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“ओ नदी! इतना बता दो, रेत क्यों होने लगीं? क्यों भरापन देह का तुम, इस तरह खोने लगीं?”

रचनात्मक पवित्रता को बचाए हुए हैं डॉ. त्रिमोहन ‘तरल’-प्रोफेसर रामवीर सिंह

आगरा राइटर्स एसोसिएशन ने वरिष्ठ कवि डॉ. त्रिमोहन ‘तरल’ के गीत संग्रह ‘चुप्पियाँ भी बोलती हैं’ के साथ गजल संग्रह ‘बुनियाद हो जाएंगे हम’ का किया विमोचन।

ब्रज पत्रिका, आगरा। आगरा राइटर्स एसोसिएशन के बैनर तले शनिवार को पश्चिमपुरी-सिकंदरा स्थित होटल वान्या पैलेस में आगरा कॉलेज में अंग्रेजी के पूर्व एसोसिएट प्रोफेसर और ताजनगरी के वरिष्ठ कवि डॉ. त्रिमोहन ‘तरल’ के गीत संग्रह ‘चुप्पियां भी बोलती हैं’ और ग़ज़ल संग्रह ‘बुनियाद हो जाएंगे हम’ का एक साथ विमोचन किया गया।

समारोह की अध्यक्षता करते हुए केंद्रीय हिंदी संस्थान के पूर्व निदेशक प्रो. रामवीर सिंह ने कहा कि,

“डॉ. त्रिमोहन का जैसा व्यक्तित्व है, वैसा ही उनका कृतित्व है। वे हर तरह से रचनात्मक पवित्रता को बचाए हुए हैं।”

कन्हैयालाल माणिकलाल हिंदी एवं भाषा विज्ञान विद्यापीठ के पूर्व निदेशक डॉ. जय सिंह नीरद ने बतौर मुख्य अतिथि उद्बोधन में कहा कि,

“डॉ. त्रिमोहन तरल की गजलें जहाँ मानवीय सरोकारों और परिवेशगत यथार्थ का ताना-बाना बुनती हैं, वहीं उनके गीत चुप्पी में छिपे एहसासों, सभ्यता के पथराते जाने और राजनीति की विडम्बनाओं के कसैलेपन को रोमांटिक संवेदना के समानांतर लोक चेतना की सोंधी महक के साथ अभिव्यक्त करते हैं।”

विशिष्ट अतिथि, वरिष्ठ साहित्यकार गोपाल विनोदी (बरेली) ने कहा कि,

“गीत से ग़ज़ल तक कवि की यात्रा समकालीन बोध का स्पर्श कराती है।”

विशिष्ट अतिथि डॉ. अशोक विज और आगरा पब्लिक स्कूल के चेयरमैन डॉ. महेश चंद्र शर्मा ने भी डॉ. तरल की रचना धर्मिता की सराहना की।

इस अवसर पर डॉ. त्रिमोहन तरल ने सभी के स्नेह के प्रति आभार जताते हुए सुमधुर और प्रभावी काव्य पाठ से सभी को सम्मोहित कर दिया। इस गीत पर सब वाह-वाह कर उठे-

“ओ नदी! इतना बता दो, रेत क्यों होने लगीं? क्यों भरापन देह का तुम, इस तरह खोने लगीं?”

उन्होंने मिसाल के तौर पर जो गज़ल पेश की, उस पर भी श्रोताओं की भरपूर दाद हासिल की।

डॉ. आरएस तिवारी ‘शिखरेश’ ने कहा कि,

“तरल जी की रचनाएं मूलतः स्वानुभूति एवं परानुभूति के बीच संचेतना, मर्म एवं वेदना को झंकृत करती हैं।”

विमोचित गजल संग्रह ‘बुनियाद हो जाएंगे हम’ की समीक्षा करते हुए संजीव गौतम ने कहा कि,

“डॉ. तरल की गजलें हिंदी और उर्दू के बीच बने हुए पुल को मज़बूत करती हैं और उसका विस्तार करती हैं।”

विमोचित गीत संग्रह ‘चुप्पियाँ भी बोलती हैं’ की समीक्षा करते हुए कुमार ललित ने कहा कि,

“ये गीत मानवीय संवेदनाओं के अनूठे चलचित्र हैं। सामाजिक और राष्ट्रीय सरोकारों की दृष्टि से उजाले की किरण हैं। सांस्कृतिक अस्मिता के संवाहक हैं और राग बोध के महकते सुमन हैं।”

समारोह का संचालन, संयोजन आगरा राइटर्स एसोसिएशन के संस्थापक डॉ. अनिल उपाध्याय ने किया। उन्होंने इस मौके पर कहा कि,

“तरल जी का गीत-संग्रह चुप्पियों के साथ संवाद की प्रतिध्वनि है और ग़ज़ल संग्रह फ़िक्र, फ़न व मेयारी शायरी का नायाब मजमुआ है।”

ये भी रहे शामिल

आयोजन समिति की अध्यक्ष विमला शाक्य, सचिव गरिमा शाक्य और शाश्वत मोहन ने अतिथियों का स्वागत किया। प्रियंका शाक्य ने स्वागत उद्बोधन दिया। समारोह में रमेश पंडित, राज बहादुर सिंह राज, शीलेंद्र वशिष्ठ, डा. राजेंद्र मिलन, डा. राघवेंद्र शर्मा, भरत दीप माथुर, खुशी राम शाक्य, नाहर सिंह शाक्य, नवीन वशिष्ठ, सुरेंद्र वर्मा सजग, हरीश चिमटी, अमीर अहमद जाफरी, सुषमा सिंह, वंदना चौहान, शिवराज यादव, डॉ. महेश धाकड़ सहित आगरा के प्रमुख कवि, साहित्यकार, शिक्षाविद, साहित्यरसिक एवं बुद्धिजीवी भारी संख्या में उपस्थित रहे।

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