शिक्षा

मितव्ययी विज्ञान के औजारों का अगर ठीक से विकास कर लिया जाए, तो विज्ञान की समाज के बड़े दायरे में पहुँच संभव होगी!

डीईआई@40 के अवसर पर विशेष आमंत्रित वक्ता व्याख्यान का आयोजन किया गया।

ब्रज पत्रिका। दयालबाग एजुकेशनल इंस्टीट्यूट में डीईआई@40 के अवसर पर विशेष आमंत्रित वक्ता व्याख्यान का आयोजन दीक्षांत सभागार में किया गया। इस अवसर पर स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय अमेरिका के जैव अभियांत्रिकी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. मनु प्रकाश ने व्याख्यान दिया।

‘मितव्ययी नवाचार: जिज्ञासा आधारित विज्ञान का जनतांत्रीकरण’ विषय पर व्याख्यान देते हुए डॉ. मनु प्रकाश ने कहा कि,

“अभियांत्रिकी के अधुनातन संकटों पर विचार करते हुए सबसे पहले हमारा ध्यान किसी भी निर्माण की लागत की ओर जाना चाहिए; क्योंकि इससे निर्माण की पहुँच कुछ सौ लोगों के बीच से निकलकर लाखों लोगों तक हो जाती है। हमारे प्लेनेट की मौजूदा समस्याओं पर विचार करते समय किसी प्रोजेक्ट की लागत पर विचार करना आज बहुत महत्त्वपूर्ण हो गया है।”

उन्होंने आगे कहा कि,

“खुद उनकी लैब में समाधान तैयार करते समय संसाधन की उपलब्धता, खासकर वैश्विक स्वास्थ्य, क्षेत्रीय उपचारों और विज्ञान शिक्षा के संदर्भ का ध्यान विशेष तौर पर रखा जाता है। अपने द्वारा निर्मित कुछ महत्त्वपूर्ण परियोजनाओं का भी उन्होंने उल्लेख किया, जिसमें सामान्य से कम लागत में फोल्डस्कोप (कम लागत वाली माइक्रोस्कोप), ओस्कैन (मुख कैंसर को स्कैन करने की मशीन ), पंचकार्ड माइक्रोफ्लुइडिक्स (रसायन विज्ञान किट), वेक्टरकैप और एबज़ (मच्छर प्रजातियों का पता लगाने और पहचानने के लिए ), पेपरफ्यूज ,मलेरिया स्कोप (डायग्नोस्टिक्स), प्लैंकटोन स्कोप (महासागर की विविधता का पता लगाने का यंत्र ) और COVID-19 के लिए लार के जरिए तेजी से पता लगाने वाला कम लागत का यंत्र बनाया गया है।”

उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि मितव्ययी विज्ञान के औजारों का अगर ठीक से विकास कर लिया जाए तो विज्ञान की समाज के बड़े दायरे में पहुँच संभव होगी और वैज्ञानिक शिक्षा का प्रसार भी संभव होगा। उन्होने डीईआई के वाह्य सक्रियता आधारित कार्यक्रमों की प्रशंसा भी की और कहा कि, मध्यप्रदेश के राजाबरारी और दूसरे आदिवासी इलाकों में वंचित तबकों के वैज्ञानिक शिक्षा और उनकी जरूरत को पूरा करने लायक प्रयोग आधारित उपकरण का निर्माण बहुत प्रशंसनीय है।

कार्यक्रम की शुरुआत में, प्रो. सी. मारकन ने जहां डीईआई@40 के अवसर पर विशेष आमंत्रित वक्ता व्याख्यान की पृष्ठभूमि के बारे में जानकारी दी, वहीं प्रो. के. स्वामी दयाल ने दयालबाग एजुकेशनल इंस्टीट्यूट की गतिविधियों में किए जा रहे उल्लेखनीय कार्यों का विवरण दिया। डॉ. बानी दयाल धीर ने मुख्य अतिथि का परिचय दिया और प्रो. सी. पटवर्धन ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

ज्ञातव्य है कि डीईआई अपने डीम्ड विश्वविद्यालय होने के 40वें वर्ष में प्रवेश करने के उपलक्ष्य में विशेष व्याख्यानों की शृंखला डीईआई@40 के तहत संचालित कर रहा है। डीईआई को 1981 में डीम्ड विश्वविद्यालय का दर्जा मिला था।

इस अवसर पर डीईआई में शिक्षा की प्रगति तथा इसके विभिन्न आयामों को दर्शाते हुए एक लघु वीडियो फिल्म भी दिखाई गयी। साथ ही सांस्कृतिक आयोजन भी किए गए, जिसमें कव्वाली तथा नन्हें-मुन्हें बच्चों की ओर से स्वास्थ्य-रक्षा पीटी का आयोजन प्रमुख रहा।

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