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देवस्थल ऑप्टिकल टेलिस्कोप पर लगाए गए देश में डिजाइन और विकसित स्पेक्ट्रोग्राफ से दूरस्थ आकाशीय संरचनाओं से निकलने वाली हल्की रोशनी का पता लगाया जा सकता है!

अभी तक ऐसे स्‍पेक्‍ट्रोस्‍कोप विदेश से आयात किए जाते थे, जिन पर खासी लागत आती थी। 

ब्रज पत्रिका। भारतीय वैज्ञानिकों ने देश में किफायती ऑप्टिकल स्‍पेक्‍ट्रोग्राफ डिजाइन और विकसित किया है। यह नए ब्रह्मांड, आकाशगंगाओं के आसपास मौजूद ब्‍लैक होल्‍स से लगे क्षेत्रों और ब्रह्माण्‍ड में होने वाले धमाकों में दूरस्‍थ तारों और आकाशगंगाओं से निकलने वाली हल्‍की रोशनी के स्रोत का पता लगा सकता है।

यह कोलाज 3.6-एम देवस्थल ऑप्टिकल टेलिस्कोप (डीओटी), ‘मेड इन इंडिया’ एआरआईईएस- देवस्थल फैंट ऑब्जेक्ट स्पेक्ट्रोग्राफ एंड कैमरा (एडीएफओएससी), और टेलिस्कोप से मिले आकाशीय स्रोत की एक छवि के चित्र दिखाता है। क्रैब नेबुले का चित्र एक तारे पर धमाके के बाद का दृश्य दिखाता है, जो वर्ष 1054 में मिल्की-वेव आकाशगंगा में हुआ था। एडीएफओएससी से मिले रंग से कोड किए गए ऑप्टिकल स्पेक्ट्रम में हाल में मृत एक विशाल तारे को दिखाया गया है, जिसमें इसके मूल में हाइड्रोजन, आयरन, सोडियम, कैल्सियम आदि विभिन्न तत्‍वों के संश्लेषण के बाद की आकाशीय स्थिति और फिर उनकी निकासी का दृश्‍य दिखाया जा रहा है। यह मैटेरियल नये तारों और भविष्‍य के ग्रहों के निर्माण के लिए रॉ मैटेरियल बन जाता है, जिससे खगोलीय पिंडों की उत्‍पत्ति और नष्‍ट होने के निरंतर चक्र का निर्माण होता है।  

अभी तक ऐसे स्‍पेक्‍ट्रोस्‍कोप विदेश से आयात किए जाते थे, जिन पर खासी लागत आती थी। एरीज-देवस्‍थल फैंट ऑब्जैक्‍ट स्‍पेक्‍ट्रोग्राफ एंड कैमरा (एडीएफओएससी) नाम के ‘मेड इन इंडिया’ ऑप्टिकल स्‍पेक्‍ट्रोग्राफ को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), भारत सरकार के एक स्वायत्त संस्थान आर्यभट्ट रिसर्च इंस्‍टीट्यूट ऑब्‍जर्वेशनल साइंसेज (एआरआईईएस), नैनीताल में विकसित किया गया है। यह आयातित ऑप्टिकल स्पेक्ट्रोग्राफ की तुलना में 2.5 गुना सस्ता है, और यह लगभग 1 फोटॉन प्रति सेकंड की फोटॉन दर के साथ प्रकाश के स्रोत का पता लगा सकता है।

देश में मौजूदा खगोलीय स्पेक्ट्रोग्राफ्स में अपनी तरह के सबसे बड़े स्पेक्ट्रोस्कोप को 3.6-एम देवस्थल ऑप्टिकल टेलिस्कोप (डीओटी) पर नैनीताल, उत्तराखंड के पास सफलतापूर्वक स्थापित कर दिया गया है, जो देश और एशिया में सबसे बड़ा है।

यह उपकरण अत्यंत धुंधले आकाशीय स्रोत के निरीक्षण के लिए 3.6-एम डीओटी के लिए काफी अहम है, जो विशेष कांच से बने कई लेंसों की एक जटिल संरचना है, साथ ही आकाश से संबंधित चमकदार छवियों की 5 नैनोमीटर स्मूथनेस से बेहतर पॉलिश की गई है। टेलिस्कोप से संग्रहित किए गए दूरस्थ आकाशीय स्रोतों से आने वाले फोटॉनों को स्पेक्ट्रोग्राफ के द्वारा विभिन्न रंगों में क्रमबद्ध किया गया है और घरेलू स्तर पर विकसित अत्यधिक कम माइनस 120 डिग्री सेंटीग्रेट पर ठंडे किए जाने वाले चार्ज-कपल्ड डिवाइस (सीसीडी) कैमरे के उपयोग से इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड योग्य संकेतों में तब्दील किया गया है। इस उपकरण पर लगभग 4 करोड़ रुपये की लागत आती है।

एक तकनीक और वैज्ञानिकों के दल के साथ इस परियोजना की अगुआई एआरआईईएस के वैज्ञानिक डॉ. अमितेश ओमार ने की। इस दल ने स्पेक्ट्रोग्राफ और कैमरे के कई ऑप्टिकल, मैकेनिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स सबसिस्टम्स पर अनुसंधान किया और उन्हें विकसित किया। स्पेक्ट्रोग्राफ को वर्तमान में बेहद नए ब्रह्मांड, आकाशगंगाओं के आसपास मौजूद विशालकाय ब्लैकहोल्स से लगे क्षेत्रों, सुपरनोवा जैसे खगोलीय धमाकों और उच्च ऊर्जा से युक्त गामा-रे विस्फोट, नए और बड़े तारे व हल्की छोटी आकाशगंगाओं में दूरस्थ तारों और आकाशगंगाओं के अध्ययन के लिए भारत और विदेश के खगोलविदों द्वारा उपयोग किया जाता है।

एआरआईईएस के निदेशक प्रो. दीपांकर बनर्जी ने कहा,

“भारत में एडीएफओएससी जैसे जटिल उपकरणों के निर्माण के स्वदेशी प्रयास खगोल विज्ञान और खगोल भौतिकी के क्षेत्र में ‘आत्मनिर्भर’ बनने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।”

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) सहित विभिन्न राष्ट्रीय संस्थानों, संगठनों और कुछ सूक्ष्म-लघु-मध्यम उपक्रमों के विशेषज्ञ उपकरण की समीक्षा और इसके भागों के निर्माण से जुड़े रहे, जो प्रभावी सहयोग का एक उदाहरण है। इस विशेषज्ञता के साथ, एआरआईईएस की अब निकट भविष्य में 3.6-एम देवस्थल टेलिस्कोप पर स्पेक्ट्रो-पोलरीमीटर और हाई स्पेक्ट्रल रिजॉल्युशन स्पेक्ट्रोग्राफ जैसे ज्यादा जटिल उपकरण स्थापित करने की योजना है।

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