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वरिष्ठ साहित्यकार राजकुमारी चौहान ‘प्रकृति-प्रिया’ के दो काव्य संग्रह लोकार्पित

हिंदी भाषा के प्रति आस्था और समर्पण व्यक्त करती हैं ये कविताएँ-डॉ. सुषमा सिंह

76 वर्ष की उम्र में भी साहित्य सृजन हेतु रचनाकार की ऊर्जा और उत्साह प्रेरणा प्रद है-डॉ. पुनीता पचौरी

इन काव्य-रचनाओं में मिलते हैं छायावाद और मानवीकरण के दर्शन: डॉ. अशोक अश्रु

राजकुमारी चौहान की कविताओं में विद्यमान है मानवीय संवेदना और जीवन मूल्यों के साथ लोकरंजन और लोकमंगल का भाव-डॉ. अनिल उपाध्याय

मेरी रचनाओं में है मेरी आत्मा, मेरी भावनाएँ, मेरी अनकही व्यथा, मेरे मौन आँसू और सामाजिक विसंगतियों को अवरुद्ध न कर पाने की छटपटाहट-राजकुमारी चौहान ‘प्रकृति-प्रिया’

ब्रज पत्रिका, आगरा। साहित्य साधिका समिति, संस्थान संगम मासिक पत्रिका, स्वरांजलि, आगरा राइटर्स एसोसिएशन एवं नेशनल राइटर्स एंड कल्चरल फोरम के संयुक्त तत्वावधान में वरिष्ठ साहित्यकार राजकुमारी चौहान ‘प्रकृति-प्रिया’ के दो काव्य संग्रहों- ‘ज्योतिर्गमय’ एवं ‘मैं प्रकृति हूँ’ का लोकार्पण आगरा के गणमान्य साहित्यकारों द्वारा शनिवार शाम संजय प्लेस स्थित होटल होली-डे इन में किया गया।


समारोह में आरबीएस कॉलेज की पूर्व प्राचार्य डॉ. सुषमा सिंह ने लोकार्पित कृतियों की समीक्षा करते हुए कहा कि,

“राजकुमारी चौहान भाव पक्ष की तो धनी हैं ही, कला पक्ष भी भाव पक्ष के अनुरूप है। उनकी कविताओं में हिंदी भाषा के प्रति आस्था और समर्पण व्यक्त हुआ है।”

केंद्रीय हिंदी संस्थान की पूर्व एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. पुनीता पचौरी ने कहा कि,

“ज्योतिर्मय” भावनात्मक संदर्भों के साथ पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक और प्राकृतिक विषयगत विविधताओं का पर्याय है। 76 वर्ष की उम्र में भी साहित्य सृजन हेतु रचनाकार की ऊर्जा और उत्साह प्रणम्य और प्रेरणा प्रद है।”

संस्थान संगम मासिक पत्रिका के संपादक डॉ. अशोक अश्रु ने कहा कि,

“राजकुमारी चौहान जी की रचनाओं में छायावाद और मानवीकरण के दर्शन मिलते हैं।”

डॉ. अनिल उपाध्याय ने कहा कि,

“राजकुमारी चौहान की कविताओं में मानवीय संवेदना और जीवन मूल्यों के साथ लोकरंजन और लोकमंगल का भाव भी विद्यमान है।”

लोकार्पित कृतियों की रचनाकार राजकुमारी चौहान ‘प्रकृति-प्रिया’ ने कहा कि,

“इन रचनाओं में मेरी आत्मा, मेरी भावनाएँ, मेरी अनकही व्यथा, मेरे आँसू और सामाजिक विसंगतियों को अवरुद्ध न कर पाने की छटपटाहट के साथ आज की परिस्थितियों का समावेश है।”

नागरी प्रचारिणी सभा की सभापति और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रानी सरोज गौरिहार ने समारोह की अध्यक्षता की। उन्होंने कहा,

“राजकुमारी जी की दोनों ही पुस्तकें आज लोकार्पित करते हुए खुशी हुई। ये लेखन का क्रम जारी रहे, मेरी उन्हें शुभकामनाएं!”

उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के पूर्व कार्यकारी उपाध्यक्ष और अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कवि प्रो. सोम ठाकुर मुख्य अतिथि रहे। उन्होंने इस मौके पर अपना एक मशहूर गीत सुनाया,

“सागर चरण पखारे, गंगा शीश चढ़ावे नीर
मेरे भारत की माटी है चन्दन और अबीर
सौ-सौ नमन करूँ मैं भैया, सौ-सौ नमन करूँ
मंगल भवन अमंगलहारी के गुण तुलसी गावे
सूरदास का श्याम रंगा मन अनत कहाँ सुख पावे
जहर का प्याला हँस कर पी गई प्रेम दीवानी मीरा
ज्यों की त्यों रख दीनी चुनरिया, कह गए दास कबीर
सौ-सौ नमन करूँ मैं भैया, सौ- सौ नमन करूँ
फूटे फरे मटर की भुटिया, भुने झरे झर बेरी
मिले कलेऊ में बजरा की रोटी मठा मठेरी
बेटा माँगे गुड की डलिया, बिटिया चना चबेना
भाभी माँगे खट्टी अमिया, भैया रस की खीर
सौ-सौ नमन करूँ मैं भैया, सौ-सौ नमन करूँ
फूटे रंग मौर के बन में, खोले बंद किवड़िया
हरी झील में छप छप तैरें मछरी सी किन्नरिया
लहर लहर में झेलम झूमे, गावे मीठी लोरी
पर्वत के पीछे नित सोहे, चंदा सा कश्मीर
सौ-सौ नमन करूँ मैं भैया, सौ- सौ नमन करूँ
चैत चाँदनी हँसे , पूस में पछुवा तन मन परसे
जेठ तपे धरती गिरजा सी, सावन अमृत बरसे
फागुन मारे रस की भर भर केसरिया पिचकारी
भीजे आंचल , तन मन भीजे, भीजे पचरंग चीर
सौ-सौ नमन करूँ मैं भैया, सौ-सौ नमन करूँ!”

इस अवसर पर डॉ. त्रिमोहन तरल, निहाल चंद शिवहरे (झांसी) और डॉ. अशोक विज विशिष्ट अतिथि रहे। डॉ. अनिल उपाध्याय ने कार्यक्रम का संयोजन एवं संचालन किया। अतिथियों का स्वागत कृष्णवीर सिंह चौहान, ग्रुप कैप्टन प्रशांत चौहान, वीना चौहान और पूर्व फ्लाइट लेफ्टिनेंट दिव्या चौहान ने किया। इस मौके पर साहित्यकार रमेश पंडित, कवि पवन आगरी, ज्योतिषाचार्य डॉ. शोनू मेहरोत्रा, पवन मेहरोत्रा, पत्रकार डॉ. महेश धाकड़, शिक्षिका वंदना चौहान, चित्रकार डॉ. रेखा कक्कड़, कवि कुमार ललित आदि भी मौजूद थे।

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