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उज्बेकिस्तान और कजाकिस्तान की फिज़ां में घुलेगी हिंदी की मिठास

आगरा। उज्बेक और कजाक अवाम में अब हिंदी और लोकप्रियता पाएगी, ये संभव होगा वहाँ के हिंदी के शिक्षकों के जरिये। उज्बेकिस्तान और कजाकिस्तान की फ़िज़ां में हिंदी की मिठास का एहसास होगा। हालांकि मुग़ल बादशाह बाबर के जमाने से भारत के उज्बेकिस्तान से रिश्ते हैं। बादशाह बाबर ताशकंद से भारत में आया था। उसके बाद हुमायूं, अकबर, जहांगीर, शाहजहाँ, औरंगजेब और बहादुर शाह जफर तक की बादशाहत तक भारत के उज्बेकिस्तान से सम्बंध बने रहे। उज्बेकिस्तान और भारत में सांस्कृतिक आदान प्रदान हुआ उज्बेक कला और संस्कृति भारत में और भारतीय कला और संस्कृति उज्बेकिस्तान में पहुँची। सोवियत संघ से भी भारत के सांस्कृतिक, राजनीतिक और व्यापारिक संबंध रहे। उसी सोवियत संघ का हिस्सा रहे उज्बेकिस्तान और कजाकिस्तान के हिन्दी शिक्षको के लिए दस दिवसीय पुन्श्चर्या पाठ्यक्रम का आयोजन केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा में किया गया। इसमें उज्बेकिस्तान के 13 और कजाकिस्तान के चार शिक्षक हिस्सा ले रहे हैं। इस पुनश्चर्या पाठ्यक्रम के शुभारंभ समारोह में समारोह की अध्यक्षता करते हुए निदेशक प्रोफेसर नंद किशोर पांडेय ने सभी अतिथि अध्यापको को सुखद भारत प्रवास की शुभकामना दी। उन्होंने कहा केंद्रीय हिंदी संस्थान हिंदी के जरिये दुनिया के तमाम देशों के साथ भारत के रिश्तों को मजबूत बनाने का काम कर रहा है। इस पाठ्यक्रम से भी दोनों ही देशों के साथ हमारे बौद्धिक और सांस्कृतिक रिश्तों को नया आयाम मिलेगा। ये पाठ्यक्रम एक पखवाड़े तक संस्थान के भाषा और प्रौद्योगिकी विभाग के मल्टी मीडिया कक्ष में अंतरराष्ट्रीय हिंदी शिक्षण विभाग की ओर से आयोजित किया जा रहा है। कुलसचिव प्रोफेसर बीना शर्मा ने संस्थान की इस योजना के विषय में जानकारी देते हुए बताया इस पाठ्यक्रम से हिंदी के शिक्षण का स्तर इन दोनों ही देशों में और उन्नत होगा। अंतरराष्ट्रीय हिंदी शिक्षण विभाग के अध्यक्ष डॉ. गंगाधर बानोडे ने बताया हिंदी इन देशों के साथ भारत के रिश्तों में मिठास घोलेगी। इस अवसर पर प्रोफेसर रामवीर सिंह, डॉ. ज्योत्स्ना रघुवंशी आदि मौजूद थे।

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