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ऑनलाइन कक्षाएं, हैं प्रगति पर, आजकल। टेक्नोलॉजी अभिशाप नहीं, बेटा-बेटा है बाप नहीं, शोला जले किंतु, दिवाकर सा ताप नहीं…

ब्रज पत्रिका। साहित्य समाज का हमेशा ही दर्पण माना जाता रहा है। इसीलिए तो जब-जब इंसानी समाज में किसी भी प्रकार के परिवर्तन आते हैं तो उसका प्रतिबिम्ब हमारे साहित्य में भी दिखाई देता है। वर्तमान में कोरोना महामारी ने इंसानी जीवन मे बहुत कुछ बदल डाला है। शिक्षा और युवा वर्ग पर भी इसका साफ असर देखा जा सकता है। हमारी परंपरागत ऑफलाइन कक्षाओं में पढ़ने और पढ़ाने के चलन को कोरोना के कहर ने फिलहाल ही रोक दिया है। लिहाज़ा अब ज्यादातर संस्थान अपने-अपने विद्यार्थियों को ऑनलाइन शिक्षा ही दे पा रहे हैं। इस बदलाव से किस तरह से हमारा शिक्षा का संसार बदल जायेगा और क्या-क्या प्रभाव इससे हमारे विद्यार्थियों के मानस पर पड़ता हुआ दिखेगा। यही सब कुछ अपनी कविता के जरिए कहने की कोशिश की है प्रयागराज के युवा कवि सुधांशु पांडे “निराला” ने। उनकी कविता-‘आधुनिक शिक्षा’ पेश है।

ऑनलाइन कक्षाएं
हैं प्रगति पर
आजकल।
बच्चे पहले पढ़ते थे,
शिक्षक से बेहद डरते थे,
खामियों पर सिर झुका,
जो सजा दो, सहते थे।
आधुनिकता गा रहे,
गौर किसे इतिहास पर।
ऑनलाइन कक्षाएं,
हैं प्रगति पर
आजकल।
किंतु वो कैसे पढ़े?
राह पर कैसे बढ़े?
जो परे है साधन से,
वो बेचारा क्या करे?
दौलतमंद हंँस रहे,
दीनों के
लिबास पर!
ऑनलाइन कक्षाएं,
हैं प्रगति पर,
आजकल।
पीछा बस्ता से,
छूट गया।
यह दौर सभ्यता,
लूट गया।
जलता दीप दिवाली का,
दीया आज का,
फूंक गया।
मरहम,
कौन लगाए,
 परंपरा के,
घात पर।
ऑनलाइन कक्षाएं,
हैं प्रगति पर,
आजकल।
टेक्नोलॉजी अभिशाप नहीं,
बेटा-बेटा है बाप नहीं,
शोला जले किंतु,
दिवाकर सा ताप नहीं।
परंपरा,
पांव तले,
है आधुनिकता,
हाथ पर!
ऑनलाइन कक्षाएं,
हैं प्रगति पर,
आजकल!
-सुधांशु पांडे (प्रयागराज)

नाम-सुधांशु पांडे “निराला”
निवास स्थान-प्रयागराज
शैक्षिक योग्यता-बीए (हिंदी साहित्य)
साहित्य सेवा-बीते चार वर्ष से साहित्य की दुनिया में अपनी कविताओं के जरिये सक्रिय। देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताओं का प्रकाशन।

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