आगरा की वो कवि सम्मेलनों से सजी रातें और यहां बिताए दिन मुझे अब भी याद आते हैं-कुमार विश्वास
पहले कवि सम्मेलनों में मंच पाना बड़े कवियों की कृपा पर निर्भर था, लेकिन अब डिजिटल मीडिया ने गांव, गली – कूंचे की प्रतिभाओं को पंख लगा दिए हैं वो अब पहचान बना रहे हैं।
ब्रज पत्रिका, आगरा। आगरा में दिल्ली गेट की चाय संग चर्चाओं के वो दौर, भगवान टाकीज के करीब स्थित ढाबे का वो देर रात का भोजन, सदर की चाट गली का स्वाद और धर्मलोक होटल में ठहराव के वो दिन, मेरे अपने गुजरे दौर की यादों को तरोताजा कर देते हैं। क्या खूब कविताओं से सजी शाम सजती थीं आगरा में सूरसदन, छीपीटोला, बेलनगंज के कवि सम्मेलनों में। एक एक लम्हा जैसे कल की सी बात लगती है। यह कहना था आज साहित्य और श्री राम-कृष्ण कथा के जरिए आम ओ खास के दिल ओ दिमाग में छाए कुमार विश्वास का। वह आगरा में ‘अपने-अपने राम’ कार्यक्रम के सिलसिले में पधारे हैं।
आगरा में आते ही उनको यहां बिताए अपने दिन याद आ गए। अपने अजीज मित्र और कवि रमेश मुस्कान के साथ यहां की आवो-हवा में घुली यादों को टटोला तो बोले क्या खूब रात रात भर कवि सम्मेलन हुआ करते थे आगरा में, आगरा के सोम जी के साथ, डॉ. शशि तिवारी जी के साथ, पवन चौहान जी के साथ कई यात्राएं की हैं। अब रमेश मुस्कान के साथ यात्राओं का सिलसिला जारी है। आगरा वैसे भी तो कवियों की भूमि रहा है।
जब भी हम लोग फतेहपुर सीकरी या किसी अन्य मोन्यूमेंट पर घूमने जाते थे तो संजय गोयल जी की दुकान पर रील को धुलवाने के लिए लेकर जाते थे। अपने अपने राम की कामयाबी और धार्मिक कथाओं के प्रति अति आकर्षण के सवाल पर उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक पुनर्जागरण का यह दौर है, इंसान इतनी परेशानियों में कुछ सुकून पाना चाहता है जो उसको भक्ति की शक्ति में नजर आने लगा है, इसलिए अब इतनी भीड़ जुट रही है। अजय अग्रवाल जी ने आगरा में इस आयोजन को करके आगरा के वाशिंदों के लिए प्रभु श्री राम की कथा के जरिए भक्ति जगाई है, आगरा में इस कार्यक्रम को करते हुए अपार हर्ष हो रहा है।
साहित्य को लेकर भविष्य की संभावनाओं पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि साहित्य को आज डिजिटल दुनिया ने नया क्षितिज दिया है, पहले कवि सम्मेलनों में मंच पाना बड़े कवियों की कृपा पर निर्भर था, लेकिन अब डिजिटल मीडिया ने गांव, गली – कूंचे की प्रतिभाओं को पंख लगा दिए हैं वो अब पहचान बना रहे हैं।