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साहसिक निर्णय और अद्भुत नेतृत्व – मोदी जी के 75 वर्ष

-पूरन डावर
(चिंतक एवं विश्लेषक)

माना अंधेरा घना है लेकिन दिया जलाना कहाँ मना है…हम देश के प्रधानमंत्री, देश ही नहीं विश्व के गौरवशाली नेतृत्व का जन्मदिन मना रहे हैं। 2012 में बैंक ऑफ इंडिया के जोनल मैनेजर श्री सिंगला मुझसे मिलने आए, बातचीत में मैंने पूछा इससे पहले आप कहाँ थे, उन्होंने बताया अभी लुधियाना से आया हूँ, उसके पहले 5 वर्ष गांधी नगर में था, गांधी नगर का नाम आते ही बड़ी उत्सुकता से मैंने तुरंत पूछा कि गुजरात मॉडल और मोदी का बड़ा नाम आता है, कुछ रफ शब्दों में मैंने जानकारी लेने का प्रयास किया। कुछ है कि नाटक है, सिंगला जी का तुरत उत्तर आया कि ये व्यक्ति देश का प्रधानमंत्री नहीं बनता तो देश का बड़ा दुर्भाग्य होगा, मैं आश्चर्य जनक था क्योंकि इससे पूर्व मैंने मोदी जी के प्रधानमंत्री तक पहुँचने की बात नहीं सुनी थी। मैंने उनसे कारण पूछा तो सिंगला जी ने उनकी अनेकों कार्यशैली और क्षमतायें बताईं, किस तरह से तकनीक का प्रयोग, निर्णय लेने की क्षमता, जनता के साथ संपर्क, जनता से संवाद, ऑन लाइन सुझाव आमंत्रण और कुछ अच्छे सुझावों वाले व्यक्तियों को बुलाकर बड़े सहज भाव से सुनना और कार्यान्वन पर चर्चा करना, श्री सिंगला भी उनमें से थे जिन्होंने ऑनलाइन कुछ सुझाव दिये थे और एक साधारण बैंकर को आमंत्रित किया गया था और 20 मिनट बड़े सहज भाव से बात हुई थी।

2014 में लोकसभा के चुनाव आने वाले थे 2013 के शुरुआत में ही मोदी मोदी की आवाज चारों तरफ से आने लगी, मेरे सहित संघ-भाजपा की विचारधारा से जुड़ा हर व्यक्ति बड़ी आतुरता से प्रतिदिन मोदी जी को प्रधानमंत्री के चेहरे के रूप में चुनाव में प्रस्तुत करने की घोषणा की प्रतीक्षा कर रहा था। एक-एक दिन भारी लगता था। राजनीति है श्रद्धेय लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, सुषमा जी सहित अनेक वरिष्ठ नेता पीएम इन वेटिंग थे। जिनकी संघ, जनसंघ से लेकर भारतीय जनता पार्टी बनने तक बड़ी भूमिका रही थी।

यहाँ यह समझना होगा राजनीति में भारत ही नहीं बल्कि विकसित देशों में भी पार्टी ही नहीं नेतृत्व को अधिक तरजीह दी जाती है। नेता का करिश्मा सदैव रहा, देश में भी वोट नेहरू जी के बाद इंदिरा गांधी, राजीव गांधी को इंदिरा गांधी की हत्या से उभरी सहानुभूति से एक तरफा वोट, उसके बाद कांग्रेस लगभग प्रभावी नेतृत्व विहीन रही और कोई पूर्ण बहुमत की सरकार नहीं बन पायी।

राम जन्मभूमि आंदोलन के बाद भाजपा की उभरती छवि और फिर अटल बिहारी वाजपेयी जी जैसे नेता के नेतृत्व में भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में आने पर एनडीए की सरकार बनाने में सक्षम हुई। अटल जी के बाद लालकृष्ण अडवाणी साफ सुथरी छवि के नेता अवश्य थे लेकिन जातिगत समीकरण हों या फिर कुछ और जनता करिश्माई नेतृत्व के रूप में नहीं देख रही थी।

मोदी जी लगातार 3 बार मुख्यमंत्री के रूप में एक विशेष छवि लेकर भावी नेतृत्व के रूप में उभर रहे थे और 2013 आते-आते उनके नेतृत्व के लिए पार्टी में जन आंदोलन बन गया और पार्टी को मोदी जी को प्रधानमंत्री के चेहरे के रूप में घोषित करने को मजबूर कर दिया।

फिर गोवा में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में घोषणा के बाद माहौल वोट फॉर इंडिया, वोट फॉर इंडिया के नारे से पूरा देश गुंजायमान और उसके बाद गोवा में मोदी जी का भाषण एक के बाद एक वेदों के श्लोक वसुधैव कुटुंबकम, सर्वे भवंतु सुखिना…से ओतप्रोत सुनाई देने लगे। मोदी जी में देश ही नहीं विश्व के नेतृत्व की क्षमता दिखायी देने लगी।

2013 में आगरा का भी सौभाग्य था विजय शंखनाद रेली की शुरुआत आगरा से हुई मुझे स्वागताध्यक्ष के रूप में मंच साझा करने का अवसर मिला, मुझे उनके उस भाषण का एक-एक शब्द अक्षरशः स्मरण है। 2014 में पूर्ण बहुमत से वह प्रधानमंत्री बने। अपने संसद में प्रवेश से लेकर शपथ ग्रहण समारोह में पड़ोसी देशों को आमंत्रित कर स्पष्ट संदेश दिया, हमें आपस में नहीं गरीबी से लड़ना है। हम दोनों की समस्या गरीबी है, यह अलग बात है पड़ोसी देश जेहादी मानसिकता पर ही रहे, भारत आज विश्व की चौथी अर्थव्यवस्था बन गया और पड़ोसी लगभग पिछले पायदान पर।

उनकी नेतृत्व क्षमता, साहसिक निर्णय, सबका विश्वास – सबका साथ, आत्मनिर्भर भारत, 2047 तक विकसित भारत का लक्ष्य और उस ओर तेज़ी से कदम, महामारी में भी लड़ने की क्षमता। इस क्षमता का लोहा आज भारत ही नहीं पूरा विश्व मानता है और आज 75 प्रतिशत अप्रूवल के साथ विश्व के अग्रणी नेता हैं।

ऐसे परम आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को 75वे जन्मदिवस पर कोटिशः बधाई, दीर्घ आयु और दीर्घ काल तक देश के नेतृत्व की कामना। जब तक करिश्मा है, क्षमता है, जनता की स्वीकार्यता है, रिटायरमेंट की सोच भी नहीं आनी चाहिए। कैसे कह दूँ की थक गया हूँ मैं, जाने कितनों का हौंसला हूँ मैं…!

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