ऋषि कपूर के जाने से हिंदी सिनेमा के एक युग का हुआ अंत
ब्रज पत्रिका, आगरा। मशहूर अभिनेता इरफान के जाने के बाद अपने हिंदी सिनेमा के एक और लोकप्रिय अभिनेता ऋषि कपूर साहब का 30 अप्रैल को मुम्बई में अस्थिमेरु कैंसर (बोन मैरो कैंसर) के कारण आयी गंभीर परेशानी के बाद 67 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनके निधन से भारतीय सिनेमा के एक युग का अंत हो गया। वर्ष 2018 में उन्हें कैंसर का पता चला, जिसके बाद लगभग एक वर्ष तक न्यूयॉर्क में उनका इलाज चला। तत्पश्चात भारत वापसी बाद वे सार्वजनिक तौर पर बहुत कम देखे जाने लगे, साथ ही उनका इलाज चलता रहा। इस बीच वे फिल्म ‘शर्मा जी नमकीन’ की शूटिंग करते रहे। दो वर्ष चली पीड़ा बाद जब उनकी तबियत ज्यादा बिगड़ी तो मुम्बई के एच.एन. रिलायंस फाउंडेशन अस्पताल में भर्ती कराया, जहाँ उन्हें बचाया नहीं जा सका।

फ़िल्मी वातावरण मिला, नीतू संग भी कीं ऋषि ने फ़िल्में
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4 सितंबर 1952 में मुम्बई के चैंबूर में जन्मे अभिनेता ऋषि कपूर ने कैंपियन स्कूल मुंबई और मेयो कॉलेज अजमेर में शिक्षा प्राप्त की। अपने जमाने की मशहूर फिल्म अभिनेत्री नीतू सिंह से 22 जनवरी 1980 में उनकी शादी हुई। वर्ष 1973 से 1981 के बीच बारह फिल्मों में ऋषि कपूर ने अपनी पत्नी नीतू सिंह के साथ अभिनय किया। उनकी दो संतानें हैं, पुत्र रणबीर कपूर एक सफल अभिनेता हैं और पुत्री रिदिमा कपूर ड्रैस डिजाइनर हैं। रणधीर कपूर और राजीव कपूर उनके भाई। प्रेम नाथ और राजेन्द्र नाथ मामा। शशि कपूर और शम्मी कपूर सरीखे अभिनेता चाचा। करिश्मा कपूर और करीना कपूर उनकी भतीजियां हैं।
पहली ही फ़िल्म मेरा नाम जोकर के लिए पाया अवार्ड
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वह विख्यात अभिनेता और फिल्म निर्देशक राज कपूर के पुत्र व अभिनेता पृथ्वीराज कपूर के पोते थे। परम्परानुसार उन्होंने अपने दादा और पिता के नक्शे क़दम पर चलते हुए फिल्मों में अभिनय किया और एक सफल अभिनेता के रूप में उभरकर आए। ‘मेरा नाम जोकर’ पहली फिल्म थी, जिसमें अपने पिता के बचपन का रोल किया। उन्हें अपनी इस पहली फ़िल्म ‘मेरा नाम जोकर’ में बाल कलाकार के रूप में शानदार भूमिका के लिए 1970 में राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार मिला था। बतौर मुख्य अभिनेता उनकी पहली फ़िल्म बॉबी थी, जिसमें उनके साथ डिंपल कपाड़िया थीं। उन्हें बॉबी फ़िल्म के लिए 1974 में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार मिला। ‘दो दूनी चार’ फ़िल्म के लिए, 2011 का सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर क्रिटिक्स पुरस्कार मिला। ‘कपूर एण्ड सन्स’ के लिए 2017 में सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार मिला। वर्ष 2008 में फ़िल्म फेयर लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
फिल्मों से रोमांटिक एक्टर के रूप में याद आएंगे ऋषि
