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जब ज्ञान पर है सबका अधिकार, तो क्यों नहीं है शिक्षा एक समान ?

ब्रज पत्रिका। बाबा साहेब शिक्षा के सुदृढ़ समर्थक थे। उनका मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य है-लोगों को निडर बनाना, उन्हें एकता का पाठ सिखाना, उन्हें उनके अधिकारों के बारे में बताना और उन्हें उन अधिकारों के लिये खड़े होने के लिये प्रेरित करना। एण्ड टीवी के ‘एक महानायक डाॅ. बी. आर. आम्बेडकर‘ के आगामी एपिसोड्स इसी मान्यता पर टिके हैं। इसमें भीमराव शिक्षा की समानता के लिये खड़े होंगे और स्कूल के दरवाजे सभी के लिये खोलने के लिये संघर्ष करेंगे।

शिक्षा पर बाबा साहेब के दृष्टिकोण के बारे में बताते हुये, रामजी सकपाल (जगन्नाथ निवानगुणे) ने कहा,

‘‘बाबा साहेब का दृढ़ विश्वास था कि शिक्षा समाज के विकास का एक प्रमुख पहलू है और सभी को शिक्षा प्राप्त करने का समान अधिकार दिया जाना चाहिये। डाॅ. आम्बेडकर स्कूली शिक्षा के समर्थक थे, जिसमें सभी को शिक्षा मिले और इसके लिये वह पूरी दुनिया से लड़ने के लिये तैयार हो गये थे। अपने बचपन के दिनों से ही, बाबा साहेब काफी होनहार थे और एक मेधावी स्टूडेंट थे और उन्हें उपयुक्त शिक्षा पाने के लिये काफी संघर्ष करना पड़ा था। आने वाले एपिसोड्स में, इस शो का प्रतिरोधी किरदार निम्न जाति के सभी बच्चों को स्कूल से बाहर निकालने का फैसला करता है। भीमराव इसके खिलाफ खड़े होते हैं और सभी के लिये एकसमान शिक्षा की मांग करते हैं। उन्होंने कहा, जब ज्ञान पे है सबका अधिकार तो क्यों शिक्षा नहीं है एक समान? शिक्षा की रोशनी पर किसी एक का नहीं, सबका अधिकार है। मैं शिक्षा को उस ऊंचाई तक ले जाऊंगा, जहां उसे कोई बांट न सके। गुरू जी नाराज हो जाते हैं और वह नौकरी छोड़ने का फैसला करते हैं, लेकिन भीमराव उन्हें रोकता है। भीमराव उन्हें बताता है कि इस्तीफा देना सही नहीं होगा, क्योंकि आप एक शिक्षक हैं और आपको सभी लोगों को शिक्षा देना चाहिये, चाहे फिर वो किसी भी जाति के हों। आप मेरी वजह से रिजाइन कर रहे हैं, लेकिन यह उच्च जाति के लोगों के प्रति नाइंसाफी होगी।”

यह देखना दिलचस्प होगा कि भीमराव शिक्षा के समान अधिकार के खिलाफ कैसे खड़े होते हैं तथा अपनी पढ़ाई जारी रखने और दूसरे स्टूडेंट्स के लिये स्कूल को दोबारा खोलने की लड़ाई कैसे लड़ते हैं?

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