पं. रघुनाथ तलेगांवकर जी के जन्म शती वर्ष के समापन कार्यक्रम में संगीत कलाकारों की प्रस्तुतियों ने जीता दिल
‘प्रथम सुमिरन करो गणनायक’ से लेकर ‘रघुपति राघव राजाराम’ तक पं. रघुनाथ जी की बंदिशों की समवेत प्रस्तुति ने रघुनाथांजलि समारोह को अनहद नाद में पहुंचाया।
ब्रज पत्रिका, आगरा। पं. रघुनाथ तलेगांवकर फ़ाउंडेशन ट्रस्ट एवं संगीत कला केन्द्र, आगरा के संयुक्त तत्वावधान में ग्वालियर घराने के मूर्धन्य संगीतज्ञ संगीत महोपाध्याय पं. रघुनाथ तलेगांवकर जी के जन्मशती वर्ष के समापन कार्यक्रम का भव्य आयोजन केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के अटल बिहारी वाजपेयी अंतर्राष्ट्रीय सभागार में किया गया। इसके पूर्व जन्मशताब्दी वर्ष के प्रत्येक माह देश-विदेश के विभिन्न नगरों ग्वालियर, जयपुर, लखनऊ, बड़ोदरा, दिल्ली, वाराणसी, पुणे, हैदराबाद, चण्डीगढ़, श्रीलंका एवं हरिद्वार में कार्यक्रम आयोजित किये गए।
कार्यक्रम का प्रारंभ मां सरस्वती, पं. रघुनाथ तलेगांवकर जी, श्रीमती सुलभा जी, पं. केशव तलेगांवकर जी के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्जवलन करके डा. आर. एस. पारीक, अरुण डंग, डा. अंकुश औंधकर (कुलसचिव – प्रभार) केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, विजयपाल सिंह चौहान, डॉ. लोकेन्द्र एवं डॉ. गिरिन्द्र तलेगाँवकर जी ने किया।
कार्यक्रम में पं. रघुनाथ जी द्वारा स्वरचित साहित्य का प्रस्तुतिकरण संगीत कला केन्द्र के शिष्य परिवार द्वारा गुरु मां प्रतिभा तलेगांवकर के कुशल निर्देशन में किया गया। पं. रघुनाथ जी की विशिष्ट बंदिशों में रागमाला “हे मन कल्याण कर”, चतुरंग, स्वरमालिका “गगरी मोरी सर से गिरी” राग झिंझोटी “सुघर चतुर नार चली”, तालमाला, राग देस “सावन की ऋतु आई”, राग मालकौंस “छेड़ो ना मोहे”, तराना, रास, त्रिवट तथा थाट प्रणाली पर आधारित रागों की सामान्य एवं विशिष्ट बन्दिशों के अन्तर्गत राग कल्याण – प्रथम सुमिरन करो, प्रभुजी मोरे आओ, राग बिलावल – शुद्ध सुरन को, राग शंकरा – ठुमक ठुमक चली नार, राग भैरव – शुद्ध भाव धर, अहीर भैरव – सांवरे सो नेहा लगाय, राग काफी – सुघर श्याम बन, राग भीमपलासी – बावरे राम रटना, राग आसावरी – दरश बिन सूनी, राग खट – गावो सब मिल गुणी, राग खमाज – आज सखी आयो, राग देस – ता ता थैया नाचे कृष्ण कन्हैया, राग मारवा – आज माने ना, राग सोहनी – हरी हरी चूडियां मोरी, राग पूर्वी – जा जा जा रे कगवा, राग बसंत – आज सखी श्याम होरी, राग गुर्जरी तोड़ी – दुर्गे भवानी, राग भैरवी – काहे करते है प्रीत सांवरे, भजन – मत जा जोगी अंत में रामधुन – रघुपति राघव राजाराम की भक्तिस्वरमयी प्रस्तुति से रघुनाथांजलि समारोह का आध्यात्मिक वातावरण में समापन हुआ।
संपूर्ण कार्यक्रम में संवादिनी पर पं. रवींद्र तलेगांवकर, तबले पर डा. लोकेन्द्र तलेगांवकर एवं सोहम मिश्र (लखनऊ), पखावज पर जयेन्द्र श्रीवास्तव (हरिद्वार) ने लाजवाब संगति कर कार्यक्रम को सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचाया। इस अवसर पर विजयपाल सिंह चौहान को तलेगांवकर परिवार द्वारा रघुनाथांजलि समारोह में विशेष सहयोग हेतु सम्मानित किया गया। अरुण डंग एवं डॉ. अंकुश औंधकर को स्मृति चिह्न एवं उपवस्र देकर सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम का लाजवाब साहित्यिक संचालन श्रीकृष्ण ने किया। अंत में ट्रस्ट के अध्यक्ष विजयपाल सिंह चौहान ने आभार व्यक्त किया एवं सचिव प्रतिभा तलेगांवकर ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया।
गायन प्रस्तुति में संगीत साधकों में डा. मंगला मठकर, निही सिंह, राघव गर्ग, आन्या जादौन, शगुन चौहान, खुशी झा, दृष्टि उपाध्याय, शुभी अग्रवाल, आर्या भाटी, आर्ची ठाकुर, महक जादौन, अभिलाषा शुक्ला, ईशा सेठ, जतिन नागरानी, गोपाल मिश्र, सुमित कुमार, दर्शितराज सोनी, युवराज दीक्षित, प्रत्युष विवेक पाण्डेय, हर्ष यादव, हर्षित आर्य, दुष्यंत गौतम, शौर्य केन ने विशेष तैयारी के साथ सांगीतिक प्रस्तुति देकर उपस्थित श्रोताओं को आनंदित किया।
इस अवसर पर अरविंद कपूर, योगेश चंद्र शर्मा योगी, डा. गिरीन्द्र तलेगांवकर (जयपुर), अनिल वर्मा, डा. मनीषा, डा. शशिबाला यादव (कासगंज), डा. प्रदीप श्रीवास्तव, डॉ. महेश धाकड़ आदि उपस्थित रहे।