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उन्होंने अपनी शानदार फ़िल्मी यात्रा में तमाम फिल्मों में क़ाबिल-ए-तारीफ़ अभिनय किया। वर्ष 1973 और 2000 के बीच करीब 92 फिल्मों में रोमांटिक लीड रोल किए। उन्होंने फिल्म बॉबी, लैला मजनू, प्रेम रोग, तवायफ़, नसीब, अमर अकबर एंथोनी, कर्ज़, यादों की बारात, रफू चक्कर, सरगम, सागर, नगीना, कभी-कभी, फूल खिले हैं गुलशन गुलशन, झूँठा कहीं का, कुली, यादों की बारात, दो प्रेमी, जहरीला इंसान, राजा, याराना, पति-पत्नी और वो, चाँदनी, हिना, दीवाना सहित कई फिल्मों में यादगार अभिनय किया। इनके अलावा फ़िल्म ‘आ अब लौट चलें’ का निर्देशन भी किया।
ऋषि दा संग काम के अनुभव यादगार-सत्यप्रकाश शुक्ल
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फ़िल्म नमस्ते लंदन की शूटिंग के दौरान ऋषि दा से मिलने का मुझे मौका मिला। मैं इस फ़िल्म से लाइन प्रोड्यूसर के तौर पर जुड़ा था। ऋषि दा बेहद हँसमुख स्वभाव के थे। वे सबसे बड़े ही अच्छी तरह से बातचीत करते थे। शूटिंग के दौरान आगरा के विषय में जानने को बेहद उत्सुक रहते थे।

ताजमहल के दफ़्तर में जब वे कैटरीना कैफ सहित अन्य कलाकारों के साथ गेस्ट रूम में बैठे थे तो मित्र पिंकी बांदिल की बिटिया आयुषी शूटिंग देखने आयी हुई थी। जब उनको मालूम हुआ कि ये बच्ची डांस बहुत अच्छा करती है तो उन्होंने उससे नृत्य करके दिखाने को कहा, जिसे देखकर वे बेहद खुश हुए थे और उसको बहुत प्यार और दुलार दिया था। बकौल पिंकी बांदिल ऋषि कपूर साहब नहीं रहे हमारे बीच बहुत ही दुख का विषय है लेकिन उनकी याद आज भी आ रही हैं। उस समय हमने भी उनके साथ में कुछ समय बिताया था। एसपी शुक्ला ने हमको उनके साथ कुछ काम ऐसा दिया था कि एक वक्त बिताने का हमको भी मौका मिला। मैं और मेरी बिटिया आयुषी बांदिल जो करीब छह साल की थी, हम दोनों ताजमहल पहुंचे सुबह करीब 5:30 बजे, उनकी पूरी टीम सात बजे तक ताजमहल में एंट्री कर चुकी थी। ताजमहल के मुख्य द्वार के लेफ्ट हैंड पर एक रूम बना हुआ था उस रूम में उनको भी बैठा दिया गया जिसमें ऋषि कपूर साहब और कैटरीना कैफ। उसमें मेरी बिटिया को भी अंदर उनके साथ में रहने का बैठने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। करीब आधा पौन घंटे तक वह लोग अंदर अपनी शूटिंग से जुड़ी बातचीत करते रहे। मेरी बिटिया से भी काफी सारी बातें कीं। उसके नृत्य को देख उसकी सराहना की। उसके बाद जब बाहर आए तो खुद ही अपनी शूटिंग के लिए भीड़ को हटाना और कैमरा टीम को आदेश देकर खुद ही एक्शन का निर्णय लेकर, खुद ही शूट में अपने आप डायरेक्शन करना बहुत बड़ी बात थी। मजे की बात यह कि लोग जब हटते नहीं थे तो जोर से चिल्ला-चिल्ला कर उनको हटाना, ऐसा लगता था जैसे कोई घर का ही वरिष्ठ सदस्य अपने घर के लोगों को हटा रहा हो, इंडिकेशन करना, चिल्लाकर बोलना, ओए हट जा! दद्दू हट जा! चाचा हट जा! इससे लोग खुश थे और उनको काम करने का रास्ता दे रहे थे।