनीति की भेंट चढ़ चुकी हैं।

अभी अपने देश में ही बने जूतों की गुणवत्ता बड़ाने, देश और विदेश में विश्वास पैदा करने, चीन, वियतनाम जैसे देशों से जूते के आयात को क़तई रोकने, ताकि यह आयात होने वाले तमाम सिंथेटिक जूते या स्पोर्ट्स शू चीन जैसे देशों से आयात न होकर भारत में ही बनें। तमाम विदेशी ब्रांड नाईकी, एडिडास, प्यूमा, अंडर आर्मर आदि जो कि भारत में बिक रहे हैं, ये भारत में ही बनें जिससे यहाँ का उद्योग खड़ा हो और रोज़गार भी बढ़ें। इसीलिए क्वालिटी कंट्रोल ऑर्डर्स यानि क्यूसीओ-बीआईएस लाए गए हैं।

आश्चर्य होता है कि वही लोग जिनके लिए यह सब किया जा रहा है, विरोध करने लगते हैं। और सहारा उन छोटे उद्यमियों का लिया जाता है जो इस दायरे में आते ही नहीं। सूक्ष्म एवं लघु उद्यमी जिनका टर्नओवर 50 करोड़ से नीचे है, इस दायरे में क़तई नहीं, लेकिन उन्हें यह कहकर भड़काया जा रहा है कि आने वाले समय में यह आप पर भी लगेगा।

उन छोटे उद्यमियों को क़तई भड़कावे में नहीं आना चाहिए। जब तक आप पर लगने का समय आयेगा तब तक आप भी तैयार हो चुके होंगे, और उसके महत्व को समझने लगेंगे। सरकार को पूरा विश्वास दिलाना होगा कि कोई भी उद्यमी सरकारी व्यवस्था से प्रताड़ित न हो। मंशा गुणवत्ता बढ़ाने की है, दोहन की नहीं। सरकार को ऐसे दिशा-निर्देश देने चाहिए जिससे कि अधिकारियों के व्यवहार से स्पष्ट झलके कि सरकार का मक़सद मात्र गुणवत्ता बढ़ाना है। सरकार तकनीकी ऑडिट की व्यवस्था करे, उन्हें कम से कम दो वर्ष का समय दो, ताकि उस गुणवत्ता तक पहुँच सकें।

(लेखक आगरा फुटवियर मैन्युफैक्चरर्स एंड एक्सपोर्ट्स चैम्बर के अध्यक्ष और सीएलई के रीजनल चेयरमेन हैं.)

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